गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

लियाक़त साहब के कुछ मेरे पसंदीदा शे'र ...

1-
मैं दौड़ दौड़ के खुद को पकड़ के लाता हूँ ...
तुम्हारे इश्क़ ने बच्चा बना दिया है  मुझे ...
2-
मेरे बाज़ू को बिला-शक तू बना ले तकया ...
पर मेरी जान मैं सोने नहीं दँूगा तुझ को ..
3-
आसमानी ही..आसमानी है
मेरी आंखों मैं जितना पानी है
4-
अच्छा ठीक है, जो तुम चाहो, जो अल्लाह की मर्ज़ी हैं ...
और ये सब कुछ, उस पगली ने बिन रोये ही बोला था
5-
फिर उस के बाद की ग़ुरबत न पुछो
मेरे हाथों में पैसा आ गया था ...
6-
न रोक पाया न आवाज़ दे सका ख़ुद को ..
मैं ख़ुद को जाते हुवे सिर्फ़ देखता ही रहा
7-
घर के इक कोने में बेकार पड़ा रहता हूँ ..
यार्ड में डंप किये रेल के डिब्बे की तरह
8-
पंछी लोटे तो चीख़ कर रोया
हाय वो पेड़ कितना तन्हा था
9-
कुछ तिकोने और भी थी, कुछ तिकोनों के परे
दायरों के बाद भी , इक दायरा मौजूद था
10-
ज़लज़ले के ठीक फ़ौरन बाद इक ठहराव था ..
और उस ठहराव में भी ज़लज़ला मौजूद था ..
11-
और अब, दूसरा रस्ता भी नहीं है कोई
'जाफरी' ख्वाब को ख्वाब से मारा जाये
12-
तमाम शहर के मलबे पे रक़्स करने लगा..
वो ज़लज़ला जो अभी तक ज़मीं के अंदर था..
13-
दरख़्तों पर अजब जादू हुवा है
परिंदे सो गये तो गिर पड़े गे
14-
पहले थकने लगी मेरी उम्मीद
फिर मेरा इंतज़ार थकने लगा
15-
यहाँ कुछ और भी नक्शे क़दम हैं ..
मैं इस जंगल में शायद दूसरा हूँ ..
16-
वो कौन राज़ था जिस को बयान कर न सके?...
वो कौन बात थी, जो "जाफरी" बची हुई थी?...
17-
है कौन मुझ सा बे सरो समान "जाफरी" ...
तन'हा खड़ा हूँ अपनी हिमायत के बावजूद ....
18-
वो एक पल के लिये छोड़ कर गया था मुझे
तमाम उम्र मेरी............ इंतज़ार मैं गुज़री
19-

ज़मीन कुछ भी नहीं आसमान कुछ भी नहीं
कमाल ये है के फिर दरमियान कुछ भी नहीं

अगर है कुछ तो मेरी ज़ात ही सभी कुछ है
अगर नहीं, तो ये सारा ज़हान कुछ भी नही
20-
कमाल ये है के अब रंज भी नहीं उस का ..
अभी तलक जो मेरी ज़िन्दगी बना हुवा था
21-
जिस्म को फाड़ती हुवी निकली
रूह... चिंगघाड़ती हुवी निकली
22-
उसी के नूर से ये रौशनी बची हुई थी ...
मेरे नसीब मैं जो तीरगी बची हुई थी ....
23-
अजीब खाब ने जकड़ा हुवा था रात मुझे
कई हज़ार सुमंदर,.....कई हज़ार जहाज़

मैं उन कि आँख से ओझल पड़ा था दूर कहीं ..
गुज़र रहे थे मेरे सर से, बे-क़रार जहाज़
24-
के दोस्त, आने लगे होसला बढ़ाने को
फ़रेब एक नया और खा के बेठे है

मैं फिर से उन कि मोहब्बत के रस मैं डूबा हूँ
वो लोग फिर मेरे पहलू मैं आ के बेठे हैं
25-
इख़्तियार इश्क़ ने कुछ ऐसा दिया है मुझको ....
जब भी चाहूँगा तेरे ख़्वाब में आ जाऊँगा ....
26-
अम्माँ अंगूठा चटवाते मुझे से कहती रहती थी ...
छत्ते से ये शहद साल में दो दो बार निकलता है ...
27-
मैं फिर से लौट के घर आ गया हूँ ...
ये तो आज की ताजा ख़बर हैं ...
28-
लोग ख़ुश हैं उससे दे दे के इबादत का  फरेब ...
वो  मगर  खूब  समझता  है, खुदा  है  वो  भी ...
29-
अजीब मोड़ था, वापस पलटने लगते थे ..
इधर से जाते हुवे , उस तरफ़ से आते हुवे ..
30-
पुछता फिरता हुआ मैं अपना पता जंगल से ...
आख़िरी बार दरख़्तों ने मुझे देखा था ..
31-
अपनी जानिब ही पलटता, तो पुहंचता भी कहीं ..
किस लिए जानिबे अतराफ को, मायल हुवा मैं
32-
मेरे हरीफ़ का सब कुछ लगा था दाव पर ..
मुक़ाबले मैं मेरा हारना ज़रूरी था ...

हरीफ़-दुश्मन
33-
एक ही नींद, के सौ बार सुलाती है मुझे ...
एक ही ख़्वाब के सौ बार नज़र आता है ..
34-
आज उस को भी रख के साथ "अली"
मैं ने उसी को बहुत तलाश किया ..
35-
अजीब बात थी .....वो मेरे ख़्वाब मैं उतरा
फिर उस के बाद उसे ये ख़बर भी मैं ने दी
36-
उस के सौ यार हैं अब "जाफरी" , और मेरे पास ...
एक  टूटे  हुऐ  रिश्ते  के  सिवा , कुछ  भी  नहीं ....
37-
पाल-पोष के बड़ा किया था मैं ने कोई ख़्वाब ..
कल शब् उस को बहा ले गया अस्यों का सैलाब ...
38-
अज़ीब ख़्वाब था, जो मुझे से टूटता भी ना था
ख़ुदा का शुक्र.......के तू ने जगा दिया मुझ को
39-
यही काफ़ी है जान के मारने को ..
ये जो एक ख्वाब है गुज़ारने को ...
40-
आख़री बार उस जगह था मैं
कोई जा कर ...मुझे वहाँ ढूँढे
41-
तन्हाई वन्हाई .....कुछ भी रास नहीं आती ..
अच्छे-अच्छों को आख़िर रस्ता लग जाता है...
42-
रहम खाओ मेरी आँखों पे नींदों ..
मेरे कुछ ख़्वाब अन देखें पड़े हैं ...
42-
जागते में भी यही काम किया हैं मैं ने ..
मेरी नींदों से ज़ियादा है, मेरे ख़्वाब की उम्र ...
43-
इक भीड़ सोने जागने वालों में थी शुमार ...
उतरा न कोई ख़्वाब के अन्दर मेरे बग़ैर ...
44-
 आँख सिरहाने पड़ी है, और मंज़र बंद है ..
"जाफरी" ख़्वाबों पे मेरे नींद का दर बन्द है ...
45-
"जाफरी" आँखों को मल-मल के ज़रा देख तो ले ..
 नींद टूटी है तो , फिर ख्वाब भी टूटा हो गा ...
46-
एक ही नींद के सौ बार सुलाती है मुझे ..
एक ही ख़्वाब के सौ बार नज़र आता है ...
47-
अब तो कुछ और भी गहरी हैं मेरी बुनियादें ..
अब तो घर वाले भी दीवार समझते हैं मुझे
48-
मैं पै'वस्ता बना फिरता हूँ हर सू
मगर मुझ को उखाड़ा जा चुका है
49-
सभी कुछ दिख रहा है, इस में लेकिन ..
ये दरिया ..........आइने जैसा नहीं है ...
50-
मुझे सूरज ने बहकाया बहुत था
मगर उस पेड़ में साया बहुत था
51-
शुक्र मोला का बहस ख़त्म हुई ..
चीख़ कर बोलने लगा था मैं
52-
मुश्किलों से अभी बैठा था, मेरा गर्द-ओ-ग़ुबार ..
रास्ता..... ...फिर कोई आग़ाज़ हुवा है मुझ में ...
53-
ये जो दरिया उतरने वाला है
ये कहीं और चढ़ने वाला है
54-
मुश्किल से हवा को बांधा था ..
लग गयी आग फिर दरख़्तों में ...
55-
कहीं की चीज़ को रख कर, कहीं समझते रहे ..
ये आसमां था , जिसे हम ज़मीं समझते रहे ...
56-
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का ..
यही तो वक़्त है, सूरज तेरे निकलने का ...
57-
किसी जंगल से यारी हो गयी थी
अभी तक आँख में सब्ज़ पड़ा हैं
58-
वो जो बेजान नज़र आता था, ज़िंदा निकला
हम जिसे पत्ता समझते थे परिंदा निकला
59-
लोग किस किस से रोशनास नही
हम के अपने भी आस पास नही
60-
ज़ैरे आब अजब सी गहमा-गहमी थी
पानी मुझ को धक्का दे कर गुज़र था
61-
सभी.... तैराक बनते जा रहे हैं
मगर दरया हुनर पहचानता है
62-
मुझे यक़ीन है ......वो राह देखता हो गा
मैं सोचता हूँ मगर सोचने से क्या हो गा
63-
तन्हाई में ..... चीखो रो लो
पर अपनी आवाज़ तो खोलो
64-
पतंग आंखू से ओझल हो चुकी थी
मगर मैं .....ड़ोर खींचें जा रहा था
65-
पहले जी भर के उस ने प्यार दिया ..
और फिर उस ने हम को मार दिया ...
66-
हिम्मत है तो उठ कर शोर-शराबे का इंकार करो
ख़ामोशी के तिनके चुन कर सन्नाटा तैयार करो
67-
मेरे सीने में जितना सरमा़या था
वो मेरी दो आंखों में दफ़नाया था
68-
चराग़ बुझते ही, यक-लख्त बिजलियाँ कोंदी
फिर उस के  बाद अचानक अँधेरा जलने लगा
69-
ज़मीनों की  तिजारत  कर  रहा  हूँ
मैं अब हिजरत पे हिजरत कर रहा हूँ
70-
शहर तक़सींम किया जाये सिर से एक बार
और फिर ...... बीच में दीवार उठा दी जाये
71-
बड़ा दिलकश नज़ारा सामने था
मगर ये आँख आड़े आ गई थी
72-
यूँ तो ....तरतीब से जोड़ा था अभी कुछ लेकिन
कुछ ना कुछ है, जो अभी टूट रहा है  मुझ  में
73-
पानी में अक्स और किसी आसमां का है
ये नाव कौन सी है, ये दरया कहाँ का है
74-


75-
हम ने ख़ुद्दारी को सीने से लगाये रक्खा
और दस्तार को दस्तार भी होने ना दिया
76-
ये आसमान बज़ाहिर जो साफ़ सुथरा है
मुझे तो इस में भी पंछी दिखाई देते हैं
77-
दरयाओं के आस पड़ोस की खोज करो
हर  पत्थर  के  नीचे  चश्मा  होता  है
78-
ये पैमाने भी इंसानों के अंदर ही मुरवविज हैं
परिंदे .......ख़ूबसूरत और बदसूरत नहीं होते
79-
हमारी आँख का वो आख़री करिश्मा था
फिर उस के बाद वो खुश्बो कभी नहीं देखी
80-
झांकता रहता है बाहर की तरफ़ बे-इख़्तियार..
मेरी आँखों के इलावा भी, मेरे अंदर से कुछ ...
81----
तेज़ गाड़ी से ख़ुद को टकरा कर
हम ने रफ़्तार रोक ली अपनी
82---
इस से पहले के इसे भी झूठ की आदत पड़े
एक सेल्फी .....आईने के साथ लेनी चाहिए
83---
उस को तो खेर इश्क़ ने मोक़ा नहीं दिया
लेकन मेरी तरफ से भी नफ़रत ना हो सकी
84---
दिन निकल आता है और बल्ब जले रहते हैं
कोई इस शहर की बिजली को बुझाता भी नही
85---
यार बाहर भी आया जाया करो
इस क़दर कौन घर में रहता है
86---
उड़ाता नींद मेरी जब तलक पुराना ख्वाब ..
मैं सो चूका था नया ख्वाब देखने के लिये ...
87---
क़दम क़दम पे नया रास्ता बदलते हुवे
वो थक चूका था, मेरे साथ साथ चलते हुवे
88---
करो न भंग तपस्या कि भस्म कर दे गी
हमारी आँख जो इक बार खुल के बंद हुई
89---
बड़े सलीक़े से छोड़ा था रास्ता मैं ने
वो जान बूझ के मेरे क़रीब से गुज़रा
90---
मैं क़त्ल हो चुका लेकन सुकून है मुझ को
के मेरे बाद हजारो ने चीखना सीखा
91---
ये साया उतना ही बेहाल कर के छोड़े गा
ये धुप ..जितनी हमारे शजर में उतरे गी
92---
शहर तामीर किया जाये सिरे से  इक बार
और फिर बीच में दीवार उठा दी जाये
93---
एल्बम में तस्वीर दुहाई देती है ..
जो मेरी आँखों को सुनाई देती हैं ...
94---
घुटन की वजह से मुश्किल तो पेश आई मगर
हवा ............चराग़ जलाने में कामयाब रही
95---
जाफ़री ..........हल्की सी जुंबिश एक हो गी ज़ेरे आब
ये सुमंदर फिर से कुछ दरया दरयाओं में बट जाये गा
96---
यहाँ हर शख़्स दोजे से ख़फ़ा है
ये घर अन्दर से कितना खोखला है
97---
चलो अच्छा हुवा दम तोड़ बेठा
वो मेरी सांस लेने लग गया था
98---
अज़ाबे जावेदानी ... लग चूका था
मेरी आँखों को पानी लग चूका था

अज़ाबे जावेदानी-हमेशा का मर्ज़
99---
तो फिर क्या सामने शीशा नहीं था
के मेरे जिस्म पे चेहरा नहीं था?
100--
लियाक़त जाफ़री बेशक खरीदो
परिंदे को उड़ा कर देख लेना
101---
पुख्तगी ने मेरी मिस्मारी को आसां कर दिया
मैं उसी शुद्दत से टूटा, जिस क़दर मज़बूत था
102---
कोई ख्वाब देखता था, या में ख़्वाब पढ़ रहा था
मुझे नींद आ रही थी, मैं किताब पढ़ रहा था
103---
खुदाया कब मेरा नुक़सान हो गा
तिजारत करते करते थक चूका हूँ
104---
क़ैद सही, पर जी लेना आसान भी है
तह-खाने के अन्दर रोशन-दान भी है
105---
अब तो बस शिकवे हैं लेकन एक ज़माना था
हम दोनों इक दोजे की ख़मोशी सुनते थे
106---
यही नहीं के तुम्ही तुम हो इस खराबे में
हवा .. तुम्हारे इलावा कुछ और भी है यहा
107---
आज इक शख्स को देखा तो मुझे याद आया
कितनी शिद्दत से कोई याद सताती थी मुझे
108---
टिकटिकी बाँध के तकते रहे पहले उस को
और फिर हम ने उसे हाथ लगा कर देखा
109--
तुम्हारे साथ चलने की ख़ुशी में
मैं ख़ुद को कितना पीछे छोड़ आया
110---
मुमकिन है नफ़रत अच्छी हो, लेकन मेरे दोस्त
इस पोदे को हर मोसम में सींचना पड़ता है
111---
वो वापिस लोट आया था लियाक़त
मगर मैं अपना आदि हो चुका था
112-
फिर उस के बाद मेरी रौशनी नहीं लौटी
मैं सो गया था सितारे शुमार करते हुवे
113-
हुवे कहीं तो पलट कर ज़रोर आयें गे
हम एक अरसे से  ख़ुद को ढूंढते भी नही
-114
सिसकियाँ लेती है हर सांस मेरे सीने में
कौन करता है ये दिन रात इबादत मुझ मैं
115-
दिन निकल आया है और बल्ब सभी रोशन है..
कोई इस शहर की बिजली को बुझाता भी नही
116-
इतना चीखा हूँ ख़्वाब में उस पर
सुबहो तक मेरा गला बैठ गया
117-
हम तो मंज़र से हट गये थे अली
आईने में पड़ा रहा चेहरा
118-
तालुक़ात, मरासम, यक़ीन टूट गये
हमारे बीच मगर इश्क़ बरक़रार रहा
119-
बात अपनी भी वो रख पाया कहाँ ऐ जाफरी
और मुझ को भी कहाँ उस ने बयां होने दिया
120-
ये पैमाने भी इंसानों के अन्दर ही मुरवविज हैं
परिंदे ........ख़ूबसूरत और बदसूरत नहीं होते
121-
बड़ी हसरत से नीचे देखता है
परिंदा उड़ते उड़ते थक चूका है
122-
वो मुसवर उम्र भर,     आवारगी करता रहा
उस की हर दीवार पर, दीवार की तस्वीर थी
123-
देर तक तकते रहे सहरा को हम
और फिर आंखों में पानी आ गया
124-
यह जो इक दश्ते बे तहाशा है
इस का अपना ही इक तमाशा है
125-
तालुक नींद का पलकों से क्या है?
ये थक कर एक दोजे पर गिर्री है
126-
अजब सा चोर था ख़्वाबों में आ कर
मेरी नींद...…….चुरा कर ले गया है
127-
मुझे घेरा हुवा था दोस्तों ने
मैं ख़ुदा से बात करना चाहता था ...
128-
बहुत तलब हो तो मिलना मुझे अंधेरों में
मैं रौशनी में तो बिलकुल नज़र नहीं आता
129-
चाहने वाले तो सब मुझ से ख़फ़ा बेठे हैं
मेरे ग़ुस्से मै तुझे किस पे उतारों  आख़िर
130-
फिर यूँ हुवा के वो भी कहीं खो गया अली
फिर यूँ हुवा के मेरी भी शोहरत नहीं रही
131-
मुन्तज़िर रहती है दरवाज़े पे फिर भी जाफरी
जब के मैं ने माँ को मोबाइल भी ले कर दे दिया .
132-
मुझ को अब ख्वाब भी नहीं आते
इस क़दर ......मीठी नींद सोता हूँ
133-
हो चुकी जिस्मों जा की सैराबी
अब ये दरया यहां नहीं रहना
134/
मैं ने ही आईने पे दस्तक दी
मै ही दरवाज़ा खोलने निकला
135-
इक उचटती सी निगाह डाली थी मैं ने जाफ़री
देखते ही देखते मुझ पे वो मंज़र खुल गाया ..
136-
आसमां ....छन से टूट फोट गया
और फिर किरचियाँ बरसने लगीं
137-
हाय अफ़सोस.... के किस तेजी से दुन्या बदली
ये जो सच है ........ये कभी झूठ हुवा करता था
138-
मैं दुन्या से बहुत तंग आ चुका था
मगर फिर शायरी होने लगी थी
139-
मुझ को यारों ने दफन कर डाला
वो नही जानते के बीज हूँ में
140-
टेंशन मत ले यार, ये सिर्फ़ सिनीमा है
आख़िर में सब कुछ अच्छा हो जाता हैं
141-
बात बचपन की है इक खाला हुवा करती थी
उस पे सब मरते थे, वो मुझ पे मरा करती थी
142-
मुश्किलों से हवा को बाँधा था
लग गयी आग फिर, दरख्तों में
143-
बाद मुद्दत के आज मिलते ही, खिलखिलाया है मुस्कुराया है
आन्स्वंू को छोपाने की ख़ातिर, मैं ने भी क़ह'क़ाह लगाया है
144-
तुम से में इश्क़ कर रहा हूँ यार
और तुम दोस्ती समझते हो
145-
ये ज़मीन उतनी ही सरफ़राज़ होती है
जिस क़दर बुलंदी से आसमान गिरता है
146-
करवट बदल के सोये थे अर दुसरे के साथ
लेकन खुली जो आँख तो लिपटे हुवे मिले
147-
जब से होंटों को सी लिया है अली
मुझ में इक चीख़ सनसनाती है
148-
आख़िरश, इतनी नफ़रतों के बाद
मैं ...मोहब्बत की मौत मारा गया
149-
मेरी रिहाई पे अब जश्न ना मनाये कोई
मैं कैंद-खाने से ज़ंजीर ले के निकला
150-
ये राज़ मुझ पे बहुत जल्दी खुल गया था अली
मैं............. टूट फूट के मज़बूत होने वाला था
151
मुश्किलों से हवा को बाँधा था
लग गयी आग फिर, दरख्तों मे
152-
था निकलना कहाँ पे गुस्से को
और गुस्सा कहाँ निकाला गया
कल हलाकत हुई थी "शान्ति" की
आज "इखलाक" मार डाला गया


-लियाक़त जाफ़री