अहमद फ़राज़
वो बात बात पे देता है परिंदों की मिसाल
साफ़ साफ़ नहीं कहता मेरा शहर ही छोड़ दो
तुम्हारी एक निगाह से कतल होते हैं लोग फ़राज़
एक नज़र हम को भी देख लो के तुम बिन ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती
अब उसे रोज़ न सोचूँ तो बदन टूटता है फ़राज़
उमर गुजरी है उस की याद का नशा किये हुए
एक नफरत ही नहीं दुनिया में दर्द का सबब फ़राज़
मोहब्बत भी सकूँ वालों को बड़ी तकलीफ़ देती है
हम अपनी रूह तेरे जिस्म में छोड़ आए फ़राज़
तुझे गले से लगाना तो एक बहाना था
माना कि तुम गुफ़्तगू के फन में माहिर हो फ़राज़
वफ़ा के लफ्ज़ पे अटको तो हमें याद कर लेना
ज़माने के सवालों को मैं हँस के टाल दूँ फ़राज़
लेकिन नमी आखों की कहती है "मुझे तुम याद आते हो"
अपने ही होते हैं जो दिल पे वार करते हैं फ़राज़
वरना गैरों को क्या ख़बर की दिल की जगह कौन सी है
तोड़ दिया तस्बी को इस ख्याल से फ़राज़
क्या गिन गिन के नाम लेना उसका जो बेहिसाब देता है
हम से बिछड़ के उस का तकब्बुर बिखर गया फ़राज़
हर एक से मिल रहा है बड़ी आजज़ी के साथ
उस शख्स से बस इतना सा ताल्लुक़ है फ़राज़
वो परेशां हो तो हमें नींद नहीं आती
अब उसे रोज़ न सोचूँ तो बदन टूटता है फ़राज़
उम्र गुज़री है उसकी याद का नशा करते
बर्बाद करने के और भी रास्ते थे फ़राज़
न जाने उन्हें मुहब्बत का ही ख्याल क्यूं आया
तू भी तो आईने की तरह बेवफ़ा निकला फ़राज़
जो सामने आया उसी का हो गया
बच न सका ख़ुदा भी मुहब्बत के तकाज़ों से फ़राज़
एक महबूब की खातिर सारा जहाँ बना डाला
मैंने आज़ाद किया अपनी वफ़ाओं से तुझे
बेवफ़ाई की सज़ा मुझको सुना दी जाए
मैंने माँगी थी उजाले की फ़क़त इक किरन फ़राज़
तुम से ये किसने कहा आग लगा दी जाए
इतनी सी बात पे दिल की धड़कन रुक गई फ़राज़
एक पल जो तसव्वुर किया तेरे बिना जीने का
इस तरह गौर से मत देख मेरा हाथ ऐ फ़राज़
इन लकीरों में हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं
उसने मुझे छोड़ दिया तो क्या हुआ फ़राज़
मैंने भी तो छोड़ा था सारा ज़माना उसके लिए
ये मुमकिन नहीं की सब लोग ही बदल जाते हैं
कुछ हालात के सांचों में भी ढल जाते हैं
खाली हाथों को कभी गौर से देखा है फ़राज़
किस तरह लोग लकीरों से निकल जाते हैं
वो रोज़ देखता है डूबे हुए सूरज को फ़राज़
काश मैं भी किसी शाम का मंज़र होता
कौन देता है उम्र भर का सहारा फ़राज़
लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते हैं
मेरी ख़ुशी के लम्हे इस कदर मुख्तसिर हैं फ़राज़
गुज़र जाते हैं मेरे मुस्कराने से पहले
चलता था कभी हाथ मेरा थाम के जिस पर
करता है बहुत याद वो रास्ता उसे कहना
उम्मीद वो रखे न किसी और से फ़राज़
हर शख्स महब्बत नहीं करता उसे कहना
वो बारिश में कोई सहारा ढूँढता है फ़राज़
ऐ बादल आज इतना बरस की मेरी बाँहों को वो सहारा बना ले
गिला करें तो कैसे करें फ़राज़
वो लातालुक़ सही मगर इंतिखाब तो मेरा है
ये वफ़ा उन दिनॉन की बात है फ़राज़
जब लोग सच्चे और मकान कच्चे हुआ करते थे
दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की फ़राज़
लोगों ने मेरे घर से रास्ते बना लिए
कभी टूटा नहीं मेरे दिल से आपकी याद का तिलिस्म फ़राज़
गुफ़्तगू जिससे भी हो ख्याल आपका रहता है
फुर्सत मिले तो कभी हमें भी याद कर लेना फ़राज़
बड़ी पुर रौनक होती हैं यादें हम फकीरों की
दोस्ती अपनी भी असर रखती है फ़राज़
बहुत याद आएँगे ज़रा भूल कर तो देखो
मुहब्बत में मैंने किया कुछ नहीं लुटा दिया फ़राज़
उस को पसंद थी रौशनी और मैंने खुद को जला दिया
उस शख्स से वाबस्ता खुशफ़हमी का ये आलम है फ़राज़
मौत की हिचकी आई तो मैं समझा उसने याद किया
कभी हिम्मत तो कभी हौसले से हार गए
हम बदनसीब थे जो हर किसी से हार गए
अजब खेल का मैदान है ये दुनिया फ़राज़
कि जिसको जीत चुके उसी से हार गए
चाहने वाले मुक़द्दर से मिला करते हैं फ़राज़
उस ने इस बात को तस्लीम किया मेरे जाने के बाद
वो बाज़ाहिर तो मिला था एक लम्हे को फ़राज़
उम्र सारी चाहिए उसको भुलाने के लिए
वक़्त-ए-नज़ा है, इस कशमकश में हूँ की जान किसको दूं फ़राज़
वो भी आए बैठे हैं और मौत भी आई बैठी है
एक पल जो तुझे भूलने का सोचता हूँ फ़राज़
मेरी साँसें मेरी तकदीर से उलझ जाती हैं
सवाब समझ कर वो दिल के टुकड़े करता है फ़राज़
गुनाह समझ कर हम उन से गिला नहीं करते
मोहब्बत के अंदाज़ जुदा होते हैं फ़राज़
किसी ने टूट के चाहा और कोई चाह के टूट गया
मौसम का ऐतबार ज्यादा नहीं किया सो उसने हमसे प्यार ज्यादा नहीं किया
कुछ तो फ़राज़ हमने पलटने में देर की कुछ उसने इंतज़ार ज्यादा नहीं किया
मैं डूब के उभरा तो बस इतना ही देखा है फ़राज़
औरों की तरह तू भी किनारे पे खड़ा था
वो ये समझता है की मैं हर चेहरे का तलबगार हूँ फ़राज़
मैं देखता सभी को हूँ बस उसी तलाश में हूँ
आँखों में हया हो तो पर्दा दिल का ही काफी है फ़राज़
नहीं तो नकाबों से भी होते हैं इशारे मोहब्बत के
ये सोचा कर तेरी महफ़िल में चला आया हूँ फ़राज़
तेरी सोहबत में रहूँगा तो संवर जाऊंगा
ये ही सोच कर उस की हर बात को सच माना है फ़राज़
के इतने खूबसूरत लब झूठ कैसे बोलते होंगे
मेरे लफ़्ज़ों की पहचान अगर कर लेता वो फ़राज़
उसे मुझ से नहीं खुद से मुहब्बत हो जाती
उस की निगाह में इतना असर था फ़राज़
खरीद ली उसने एक नज़र में ज़िन्दगी हमारी
जब उसका दर्द मेरे साथ वफ़ा करता है
एक समुन्दर मेरी आँखों से बहा करता है
उसकी बातें मुझे खुशबू की तरह लगती हैं
फूल जैसे कोई सेहरा में खिला करता है
मेरे दोस्त की पहचान यही काफी है
वो हर शख्स को दानिस्ता खफा करता है
जब खिज़ां आए तो लौट आएगा वो भी फ़राज़
वो बहारों में ज़रा कम ही मिला करता है फ़राज़
अक्ल वालों के मुक़द्दर ये ज़ोक-ए-जुनूं कहाँ फ़राज़
ये इश्क वाले हैं जो हर चीज़ लुटा देते हैं
वो बेवफा न था यूँ ही बदनाम हो गया फ़राज़
हजारों चाहने वाले थे वो किस किस से वफ़ा करते
फिर इतने मायूस क्यूँ हो उसकी बेवफाई पर फ़राज़
तुम खुद ही तो कहते थे की वो सब से जुदा है
रूठ जाने की अदा हम को भी आती है फ़राज़
काश होता कोई हम को भी मनाने वाला
वो जानता था उसकी मुस्कुराहट मुझे पसंद है फ़राज़
उसने जब भी दर्द दिया मुस्कुराते हुए दिया
किस किस से मुहब्बत के वादे किये हैं तू ने फ़राज़
हर रोज़ एक नया शख्स तेरा नाम पूछता है
किताबों से दलीलें दूं या खुद को सामने रख दूं फ़राज़
वो मुझ से पूछ बैठी हैं मुहब्बत किसको कहते हैं
तुम मुझे मौक़ा तो दो ऐतबार बनाने का फ़राज़
थक जाओगे मेरी वफ़ा के साथ चलते चलते
वफ़ा की लाज में उसको मना लेते तो अच्छा था फ़राज़
अना की जंग में अक्सर जुदाई जीत जाती है
कांच की तरह होते हैं गरीबों के दिल फ़राज़
कभी टूट जाते हैं तो कभी तोड़ दिए जाते हैं
नाकाम थीं मेरी सब कोशिशें उस को मनाने की फ़राज़
पता नहीं कहाँ से सीखीं जालिम ने अदाएं रूठ जाने की
उस से बिछड़े तो मालूम हुआ की मौत भी कोई चीज़ है फ़राज़
ज़िन्दगी वो थी जो हम उसकी महफ़िल में गुज़ार आए
उम्मीद-ए-वफ़ा ना रख उन लोगों से फ़राज़
जो मिलते हैं किसी से होते हैं किसी के
हम ने सुना था की दोस्त वफ़ा करते हैं फ़राज़
जब हम ने किया भरोसा तो रिवायत ही बदल गई
बर्बाद होने के और भी रास्ते थे फ़राज़
न जाने हमें मुहब्बत का ही ख्याल क्यूँ आया
बस यही आदत उसकी मुझे अच्छी लगती है फ़राज़
उदास कर के मुझे भी वो खुश नहीं रहता
हजूम ए दोस्तों से जब कभी फुर्सत मिले
अगर समझो मुनासिब तो हमें भी याद कर लेना
हमारे बाद नहीं आएगा तुम्हे चाहत का ऐसा मज़ा फ़राज़
तुम लोगों से खुद कहते फिरोगे की मुझे चाहो तो उसकी तरह
इस तरह गौर से मत देख मेरा हाथ फ़राज़
इन लकीरों में हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं
इतना न याद आया करो कि रात भर सो न सकें फ़राज़
सुबह को सुर्ख आखों का सबब पूछते हैं लोग
कभी कभी तो रो पड़ती हैं यूँ ही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
मैं अपने दिल को ये बात कैसे समझाऊँ फ़राज़
कि किसी को चाहने से कोई अपना नहीं होता
कितना खौफ़ होता है शाम के अंधेरों में फ़राज़
पूछ उन परिंदों से जिन के घर नहीं होते
मैं वफ़ा का कौन सा सलीका इख्तियार करूं फ़राज़
उसे यकीन हो जाए के मुझे वो हर एक से प्यारा है
महफ़िल से उठ के जाना तो कोई बात नहीं थी फ़राज़
मेरा मुड़ मुड़ के देखना उसे बदनाम कर गया
मुझको मालूम नहीं हुस्न की तारीफ फ़राज़
मेरी नज़रों में हसीन वो है जो तुझ जैसा हो
कसूर नहीं इसमें कुछ भी उनका फ़राज़
हमारी चाहत ही इतनी थी की उन्हें गुरूर आ गया
समंदर में फ़ना होना तो किस्मत की कहानी है फ़राज़
जो मरते हैं किनारों पे मुझे दुःख उन पे होता हैं
तपती रही है आस की किरणों पे ज़िन्दगी
लम्हे जुदाइयों के मा - ओ साल हो गए
जो कभी हर रोज़ मिला करते थे फ़राज़
वो चेहरे तो अब ख़ाब ओ ख़याल हो गए
तू किसी और के लिए होगा समन्दर ए इश्क़ फ़राज़
हम तो रोज़ तेरे साहिल से प्यासे गुज़र जाते हैं
उसे तेरी इबादतों पे यकीन है नहीं फ़राज़
जिस की ख़ुशियां तू रब से रो रो के मांगता है
उसकी जफ़ाओं ने मुझे एक तहज़ीब सिख दी है फ़राज़
मैं रोते हुए सो जाता हूँ पर शिकवा नहीं करता
उस शख्स से वाबस्ता खुशफहमी का ये आलम है फ़राज़
मौत की हिचकी आई तो मैं समझा कि उसने याद किया
वफ़ा की आज भी क़दर वही है फ़राज़
फकत मिट चुके हैं टूट के चाहने वाले
ये कह कर मुझे मेरे दुश्मन हँसता छोड़ गए
तेरे दोस्त काफी हैं तुझे रुलाने के लिए
ये ज़लज़ले यूँ ही बेसबब नहीं आते
ज़रूर ज़मीन के नीचे कोई दीवाना तड़पता होगा
प्रस्तुति- युधिष्टर पारीक
वो बात बात पे देता है परिंदों की मिसाल
साफ़ साफ़ नहीं कहता मेरा शहर ही छोड़ दो
तुम्हारी एक निगाह से कतल होते हैं लोग फ़राज़
एक नज़र हम को भी देख लो के तुम बिन ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती
अब उसे रोज़ न सोचूँ तो बदन टूटता है फ़राज़
उमर गुजरी है उस की याद का नशा किये हुए
एक नफरत ही नहीं दुनिया में दर्द का सबब फ़राज़
मोहब्बत भी सकूँ वालों को बड़ी तकलीफ़ देती है
हम अपनी रूह तेरे जिस्म में छोड़ आए फ़राज़
तुझे गले से लगाना तो एक बहाना था
माना कि तुम गुफ़्तगू के फन में माहिर हो फ़राज़
वफ़ा के लफ्ज़ पे अटको तो हमें याद कर लेना
ज़माने के सवालों को मैं हँस के टाल दूँ फ़राज़
लेकिन नमी आखों की कहती है "मुझे तुम याद आते हो"
अपने ही होते हैं जो दिल पे वार करते हैं फ़राज़
वरना गैरों को क्या ख़बर की दिल की जगह कौन सी है
तोड़ दिया तस्बी को इस ख्याल से फ़राज़
क्या गिन गिन के नाम लेना उसका जो बेहिसाब देता है
हम से बिछड़ के उस का तकब्बुर बिखर गया फ़राज़
हर एक से मिल रहा है बड़ी आजज़ी के साथ
उस शख्स से बस इतना सा ताल्लुक़ है फ़राज़
वो परेशां हो तो हमें नींद नहीं आती
अब उसे रोज़ न सोचूँ तो बदन टूटता है फ़राज़
उम्र गुज़री है उसकी याद का नशा करते
बर्बाद करने के और भी रास्ते थे फ़राज़
न जाने उन्हें मुहब्बत का ही ख्याल क्यूं आया
तू भी तो आईने की तरह बेवफ़ा निकला फ़राज़
जो सामने आया उसी का हो गया
बच न सका ख़ुदा भी मुहब्बत के तकाज़ों से फ़राज़
एक महबूब की खातिर सारा जहाँ बना डाला
मैंने आज़ाद किया अपनी वफ़ाओं से तुझे
बेवफ़ाई की सज़ा मुझको सुना दी जाए
मैंने माँगी थी उजाले की फ़क़त इक किरन फ़राज़
तुम से ये किसने कहा आग लगा दी जाए
इतनी सी बात पे दिल की धड़कन रुक गई फ़राज़
एक पल जो तसव्वुर किया तेरे बिना जीने का
इस तरह गौर से मत देख मेरा हाथ ऐ फ़राज़
इन लकीरों में हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं
उसने मुझे छोड़ दिया तो क्या हुआ फ़राज़
मैंने भी तो छोड़ा था सारा ज़माना उसके लिए
ये मुमकिन नहीं की सब लोग ही बदल जाते हैं
कुछ हालात के सांचों में भी ढल जाते हैं
खाली हाथों को कभी गौर से देखा है फ़राज़
किस तरह लोग लकीरों से निकल जाते हैं
वो रोज़ देखता है डूबे हुए सूरज को फ़राज़
काश मैं भी किसी शाम का मंज़र होता
कौन देता है उम्र भर का सहारा फ़राज़
लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते हैं
मेरी ख़ुशी के लम्हे इस कदर मुख्तसिर हैं फ़राज़
गुज़र जाते हैं मेरे मुस्कराने से पहले
चलता था कभी हाथ मेरा थाम के जिस पर
करता है बहुत याद वो रास्ता उसे कहना
उम्मीद वो रखे न किसी और से फ़राज़
हर शख्स महब्बत नहीं करता उसे कहना
वो बारिश में कोई सहारा ढूँढता है फ़राज़
ऐ बादल आज इतना बरस की मेरी बाँहों को वो सहारा बना ले
गिला करें तो कैसे करें फ़राज़
वो लातालुक़ सही मगर इंतिखाब तो मेरा है
ये वफ़ा उन दिनॉन की बात है फ़राज़
जब लोग सच्चे और मकान कच्चे हुआ करते थे
दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की फ़राज़
लोगों ने मेरे घर से रास्ते बना लिए
कभी टूटा नहीं मेरे दिल से आपकी याद का तिलिस्म फ़राज़
गुफ़्तगू जिससे भी हो ख्याल आपका रहता है
फुर्सत मिले तो कभी हमें भी याद कर लेना फ़राज़
बड़ी पुर रौनक होती हैं यादें हम फकीरों की
दोस्ती अपनी भी असर रखती है फ़राज़
बहुत याद आएँगे ज़रा भूल कर तो देखो
मुहब्बत में मैंने किया कुछ नहीं लुटा दिया फ़राज़
उस को पसंद थी रौशनी और मैंने खुद को जला दिया
उस शख्स से वाबस्ता खुशफ़हमी का ये आलम है फ़राज़
मौत की हिचकी आई तो मैं समझा उसने याद किया
कभी हिम्मत तो कभी हौसले से हार गए
हम बदनसीब थे जो हर किसी से हार गए
अजब खेल का मैदान है ये दुनिया फ़राज़
कि जिसको जीत चुके उसी से हार गए
चाहने वाले मुक़द्दर से मिला करते हैं फ़राज़
उस ने इस बात को तस्लीम किया मेरे जाने के बाद
वो बाज़ाहिर तो मिला था एक लम्हे को फ़राज़
उम्र सारी चाहिए उसको भुलाने के लिए
वक़्त-ए-नज़ा है, इस कशमकश में हूँ की जान किसको दूं फ़राज़
वो भी आए बैठे हैं और मौत भी आई बैठी है
एक पल जो तुझे भूलने का सोचता हूँ फ़राज़
मेरी साँसें मेरी तकदीर से उलझ जाती हैं
सवाब समझ कर वो दिल के टुकड़े करता है फ़राज़
गुनाह समझ कर हम उन से गिला नहीं करते
मोहब्बत के अंदाज़ जुदा होते हैं फ़राज़
किसी ने टूट के चाहा और कोई चाह के टूट गया
मौसम का ऐतबार ज्यादा नहीं किया सो उसने हमसे प्यार ज्यादा नहीं किया
कुछ तो फ़राज़ हमने पलटने में देर की कुछ उसने इंतज़ार ज्यादा नहीं किया
मैं डूब के उभरा तो बस इतना ही देखा है फ़राज़
औरों की तरह तू भी किनारे पे खड़ा था
वो ये समझता है की मैं हर चेहरे का तलबगार हूँ फ़राज़
मैं देखता सभी को हूँ बस उसी तलाश में हूँ
आँखों में हया हो तो पर्दा दिल का ही काफी है फ़राज़
नहीं तो नकाबों से भी होते हैं इशारे मोहब्बत के
ये सोचा कर तेरी महफ़िल में चला आया हूँ फ़राज़
तेरी सोहबत में रहूँगा तो संवर जाऊंगा
ये ही सोच कर उस की हर बात को सच माना है फ़राज़
के इतने खूबसूरत लब झूठ कैसे बोलते होंगे
मेरे लफ़्ज़ों की पहचान अगर कर लेता वो फ़राज़
उसे मुझ से नहीं खुद से मुहब्बत हो जाती
उस की निगाह में इतना असर था फ़राज़
खरीद ली उसने एक नज़र में ज़िन्दगी हमारी
जब उसका दर्द मेरे साथ वफ़ा करता है
एक समुन्दर मेरी आँखों से बहा करता है
उसकी बातें मुझे खुशबू की तरह लगती हैं
फूल जैसे कोई सेहरा में खिला करता है
मेरे दोस्त की पहचान यही काफी है
वो हर शख्स को दानिस्ता खफा करता है
जब खिज़ां आए तो लौट आएगा वो भी फ़राज़
वो बहारों में ज़रा कम ही मिला करता है फ़राज़
अक्ल वालों के मुक़द्दर ये ज़ोक-ए-जुनूं कहाँ फ़राज़
ये इश्क वाले हैं जो हर चीज़ लुटा देते हैं
वो बेवफा न था यूँ ही बदनाम हो गया फ़राज़
हजारों चाहने वाले थे वो किस किस से वफ़ा करते
फिर इतने मायूस क्यूँ हो उसकी बेवफाई पर फ़राज़
तुम खुद ही तो कहते थे की वो सब से जुदा है
रूठ जाने की अदा हम को भी आती है फ़राज़
काश होता कोई हम को भी मनाने वाला
वो जानता था उसकी मुस्कुराहट मुझे पसंद है फ़राज़
उसने जब भी दर्द दिया मुस्कुराते हुए दिया
किस किस से मुहब्बत के वादे किये हैं तू ने फ़राज़
हर रोज़ एक नया शख्स तेरा नाम पूछता है
किताबों से दलीलें दूं या खुद को सामने रख दूं फ़राज़
वो मुझ से पूछ बैठी हैं मुहब्बत किसको कहते हैं
तुम मुझे मौक़ा तो दो ऐतबार बनाने का फ़राज़
थक जाओगे मेरी वफ़ा के साथ चलते चलते
वफ़ा की लाज में उसको मना लेते तो अच्छा था फ़राज़
अना की जंग में अक्सर जुदाई जीत जाती है
कांच की तरह होते हैं गरीबों के दिल फ़राज़
कभी टूट जाते हैं तो कभी तोड़ दिए जाते हैं
नाकाम थीं मेरी सब कोशिशें उस को मनाने की फ़राज़
पता नहीं कहाँ से सीखीं जालिम ने अदाएं रूठ जाने की
उस से बिछड़े तो मालूम हुआ की मौत भी कोई चीज़ है फ़राज़
ज़िन्दगी वो थी जो हम उसकी महफ़िल में गुज़ार आए
उम्मीद-ए-वफ़ा ना रख उन लोगों से फ़राज़
जो मिलते हैं किसी से होते हैं किसी के
हम ने सुना था की दोस्त वफ़ा करते हैं फ़राज़
जब हम ने किया भरोसा तो रिवायत ही बदल गई
बर्बाद होने के और भी रास्ते थे फ़राज़
न जाने हमें मुहब्बत का ही ख्याल क्यूँ आया
बस यही आदत उसकी मुझे अच्छी लगती है फ़राज़
उदास कर के मुझे भी वो खुश नहीं रहता
हजूम ए दोस्तों से जब कभी फुर्सत मिले
अगर समझो मुनासिब तो हमें भी याद कर लेना
हमारे बाद नहीं आएगा तुम्हे चाहत का ऐसा मज़ा फ़राज़
तुम लोगों से खुद कहते फिरोगे की मुझे चाहो तो उसकी तरह
इस तरह गौर से मत देख मेरा हाथ फ़राज़
इन लकीरों में हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं
इतना न याद आया करो कि रात भर सो न सकें फ़राज़
सुबह को सुर्ख आखों का सबब पूछते हैं लोग
कभी कभी तो रो पड़ती हैं यूँ ही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
मैं अपने दिल को ये बात कैसे समझाऊँ फ़राज़
कि किसी को चाहने से कोई अपना नहीं होता
कितना खौफ़ होता है शाम के अंधेरों में फ़राज़
पूछ उन परिंदों से जिन के घर नहीं होते
मैं वफ़ा का कौन सा सलीका इख्तियार करूं फ़राज़
उसे यकीन हो जाए के मुझे वो हर एक से प्यारा है
महफ़िल से उठ के जाना तो कोई बात नहीं थी फ़राज़
मेरा मुड़ मुड़ के देखना उसे बदनाम कर गया
मुझको मालूम नहीं हुस्न की तारीफ फ़राज़
मेरी नज़रों में हसीन वो है जो तुझ जैसा हो
कसूर नहीं इसमें कुछ भी उनका फ़राज़
हमारी चाहत ही इतनी थी की उन्हें गुरूर आ गया
समंदर में फ़ना होना तो किस्मत की कहानी है फ़राज़
जो मरते हैं किनारों पे मुझे दुःख उन पे होता हैं
तपती रही है आस की किरणों पे ज़िन्दगी
लम्हे जुदाइयों के मा - ओ साल हो गए
जो कभी हर रोज़ मिला करते थे फ़राज़
वो चेहरे तो अब ख़ाब ओ ख़याल हो गए
तू किसी और के लिए होगा समन्दर ए इश्क़ फ़राज़
हम तो रोज़ तेरे साहिल से प्यासे गुज़र जाते हैं
उसे तेरी इबादतों पे यकीन है नहीं फ़राज़
जिस की ख़ुशियां तू रब से रो रो के मांगता है
उसकी जफ़ाओं ने मुझे एक तहज़ीब सिख दी है फ़राज़
मैं रोते हुए सो जाता हूँ पर शिकवा नहीं करता
उस शख्स से वाबस्ता खुशफहमी का ये आलम है फ़राज़
मौत की हिचकी आई तो मैं समझा कि उसने याद किया
वफ़ा की आज भी क़दर वही है फ़राज़
फकत मिट चुके हैं टूट के चाहने वाले
ये कह कर मुझे मेरे दुश्मन हँसता छोड़ गए
तेरे दोस्त काफी हैं तुझे रुलाने के लिए
ये ज़लज़ले यूँ ही बेसबब नहीं आते
ज़रूर ज़मीन के नीचे कोई दीवाना तड़पता होगा
प्रस्तुति- युधिष्टर पारीक