शनिवार, 27 दिसंबर 2014

दिन है ये बहार के फूल चुन ले प्यार/ रफ़ी साहब

फ़िल्म -हनीमुन(1973)
गीतकार -योगेश
संगीतकार -उषा ख़न्ना
गायक - रफ़ी साहब

दिन है ये बहार के फूल चुन ले प्यार के
ओ साथ ओ साथी हो ओ साथ ओ साथी हो
दिन है ये बहार के फूल चुन ले प्यार के
ओ साथ ओ साथी हो ओ साथ ओ साथी हो..

तेरे हँसते होंठों से बिछड़े तेरे गीत क्यों
बरसे सावन प्यार का तरसे तेरे प्रीत क्यों
बीत ना जाए कहीं प्यार का सावन यूँही 
ओ साथ ओ साथी हो ओ साथ ओ साथी हो..,

शायर कहता है तुझे सहमा-सहमा दिल तेरा
तेरी ग़ुज़री ज़िन्दगी थामें ना आँचल तेरा
प्यार जो करते है वो यँू ही नही ड़रते है वो
ओ साथ ओ साथी हो ओ साथ ओ साथी हो

दुल्हन बनकर ज़िन्दगी चलती तेरे साथ
बँधकर वाहे थाम ले रुकने की क्या बात है
आज क्यों है दुरियाँ क्यों है ये मजबुरीयाँ
ओ साथ ओ साथी हो ओ साथ ओ साथी हो...

होना था जो वो हो गया साथी अब ना सोच तू
कहकर मन के भेद ये हल्का करले बोझ तू
ये ख़ामोशी तोड़ दे ये उदासी छोड़ दे
ओ साथ ओ साथी हो ओ साथ ओ साथी हो...


                                  प्रस्तुति - युधिष्टर पारीक


सोमवार, 22 दिसंबर 2014

DOSTI  ROHIT YUDRAJ 

दुनिया के सबसे बेहतरीन रिश्तों में एक है दोस्ती का रिश्ता। एक सही और अच्छा दोस्त हमारी जिंदगी बदलने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है।  

एक अच्छा और सच्चा दोस्त वह होता हे जो आपकी राहों में आई मुश्किलों का हल निकालते हैं। एक सच्चा दोस्त वह है जो आपके दिल की बात को समझ पाए ओर आपका संबल बढाकर आपको सही रास्ता दिखाए। 

दोस्तो का न होना ग़ुरबत व तन्हाई है” और ग़रीब व तन्हा हक़ीक़त में  वह शख़्स है जिसका कोई दोस्त न हो। 

बदकिस्मत है वोह  शख़्स  जो किसी को अपना दोस्त न बना सके और उससे भी ज़्यादा बदकिस्मत  वह है जो बने बनाये दोस्तो से भी हाथ धो बैठे ” 

“ऐसे अफ़राद की दोस्ती के तलबगार न बनो जो तुमसे पीछा छुड़ाना चाहते हों। और अगर कोई शख़्स तुम्हारी दोस्ती का तलबगार हो तो उसे मायूस न करो क्योकि इस तरह तुम एक अच्छे साथी से महरूम हो जाओगे।” 

“ जो तुम्हारी तरफ दोस्ती का हाथ बढाए, उससे इनकार करना एक बड़ा नुकसान है  और जो तुमसे  दोस्ती ना करना चाहे उस से दोस्ती करने की कोशिश ख़ुद को ज़लील करना है। ” 

शनिवार, 20 दिसंबर 2014

युध्द राज रोहित
हमारी दोस्ती..
आखिर क्या है ये रिश्ता, बताओ इसकी खासियत क्या है,
समन्दर ने कहा, कि दोस्ती मेरी घहराईयों में छुपा एक सीपी है,
जिसमें सच्चाई की भावना का मोती है दोस्ती,
आकाश ने कहा कि दोस्ती का रिश्ता मेरी ऊँचाईयों की तरह असीम है,
नभ मे स्वछंद विचरते पक्षियों की आज़ादी की भावना का नाम है दोस्ती,
शायर ने कहा कि दोस्ती दुनिया का सबसे हसीन जज़्बा है,
नज़्म का एक शेर है, गीत का एक खूबसूरत अन्तरा है दोस्ती,
माली ने कहा कि दोस्ती वो फूल है जो पूरे बाग को हसीन बना दे,
चारो तरफ झट से फैल जाने वाली खुशबु है दोस्ती,
मोहब्बत ने कहा कि दोस्ती मुझ से भी हसीन है,
मेरा एक रुप भगवान तो मेरी शुरुआत है दोस्ती,
नफरत ने कहा कि दोस्ती और प्यार तो मुझे भी खुद में समा लेते हैं,
नफरत से भी नफरत ना करे, ऐसी है दोस्ती,
मैं क्या कहूँ, दोस्ती तो बस विश्वास का नाम है,
मुझ से नहीं मेरे दोस्त से पूछो कि आखिर क्या है ये दोस्ती
ये दोस्ती

मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

युध्द राज रोहित 

बचपन की दोस्ती सबसे पक्की और स्वार्थरहित मानी जाती है, जिसमें न कोई फायदा होता है और न ही कोई कारण। वो तो प्यार से भरा एक रिश्ता होता है। बड़े होने के साथ जहां हम हर रिश्ता फायदा और नुकसान सोचकर बनाते हैं वहीं बचपन की दोस्ती सिर्फ और सिर्फ विश्वास और प्यार से भरपूर होती है। बचपन का वो हमराज जिंदगी में जितनी भी परेशानी आ जाए आपको कभी अकेला नहीं 
महसूस होने देता है। शायद इसीलिए बचपन की दोस्ती हर किसी के लिए बहुत अनमोल होती है।


मुहासरा / अहमद फ़राज़

मेरे ग़नीम ने मुझको पयाम भेजा है
कि हल्क़ाज़न हैं मेरे गिर्द लश्करी उसके
फ़सीले-शहर के हर बुर्ज, हर मीनार पर
कमां-बदस्त सितादा  है अस्ककी उसके

वह बर्क़ लहर बुझा दी गई जिसकी तपिश
वजूदे-ख़ाक में आतिशफ़िश़ां जगाती है
बिछा दिया गया बारूद उसके पानी में
वो जूएआब जो मेरी गली को आती है

सो शर्त यह है जो जां की अमान चाहते हो
तो अपने लौहो क़लम क़त्लगाह में रख दो
वगर्ना अबके निशान कमानदारों का
बस एक तुम हो,सो ग़ैरत को राह में रख दो

यह ़शर्तनामा जो देखा तो ऐलची से कहा
उसे ख़बर नहीं तारीख़ क्या सिखाती है
कि रात जब किसी ख़ुर्शीद को शहीद करे
तो सुबह इक नया सूरज तराश लाती है

सो यह जवाब है मेरा मेरे अदू के लिए
कि मुझको हिर्स-करम है न ख़ौफ़े-ख़म्याज़ा
उस है सतवते-शमशीर पर घमंड बहुत
उस शिकवाए  क़लम का नहीं है अंदाज़ा

मेरा क़लम नी किरदार उस मुहाफ़िज का
जो अपने शहर को महसूर करके नाज़ करे
मेरा क़लम नहीं कासा किसी सुबुक सर का
जो गासिबों को क़सीदों से सरफ़राज़ करे

मेरा क़लम नही उस नक़बज़न का दस्ते-हवस
जो अपने घर की ही छत में शगाफ़ डालता है
मेरा क़लम नही उस दुज़्द्े नीमशब  का रफ़ीक
जो बेचराग़ घरो़ं पर कमंद उछालता है ।

मेरा क़लम नही तस्बीह उस मुबल्लिग की
जो बंदगी का भी हरदम हिसाब रखता है
मेरा क़लम नहीं मीज़ान ऐसे आदिल की
जो अपने चेहरे पर दोहरा नक़ाब रखता है ।

शब्दार्थ:
मुहासरा -  घेराव
1- ग़नीम - शत्रु  2- हल्क़ाज़न - घेरे हुए
3 -गिर्द लश्करी-सैनिक  4- फ़सीले शहर - नगर की चारदीवारी 5 कमां-बदस्त-कमान हाथ में लिए हुए
 6 सितादा - तैयार 7अस्ककी - सैनिक  8-बर्क़ लहर- बिजली की लहर, 9- वजूदे-ख़ाक - मिट्टी का पुतला, 10- आतिशफ़िश़ां - ज्वालामुखी, 11 जूएआब - नहर 12- ऐलची - दूत 13- ख़ुर्शीद - सूर्य 14- अदू - शत्रु, 15- हिर्स-करम - पुरस्कार की लालसा, 16- ख़ौफ़े-ख़म्याज़ा - प्रतिफल का ड़र, 17- सतवते-शमशीर - तलवार की धाक, 18- मुहाफ़िज - रक्षक,19- महसूर - घेरकर, 20- कासा - कवच, 21- सर - अभिमानी, 22- गासिबों - अतिक्रमी,
23- सरफ़राज़ - मशहूर, 24- दस्ते-हवस - वासना का हाथ, 25- शगाफ़ - दरार, 26- नीमशब - आधी रात को चोरी करने वाला, 27- तस्बीह - माला, 28- मुबल्लिग - धर्म उपदेशक, 29- मीज़ान - तराज़ू, 30- आदिल - न्यायाधीश,