क़ासिद पे कुछ शेर ...
1-
देख क़ासिद को मिरे यार ने पुछा 'ताँबा'
क्या मिरे हिज्र में जीता है वो ग़मनाक हनूज
-ताँबा अब्दुल हई
2-
क़सिद को उस ने जाते ही रुख्सत किया था
बद-जात माँदगी के बहाने से रह गया
-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
3-
पहुंचे न वहाँ तक ये दुआ मांग रहा हूँ
क़ासिद को उधर भेज के ध्यान आए है क्या-क्या!
~ मीर ज़मीन अली जलाल
4-
क़ासिद की गुफ्तगू से तसल्ली हो किस तरह
छिपती नहीं वो जो तेरी ज़ुबान की नहीं..
~ दाग़
5-
वो और वादा वस्ल का.!? क़ासिद, नहीं, नहीं!
सच-सच बता, ये लफ़्ज़ उन्ही की ज़ुबाँ के हैं??
~ अमीर मीनाई
6-
ग़ैर के धोखे में ख़त ले के मेरा क़ासिद से
पढने को पढ़ तो लिया, नाम मगर छोड़ दिया..
~ निज़ाम रामपुरी
7/
क़ासिद के होश गम थे, ये तुर्फ़ा माजरा था
कहता था कुछ ज़ुबानी, और ख़त में कुछ लिखा था..
~ ज़की
8-
क़यामत है, ये कह कर उस ने लौटाया है क़ासिद को
कि उनका तो हर इक ख़त आख़िरी पैग़ाम होता है..!
~ शेरी भोपाली
9-
तू देख रहा है जो मेरा हाल है, क़ासिद,
मुझको यही कहना है, मुझे कुछ नहीं लिखना..
~ क़ैफ़ देहलवी
10-
क़ासिद, पयाम-ए-शौक़ को देना बहुत न तूल
कहना फ़क़त ये उन से कि आँखें तरस गईं...
~ जलील मानिकपुरी
11-
पयाम-ए-दोस्त हुआ क़ासिदों को वज्ह-ए-शरफ़
नसीम-ए-मिस्र से इज्ज़त है कारवाँ के लिए..
~ मुस्तफ़ा खान शेफ़्ता
12-
यूँ बहार आई है इस बार कि जैसे क़ासिद
कूचा-ए-यार से बे-नैल-ए-मराम आता है
~ फ़ैज़
13/
खून-ए-क़ासिद को वो सफ़्फ़ाक समझता है हलाल
किसी ग़म्माज़ से भिजवाएंगे पैग़ाम को हम
~ हैदर अली आतिश
14-
सब मेरा हाल वहां कैसे कहेगा क़ासिद
तू तो सुनता है नहीं बात मेरी थोड़ी सी..
~ निज़ाम रामपुरी
15-
ये एक बात है क़ासिद जो भेजता हूँ उन्हें
वगरना दिल में जो उनके है, वो यहाँ मुंह में..!
~ निज़ाम रामपुरी
16-
उनके लाने की न सूझी तुझे क़ासिद तदबीर?
झूठ-सच, कोई तो अफसाना बनाया होता..!
~ जलील मानिकपुरी
17-
क़ासिद, कहाँ चला है? मुझे भी ख़बर तो दे
यक-दम तू बैठ जा कि मुझे तुझ से काम है..!
~ शेख़ ज़हूरुद्दीन हातिम
18-
मेरे लिए भी ख्व़ाब थे उसने रखे हुए कहीं
शहर में उनको ढूँढने क़ासिद-ए-बे-हुनर गए..
~ किश्वर नाहीद
19-
ख़ुदा मालूम क़ासिद क्या सुनाए, दिल धड़कता है
ये कहता है कि पैग़ाम-ए-ज़ुबानी ले के आया हूँ..!
~ जलील मानिकपुरी
20-
ख़त-ए-शौक़ को पढके क़ासिद से बोले
ये है कौन दीवाना ख़त लिखने वाला..?
~ साइल देहलवी
21-
लगा के पाँव में उसके उड़ाऊँ क़ासिद को
अगर मुझे तेरे तौसन की गर्द-ए-राह मिले..
~ दाग़ देहलवी
22-
कभी उस तग़ाफ्फ़ुल-मनुश की तरफ से
न क़ासिद, न नामा, न पैग़ाम आया...
~ नज़ीर अकबराबादी
23-
उस के दर तक पहुँच गया कासिद
आगे तक़दीर की रसाई है..
~ दाग़ देहलवी
24-
जिससे तस्कीन हो मेरी क़ासिद
ऐसी तो बात तू कहता ही नहीं..!!?
~ निजाम रामपुरी
25-
‘मुसहफ़ी’, बात तो कहने दो ज़रा क़ासिद को
पहले ही हर्फ़ में तुम इतना न घबराओ, सुनो..
~ मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
26-
मेरी किस्मत से भूला नाम क़ासिद,
न लिखते तुम तो वर्ना उम्र भर ख़त..
~ मिर्ज़ा आस्मां जाह अंजुम
27/
आ जाएँ वो मगर मुझे आता नहीं यकीं
क़ासिद का जो है कौल ओ ख़त में रक़म भी है..
~ निजाम रामपुरी
28-
जवाब-ए-ख़त का न क़ासिद से माजरा पूछो
है साफ़ चेहरे से ज़ाहिर कि शर्मसार आया..
~ शाद अज़ीमाबादी
29-
मज़मून सूझते हैं हज़ारों नए-नए
क़ासिद, ये ख़त नहीं, मेरे ग़म की किताब है!
~ निज़ाम रामपुरी
30-
है सुब्ह से कुछ आज मेरे दिल को बशाशत
उस कूचे से कासिद तो न ख़त ले के चला हो..!?
~ मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
31-
है सुब्ह से कुछ आज मेरे दिल को बशाशत
उस कूचे से कासिद तो न ख़त ले के चला हो..!?
~ मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
32-
पढ़ के क़ासिद ख़त मेरा उस बद-ज़ुबाँ ने क्या कहा..?
क्या कहा, फिर कह, बुत-ए-ना-मेहरबाँ ने क्या कहा..??
~ क़ायम चांदपुरी
33-
जो तुम बे-ए'तिनाई से न लिखते
न देता हम को क़ासिद फेंक कर ख़त..
~ मिर्ज़ा असमान जाह अंजुम
34-
जब से आग़ोश-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त में आ बैठा हूँ
ढूँढ़ते फिरते हैं क़ासिद तेरे पैग़ाम लिए...
~ अख्तर संदेलवी
35-
मैं किस के हाथ भेजूं उसे आज की दुआ?
क़ासिद, हवा, सितारा, कोई उसके घर न जाए..!
~ परवीन शाकिर
36-
मुन्तज़िर हैं जान-ए-बर-लब-आमदा
देखिए, कब फिर के क़ासिद आएगा..
~ शाद अज़ीमाबादी
37-
आशिकों पर ज़ुल्म करना छोड़ दें..
क्यूँ बे कासिद, जा के समझाता नहीं..?
~ अख्तर शीरानी
38-
दीवार सुर्ख खून से देखी, पता मिला
क़ासिद ठहर गया दर-ए-जानाँ के सामने..
~ रजब अली बेग सुरूर
39-
क्या जाने क्या लिखा था उस इज्तिराब में
क़ासिद की लाश आई है ख़त के जवाब में
-मोमिन
40-
क़ासिद तुम काहे को भेजोगे मेरे पास
नाम: तो वो लिखे जिसे याद आता हो कोई
'मुसहफी'
41-
क़ासिद आया है वहाँ से तू ज़रा थम तो सही
बात तो करने दे उससे, ऐ दिल-ए-बेताब मुझे
- 'तस्कीन'
42-
क़ासिद तू लिये जाता है पैग़ाम हमारा
पर डरते हुए लीजियो वाँ नाम हमारा
- 'आसिफ़'
43-
तू देख रहा है जो मिरा हाल है क़ासिद
मुझको यही कहना है कि मैं कुछ नही कहता
- 'क़ैफ़ी'
44-
क़ासिद पैयाम-ए-शौक़ को देना बहुत न तुल
कहन फ़क़त यह उनसे कि आँख तरस गई
'जलील'
45-
क़ासिद पैयाम उनका न कुछ देर अभी सुना
रहने दे मह््-ए-लज़्ज़त-ए-ज़ौक़-ए-ख़बर मुझे
'असर' लखनवी
46-
क़ासिद तेरी हड़ताल के क़ुरबान जाइए
वो आगए है ख़ुद मिरे ख़त के जवाब में
'साजन'
47-
क़ासिद मगर अग़ियार का लिक्खा है जहाँ हाल
पाता हूँ वहाँ ज़ोर-ए-क़लम और जियाद:
-दाग
48-
ख़त में लिखा है यार ने मुझे सलाम अलैक
क़ासिद मिरो तरफ़ से भी कह दीजो पयाम-ए-शौक़
'असीर'
49-
पहुँचे न वहाँ तक यह दुआ माँग रहा हूँ
क़ासिद को उधर भेज के ध्यान आए है क्या-क्या
-'जलाल' लखनवी
50-
आती है बात बात मुझे बार बार याद
कहता हूँ दौड़-दौड़कर क़ासिद राह में
-दाग
51-
क़ासिदों के पाँव तोड़े बदगुमानी ने तिरी
ख़त दिया लेकिन न बतलाया निशान-ए-कू-ए-दोस्त
शेरी' भोपाली
52-
कय़ामत है यह कहकर उसने लौटाया है क़ासिद को
कि उनका तो हर इक ख़त आख़िरी पैग़ाम होता है
'शेरी' भोपाली
53-
क़ासिद नहीं ये काम तेरा अपनी राह ले
उस का पयाम दिल के सिवा कौन ला सके
मीर दर्द
54-
तअम्मुल तो था उन को आने में क़ासिद
मगर ये बता तर्ज़-ए-इन्कार क्या थी
"इक़बाल"
55-
समझा दे उस को जा के ये इक बात ऐ सबा
क़ासिद अभी गया है, अभी होगा राह मे
"दाग़"
56-
अश्कों के निशाँ पर्चा-ए-सादा पे हैं क़ासिद
अब कुछ न बयाँ कर ये इबारत ही बहुत है
एहसान अली खान
57-
कोई नाम-ओ-निशाँ पूछे तो ऐ क़ासिद बता देना
तखल्लुस "दाग़" है और आशिक़ों के दिल में रहते हैं
58-
तर्क कर चुके क़ासिद कु-ए-ना-मुरादाँ को
कौन अव ख़बर लावे शहर-ए-आश्राई की
59-
नामे का मिरे ये था जवाब ऐ मह-ए-नौ-ख़त
ये क़ाएदा-ए-क़ासिद-ओ-मक्तूब न होता
हसरत अज़ीमाबादी
60-
एक मुद्दत से न क़ासिद है, न ख़त है न पयाम,
अपने वादे को तू कर याद मुझे याद न कर.
- जलील मानिकपुरी
61-
क़ासिद है तू ख़ुदा का अगर चिट्ठियाँ ही बाँट,
उन चिट्ठियों पे तू लिखा अपना पता न देख.
- सुरेन्द्र चतुर्वेदी
62-
ओ क़ासिद जब तू जाए मेरे दिलदार के आगे,
अदब से सर झुकाना हुस्न की सरकार के आगे,
मगर मुँह से न कह पाए तो आँखों से बयाँ करना,
मेरे ग़म का हर एक क़िस्सा मेरे ग़म-ख्वार के आगे.
- Unknown
63-
फिरता है मेरे दिल में कोई हर्फ़-ए-मुद्दा,
क़ासिद से कह दो और न जाए ज़रा सी देर.
- दाग देहलवी
64-
नामे का मिरे ये था जवाब ऐ मह-ए-नौ-ख़त
ये क़ाएदा-ए-क़ासिद-ओ-मक्तूब न होता
हसरत अज़ीमाबादी
65-
कभी लिखता हूँ मैं उन को अगर ख़त
चला जाता है क़ासिद भूल कर ख़त
-मिर्ज़ा असमान जाह अंजुम
66-
क़ासिद को उस ने जाते ही रुख़्सत किया था लेक
बद-ज़ात माँदगी के बहाने से रह गया
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
67-
ख़त के पुर्ज़े आये हैं क़ासिद का सर तस्वीर-ए-ग़ैर,
ये है भेजा उस सितमगर ने मेरे ख़त का जवाब.
- Unknown
68-
पयाम-ए-दोस्त हुआ क़ासिदों को वज्ह-ए-शरफ़
नसीम-ए-मिस्र से इज़्ज़त है कारवाँ के लिए
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
69-
ये नाज़नीं कि जिसे क़ासिद-ए-बहार कहें
जवाँ हसीना कि फ़ितरत का शाहकार कहीं
नज़ीर मिर्ज़ा बर्लास
70-
ओ क़ासिद जब तू जाए मेरे दिलदार के आगे,
अदब से सर झुकाना हुस्न की सरकार के आगे,
मगर मुँह से न कह पाए तो आँखों से बयाँ करना,
मेरे ग़म का हर एक क़िस्सा मेरे ग़म-ख्वार के आगे.
परवीन शाकिर
71-
क़त्ल-ए-क़ासिद पे कमर बाँधी है 'शोला' उस ने
ख़त किताबत की मुलाक़ात है ये भी न सही
शोला अलीगढ़ी
72-
इश्क़ फ़र्मूदा-ए-क़ासिद से सुबुक-गाम-ए-अमल
अक़्ल समझी ही नहीं म'अनी-ए-पैग़ाम अभी
अल्लामा इक़बाल