मंगलवार, 19 मई 2015

सईद कैस...

28 मई, 1927 को लाहौर में जन्मे सईद क़ैस को पढ़ने-लिखने का बचपन से ही शौक़ रहा। सन् 1950 से ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी ग़जलें प्रकाशित होती रही हैं। बकौल क़ैस ‘शायरी के फ़न में मैं अच्छे शेर को हमेशा अच्छा ही ख्याल करता हूं’। जमीन से जुड़े शायर सईद क़ैस की शायरी मनोभावों को कुरेदती है और ज्यादातर आम जिंदगी की असलियत का आईना होती है।


1-
कभी-कभी तो सितारा-शनास लगता हूं,
मैं ग़म पहन के बड़ा ख़ुश-लिबास लगता हूं।

मिरे लहू की ये तल्खी भी कुछ अजब शै है,
मैं दोस्तों को सरापा मिठास लगता हूं।

मिरे वुजूद में हैं गार मेरी सोचों के,
मैं अपनी रूह का कोई हिरास लगता हूं।

वो गुलिस्तां में है इक मीठे पानियों की नदी,
मैं रेत के किसी टीले की प्यास लगता हूं।

ये दूरियां तो फ़क़त रास्तों की हैं, ऐ दोस्त,
वगर्ना मैं तो तिरे आस-पास लगता हूं।

रहे-वफ़ा में मिरे ऩक्शे-पा सलामत है,
मैं माजियों के सफ़र का क़यास लगता हूं।

लहू-लहू मिरी सोचें हैं, जख्म-जख्म खयाल,
मैं तेरे हुस्ने-बदन का लिबास लगता हूं।



मायने:
सितारा-शनास=ज्योतिषी, ग्रहों को पहचानने वाला/ सरापा= सिर से पांव तक/ गार=गुफ़ा/ हिरास=भय/ वगर्ना=वरना/ माजियों=अतीत/ क़यास= विचार, अंदाज

2-
मुहब्बतो का वो छोटा सा सिलसिला ही गया
वो अजनबी था मिरे शहर से चला ही गया

ज़रा सी देर को उसका ख्याल आया तो
वो रौशनी की तरह मुझमे फैलता ही गया

जो प्यास बन के मेरे जेहन में रहा बरसो
वो शख्स खुद मुझे दरियाओ से मिला ही गया

वो संग-संग था शीशे की आदतों वाला
मेरे करीब से गुजरा तो टूटता ही गया

मै जब भी कैस सफर के लिये रवाना हुआ
वो दूर तक मुझे रस्ते में देखता ही गया -

सईद कैस

3-
एक नमी सी है आँख में झरना वरना क्या है।
सोच रहे हैं इन जख्मों ने भरना वरना क्या है।

छुप छुप कर रोने की आदत छूट गई है हमसे
दिल के एक जरा से खेल में हरना वरना क्या है।

तुम तो दरिया वाले हो तुमको हम बतलाएं क्या
हमने अपने रेत सराब में तरना वरना क्या है।

बारिश का मौसम जब था तो सोचा वोचा कब था
अब दिल विल का बर्तन वर्तन भरना वरना क्या है।

इक वक्फा है कैस जिसे हम मौत समझ लेते हैं
जीस्त का नाम बदल देते हैं मरना वरना क्या है।

4-
सोने के दिल मिट्टी के घर पीछे छोड़ आए है
जो गलियाँ वो शहर के मंज़र पीछे छोड़ आए है

अपने आइने को हम नें  रोग लगा रक्खा है
क्या क्या चेहरे हम शीशागर पीछे छोड़ आए है

तुम अपने दरिया का रोना रोने आ जाते हो
हम तो अपने सात समंुदर पीछे छोड़ आए है

देखा हम ने अपनी जान पर क्या ज़ुल्म किया
फूल सा चेहरा चाँद सा पैकर पीछे छोड़ आए है

हम भी क्या पागल थे अपने प्यार की सारी पूँजी
उसकी इक इक याद बचा कर पीछे छोड़ आए है

मंजिल से अब दूर निकल आए है 'कैस' तो खुश है
हम-साए  के  कुते  का  डर  पीछे  छोड़  आए  है



प्रस्तुति  - युध्द राज


जब चलते चलते, मेरे पाँव थक जाते हैं ..

लापरवाही से, मेरे घाव पक जाते है ...

बह जाते हैं, अपने सब! ढह जाते सपने जब ...

जब दिल के समन्दर में भीषण बाढ़ आती है ...

सच बताऊँ दोस्तों "माँ" बहुत याद आती है ..!!!!

युधिष्टर पारीक
रफ़ी साहब के कुछ हिट गीत

L-तुम्हारे बिन गुजारे है कई दिन अब न गुजरेंगे-2
जो दिल में आ गई है आज हम वो कर ही गुजरेंगे ,
R-खबर क्या थी के अपने भी सितारे ऐसे बिगड़ेंगे ,
के जो पूजा के काबिल है वही यूँ रंग बदलेंगे ......
तुम्हारे बिन गुजारे है कई दिन .....

L -कई दिन बाद फिर ,यह साज यह सिंगार पाया है
   आप यूं इनकार कर देंगे ...
R-तुम्हे कैसे बताएं ,क्या हमारे साथ गुजरी है ,
तुम्हारे ख्वाब टूटेंगे ,अगर सच बात कह देंगे .......
तुम्हारे बिन गुजारे है कई दिन .....

L-तुम्हारी एक न मानेंगे करेंगे आज मनमानी
 बहुत तरसाया है तुमने ,नहीं अब और तरसेंगे
R-सताया तो नहीं करते ,कभी किस्मत के मारों को
कीसी की जान जाएगी ,किसी के अरमान निकलेंगे
तुम्हारे बिन गुजारे है कई दिन ....

आ्आआआ.....................
L- मनाया तुम को कितनी बार ,लेकिन तुम नहीं माने
तो अब मजबूर होकर हम ,शरारत पर भी उतरेंगे
R- हकीकत क्या है ये पहले बता देते तो अच्छा था
खुद अपने जाल से भी हम न जाने कैसे निकलेंगे
तुम्हारे बिन गुजारे है कई दिन .......


---------------------
फिल्म - आत्माराम(1979)
गीत - विघ्वेश्वर शर्मा
संगीत - शंकर (शंकर-जय किशन)
गायक - लता जी/रफ़ी साहब

2-
या इलाही, या इलाही, या इलाही,या इलाही
एक हसीना ने मचाई है तबाही .. ह्ह्ह्ह्ह्ह्हो
या इलाही...............

उफ़ देखो क्या मचलती चलती है-2
मुड़-मुड़ के दिल मसलती चलती है
इसको बहला गई, उसको तड़पा गई
सबको घायल किया, सबको बहका गई
राहें भुलना ना जायें कही राही राही राही
या इलाही....,

हाये तौबा क्या नज़र में क्या मस्ती है-2
रह रह के वो निगाह डँसतीं है
गौरा-गौरा बदन आरज़ू का चमन
शौक अगड़ाईया मौज गंगो जमन
ज़ुल्फ़ जैसे गुनाहों की सियाही-2
ह्ह्ह्ह्ह्ो.......या इलाही.......

दिलवाले कब सितम से डरतें हैं-2
मरतें हैं फिर भी प्यार करतें हैं
रुक गयें क्यों कदम आ करीब आ सनम
सर पे रख दे तेरे इश्क़ का ताज हम
कर ले दिल पे हमारे बादशाही -2
ह्ह्ह्ह्ह्ो........या इलाही..........

या इलाही, या इलाही, या इलाही,या इलाही
एक हसीना ने मचाई है तबाही .. ह्ह्ह्ह्ह्ह्हो
या इलाही...............


NON फ़िल्मी गीत
गीतकार -------
संगीतकार - मदन मोहन साहब
गायक - रफ़ी साहब

3-

गाना - जिसका दर्शन करने को सुरज निकलता है..
 फ़िल्म - कारण (1980)
गीतकार - इन्दवीर
संगीतकार - उषा खन्ना
गायक - रफ़ी साहब

जिसका दर्शन करने को सुरज निकलता है वो तुम हो....
जिसकी चमक चुराने को ये चाँद मचलता है वो तुम हो..
वो तुम हो.......वो तुम हो.......वो तुम हो.....

नज़र मिल जब तुमसे जब कोई और नज़र ना आया
तुम्हें बनाकर रब ने अपना सुन्दर रूप दिखाया
जिसके सामने आने को दर्पण तड़पता है वो तुम हो-2
वो तुम हो....... वो तुम हो.......वो तुम हो.....


जिसका दर्शन करने को सुरज निकलता है, वो तुम हो....
जिसकी चमक चुराने को ये चाँद मचलता है, वो तुम हो..
वो तुम हो.......वो तुम हो.......वो तुम हो.....

चाल से ताल निकलते है संगीत बसा बतों में...
किस्मत लिख सकती हो तुम वो कला छुपी हाथों में
जिससे हाथ मिलाने को हर कोई तरसता है वो तुम हो-2
वो तुम हो.......वो तुम हो.......

जिसका दर्शन करने को सुरज निकलता है.....

4-
गाना- हसीन हो तुम ख़ुदा नही हो...
फ़िल्म - बदतमीज़ (1964)
गीतकार - हसरत जयपुरी साहब
संगीतकार - शंकर जयकिशन
गायक - रफ़ी साहब

हसीन हो तुम ख़ुदा नही हो, तुम्हारा सजिदा नही करेंगे ..
मगर मोहब्बत मैं हुक्म दोगे तो ये हँसते हँसते ये जाँ भी देगें
हसीन हो तुम ख़ुदा नही हो...

हसीन हो तुम  ख़ुदा नही हो, तुम्हारी नज़रोें...
समझते हो ख़ुद को जाने क्या तुम, की सारी दुनिया को खाख जाना..
ग़ुरूर का सर झुकेगा इक दिन, हंसेगा तुम पर भी ये जमाना..
हमेशा ये सीन नही रहेगा, हमेशा ये दिन नही रहेंगे
हसीन हो तुम  ख़ुदा नही हो.....

हमारी नज़रों का सुखर कीजिएे, की आसमाँ पर तुम्हें बैठाया....2
हमारे दिल को दुआएँ दीजिए, की धड़कनों मैं तुम्हें बैठाया
बुलंदियों से गिरोगे तुम भी , अगर निगाहों से हम गिरेंगें
हसीन हो तुम  ख़ुदा नही हो.....

हमारे जैसे अगर है लाखों, तुम्हारे जैसे भी कम नही हैं..2
जो ख़ुद ही पत्थर से फोड़ ले सर वो और होंगे वो हम नही.
नही मोहब्बत मैं मर सके भला वो जी कर ही क्या करेगा
हसीन हो तुम  ख़ुदा नही हो.....

5-


गाना - बा-होशो-हवास में दीवाना ये
फ़िल्म - नाइट इन लंदन(1960)
गीतकार - आनन्द बख्शी
संगीतकार - लक्ष्मी-प्यारे
गायक - रफ़ी साहब

बा-होशो-हवास में दीवाना ये..
ये आज बशियत करता हूं..
ये दिल, ये जान मिले तुमको..
मैं तुम से मोहब्बत करता हूं...

मेरे जीते-जी यार तुम्हे,
 मेरी सारी जागीर मिले,
वो ख्वाब जो मैने देखें है,
उन ख़्वाबों की ताबीर मिले
हर एक तमन्ना के बदले,
मैं आज ये हसरत करता हूं
ये दिल, ये जान मिले तुमको
मैं तुम से मोहब्बत करता हूं...

मेरी आँखों मैं नींद नही,
मेरे होंठों पे प्यास नही
हर चीज़ तुम्हारी नाम हुई,
अब कुछ भी मेरे पास नही
तुमने तो लुट लिया मुझको
मैं तुमसे शिकायत करता हूं
ये दिल, ये जान मिले तुमको
मैं तुम से मोहब्बत करता हूं...

6-
सरे महफ़िल मेरा ईमान बेईमान हो..
फ़िल्म - अब क्या होगा(1977)
गीतकार -सावन कुमार
संगीतकार - उषा खन्ना
गायक - रफ़ी साहब / आशा जी

R- स'रे महफ़िल मेरा ईमान बेईमान हो गया, हो यारों अब क्या होगा यारों अब क्या होगा
मेरा कातिल मेरे घर में मेरा मेहमान हो गया,
हो यारों अब क्या होगा यारों अब क्या होगा

A- वहीं होगा जो मंजुरे खुदा होगा, खुदा होगा

R-हो यारो अब क्या होगा, यारों अब क्या होगा
जमीन पर पांव मत रखना, कहीं मेंला ना हो जाए
ना जाना चाँदनी में ये बदन मेंला ना हो जाए
खुदा भेज दें जनत से तू अपनी बहारों को
सजादे आसमान तू राह में इनकी सितारों को
शरीक ऐ जिदंगी होना तेरा एहसान हो गया
हो यारो अब क्या होगा, यारों अब क्या होगा

A-वहीं होगा जो मंजुरे खुदा होगा, खुदा होगा
R-हो यारो अब क्या होगा, यारों अब क्या होगा

A-नहीं थे हम किसी काबिल जगह दे दी हमें दिल में
करें हम शुक्रिया कैसे की रख ली लाज महफिल में
ना फूलों की तमन्ना है, ना चाहत है सितारों की
तुम्हारे प्यार के आगे जरुरत क्या बहारों की
तुम्हारे बाहों में रहना मेरा अरमान हो गया

R-हो यारो अब क्या होगा, यारों अब क्या होगा
A-वहीं होगा जो मंजुरे खुदा होगा, खुदा होगा

R-हो यारो अब क्या होगा, यारों अब क्या होगा
जमीन की तुम नहीं लगती, कहां से आई हो बोलो
मेरी जन हुस्न परियों का, कहां से लायी हो बोलो

A-खुदा ने खुद बनाया हैं हमें तो आपकी खातिर
गज़ल मुझको बनाया हैं बनाकर आपको शायर
मिलन पर जानेमन अपना खुदा हैरान हो गया

R-हो यारों अब क्या होगा, यारों अब क्या होगा
सारे महफ़िल मेरा ईमान बेईमान हो गया, हो यारों अब क्या होगा यारों अब क्या होगा
मेरा कातिल मेरे घर में मेरा मेहमान हो गया, हो यारों अब क्या होगा यारों अब क्या होगा

7-
ओ मेरी लाड़ली प्यारी बहना रानी बहना ...
तु मेरे होते हुऐ आँसू ओ मैं नही बहना ....

कंचन- ओ मान लिया मैने तेरा कहना यही कहना तेरी बहना
रफ़ी- बहना ओ मेरी लाड़ली  प्यारी बहना रानी बहना
जाने कब का पुन: उदय हो आया जो मैने
मन्दिर ये जैसा घर पाया..

कचन- जिस दिन तेरे पाँव पड़े इस घर मैं मन्दिर से बन गया पग पलभर में यें घर
रफ़ी- मेरी कसम
कचन- तेरी कसम
रफ़ी- ओ जिया कहे अब तो यही रहना
कचन - यही कहना फिर कहना
रफ़ी-ओ मेरी बहना लाड़ली प्यारी बहना  बहना
रानी बहना...
मुझको दे दो सारे काम अधुरे
तुम सपने देखो में करू सपने पुरे
कचन- तु हर माँ पाप का सपना होगा
नही तेरे जितना कोई अपना होगा
रफ़ी- मेरी कसम
कचन- तेरी कसम
रफ़ी - ओ मैं सदा तेरा मानूँगा कहना
कचन - यही कहना फ़िर कहना
रफ़ी-ओ मेरी लाड़ली प्यारी बहना
आज न जाने क्या से क्या हो जाता
ये रक्षाबन्धन बन गया जिवन दाता
कंचन- जिसको तरसी अब वो प्यार मिला है
मुझे राखी का असली हक़दार मिला है
रफ़ी- मेरी कसम
कचन- तेरी कसम
ओ देर ना कर राखी अभी पहना दे
कचन - यही कहना फ़िर कहना
रफ़ी - बहना
कंचन- में तेरी लाड़ली प्यारी बहना
रानी बहना
रफ़ी- तु मेरे होते हुऐ आँसू ओ मैं नही बहना ...

8-

गाना - एक जानिब शम्मे-महफ़िल
फ़िल्म - अभिलाषा (1968)
गीतकार - मज़रूह सुल्तानपुरी
संगीतकार - राहुल देव बर्मन
गायककार - रफ़ी- मन्ना डे़

रफ़ी
आ आ आ ...एक जानिब शम्मे-महफ़िल
एक जानिब शम्मे-महफ़िल
एक जानिब रूहे-जाना
गिरता है देखें कहाँ परवाना
एक जानिब शम्मे-महफ़िल...

मन्ना डे-
एक जानिब शम्मे-महफ़िल
एक जानिब रूहे-जाना
ओ ओ गिरता है देखें कहाँ परवाना
एक जानिब शम्मे-महफ़िल....

रफ़ी-
एक सू एक शोला चरागों की अंजुमन में
एक सू रंगे-जलवा किसी बुत के बांकपन में

मन्ना ड़े-
एक शोला एक जलवा और इनमें एक दीवाना

एक जानिब शम्मे-महफ़िल
एक जानिब रूहे-जाना
ओ ओ गिरता है देखें कहाँ परवाना
एक जानिब शम्मे-महफ़िल

मन्ना ड़े-
उसकी क्या है मंजिल नहीं इतना बेखबर भी
आया दिलबरों में तो हैं काफी एक नज़र भी

रफ़ी-
इन नज़रों को यारों क्या जानूँ मैं अंजाना
एक जानिब शम्मे-महफ़िल
एक जानिब रूहे-जाना
ओ:ओ: गिरता है देखें कहाँ परवाना
एक जानिब शम्मे-महफ़िल

मन्ना डे - रफ़ी
ऊँ ऊँ ऊँ.....आ: आ: आ: ....ला: ला: ला:....
रफ़ी-
क्या-क्या रंग निकले हसीनों की सादगी से
ओ ओ ओ.....
मन्ना डे
इतनी है शिकायत के मिलते हैं अज़नबी से

रफ़ी-
जो ऐसा बेपरवाह क्या उससे दिल उलझाना
एक जानिब शम्मे-महफ़िल

मन्ना डे-
ओ: ओ:....
एक जानिब रूहे-जाना

रफ़ी - मन्ना डे
ओ  ओ ओ ....
गिरता है देखें कहाँ परवाना

एक जानिब शम्मे-महफ़िल
एक जानिब रूहे-जाना
ओ: ओ: गिरता है देखें कहाँ परवाना

एक जानिब शम्मे-महफ़िल

9-



ग़ज़ल- तुम एक बार मोहब्बत ..
फ़िल्म - बाबर(1960)
गीतकार - साहिर साहब
संगीतकार - रोशन साहब
गायक - रफ़ी साहब


तुम एक बार मोहब्बत का इम्तिहान ले लो
मेरी जँुनू मेरी वहसत का इम्तिहान ले लो
तुम एक बार मोहब्बत......

सलाम-ए-शौक से रंजिश भरा पयाम न दो
मेरी ख़ुलूस को फ़िरास-ओ-हवास का नाम न दो
मेरी वफ़ा हक़ीक़त का इम्तिहान तो लो
तुम एक बार मोहब्बत......

न तख़्तों -ओ-ताज है न लाला-ओ- गुहर हसरत है
तुम्हारे प्यार तुम्हारी नज़र की हसरत है
तुम अपने हुस्न की अज़मत का इम्तिहान तो लो
तुम एक बार मोहब्बत .......

मैं अपनी जान भी दे दूँ तो एेतबार नही
के तुमसे बढ़के मुझको ज़िन्दगी से प्यार नही
यूँ ही सही मेरी चाहत का इम्तिहान तो लो
तुम एक बार मोहब्बत.....

10-

गैर फ़िल्मी गाना-मेरे लिये तो बस वही पल हैं हसीं बहार के
गीतकार- अन्जान
संगीतकार - श्याम सागर
गायक- मोहम्मद रफ़ी

मेरे लिये तो बस वही पल हैं हसीं बहार के
तुम सामने बैठी रहो मैं गीत गाऊँ प्यार के
मैं गीत गाऊँ प्यार के

मैं जानता हूँ प्यार की पूजा यहाँ अपराध है
अपराध ये हर पल करूँ मन में यही इक साध है
मन में यही इक साध है
मुझको मिली है ये ख़ुशी जीवन की बाज़ी हार के
तुम सामने बैठी रहो मैं गीत गाऊँ प्यार के
मैं गीत गाऊँ प्यार के

सीखा नहीं मैने कभी सैंयम से मन को बांधना
है साधना मेरी तुम्हारे रूप की आराधना
रूप की आराधना
तुम साथ दो तो तोड़ दूँ सारे नियम सन्सार के
तुम सामने बैठी रहो मैं गीत गाऊँ प्यार के
मैं गीत गाऊँ प्यार के

12

गाना - दिल का दर्द निराला.....
फिल्म - कैसे कहंू (1964)
गीतकार - शकील बदायूंनी
संगीतकार - सचिन देव बर्मन
गायक - मोहम्मद रफ़ी साहब

दिल का दर्द निराला , दिल का दर्द निराला..
किसको सुनाऊ कोई नही है, आज समझाने वाला
दिल का दर्द निराला..

खिलते हुए एक फूल को जैसे अपनी महक मालूम न हो
जलते हुए दीप को जैसे अपनी चमक मालूम ना हो..
दिल मे यूही तेरे प्यार का था एक अंजाना उजियाला
दिल का दर्द निराला..

मै हू सनम अपराधी तेरा मौत भी है मंज़ूर मुझे..
पर वोह सज़ा मै सह ना सकूगा कर दे जो तुझसे दूर मुझे
दिल से भुलादे मेरी खताए तोड़ दे घूम का जला
दिल का दर्द निराला..

बिखरे हुऐ हों तार तो कैसें दिल का सुनायें साज़ कोई
दुर हो मन का मित तो कैसें गीत बने आवाज़ कोई..
आजा तुझ बिन सुनी है, रात दिन का रंग है काला
दिल का दर्द निराला..

किसको सुनाऊ कोई नही है, आज समझानें वाला
आ आ आ आ आ........

13-


निगाहों में हंसी सपने सजाने की बहार आई
तुम्हें बाहों में लेकर झुम जाने की बहार आई

तेरे मासूम होंठों पर तव्वसुम है बहारों का ...
हंसी आवाज़ है जैसे तरनुम आवसारों का
तुम्हारी सादगी पर दिल लुटाने की बहार आई

रूख-ए-रंगीन को छु कर हवाऐं हो गई पागल...
मेरी बाहों में ले आई तुम्हारा रेशमी आँचल
फ़िज़ाओं में हंसी आँचल उड़ाने की बहार आई
~~~~~~
फ़िल्म - फिर बहार आई
गीतकार - नक्श लायलपुरी
संगीतकार - कमल राजस्थानी
गायक - रफ़ी साहब / Usha Balsavar




प्रस्तुति-युध्द राज
वफ़ा पर शायरी

आप छेड़े न वफ़ा का क़िस्सा
बात में बात निकल आती है

-दर्द असअदि

इश्क़ में सच्चा था वो मेरी तरह
बे'वफ़ा  तो  आज़माने  से  हुआ

-नोमान शौक़

उड़  गई  यूँ  वफ़ा ज़माने  से
कभी गोया किसी में थी ही नही
-दाग

उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वादा न वफ़ा करते वादा तो किया होता है

-चराग़ हसन हसरत

'एहसान' अपना कोई बुरे वक्त का नही
अहबाव बे'वफ़ा  है  ख़ुदा बे-नियाज़  है

-एहसान दानिश

'एहसान' ऐसा तल्ख़ जवाब -ए-वफ़ा मिला
हम इस के बाद फिर कोई अरमां न कर सके

-एहसान दानिश

कुछ इस अदा से मिरे साथ बेवफ़ाई  कर
कि  तेरे बाद मुझे  कोई  बेवफ़ा  न  लगे
-कैसर-उल जाफरी

कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज-ए-वफ़ा भी
खुलता नही हाल उन की तबीअत का ज़रा भी

-अकबर इलाहाबादी

काम आ सकी न अपनी वफाएँ तो क्या करे
उस बेवफ़ा को भूल न जाए तो क्या करे

-अख़्तर शिरानी

मोतियों को छुपा सीपियों की तरह
बेवफ़ाओं को अपनी वफ़ायें न दे

-बशीर साहब

कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद
याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद

-अमीर मिनाई

चलो यूँ ही सही हम बे'वफा है..
मगर ये तो बताए आप क्या है?

-शहवाज़ नदीम जियाई

हर तरफ़ से यह सदा आती है मुल्के-हुस्न में-
"यह वो दुनिया है जहाँ रस्मे-वफ़ादारी नहीं॥

-नज़र लखनवी

जाओ भी क्या करोगे मेहरो-ओ-वफ़ा
बरा-हा  आज़मा  के  देख  लिया

दाग देहलवी

तुम न तौबा करो जफ़ाओं से
हम वफ़ाओं से तौबा करते है

साहिर होशियारपुरी

वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूं..
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूं..

-हसरत मोहनी

हम ने बे-इंतिहा वफ़ा कर के
बे-वफाओं से इंतिकाम लिया

-आले रजा

हम कोई तर्क ए वफ़ा करते हैं !
ना सही इश्क़ , मुसीबत ही सही
--असदुल्लाह ख़ाँ 'ग़ालिब,--


रहेगा साथ, तेरा प्यार, ज़िन्दगी बन कर..
ये और बात, मेरी ज़िन्दगी अब वफ़ा ना करे..
-क़तील शिफ़ाई

हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके कुछ कह न सके कुछ सुन न सके
याँ हम ने ज़बाँ ही खोली थी वाँ आँख झुकी शरमा भी गए

-असरार-उल-हक़ मजाज़

बेवफा कहने की शिकायत है।
तो भी वादा वफ़ा नहीं होता।।
-मोमिन

इस दुनिया ने मेरी वफा का कितना ऊंचा मोल दिया,
पैरों में जंजीरें डाली हाथों में  कशकौल दिया
-राहत इंदौरी

मुझ को न दिल पसंद न वो बे-वफा पसंद
दोनों है ख़ुद-ग़रज मुझे दोनों हैं ना-पसंद
-'बेख़ुद' देहलवी

बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा      
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता

 -मीर तक़ी 'मीर'

मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुत्फ़-ओ-इनायत एक से वाक़िफ़ इन में नहीं
और तो सब कुछ तन्ज़-ओ-कनाया रम्ज़-ओ-इशारा जाने है

-मीर तकी 'मीर'

रोने से और लुत्फ़ वफ़ाओं का बढ़ गया
सब ज़ाइक़ा फलों में नए पानियों का है

-शाहिद मीर

उड़  गई  यूँ  वफ़ा ज़माने  से
कभी गोया किसी में थी ही नही

-दाग

कहते न थे हम 'दर्द' मियाँ छोड़ो ये बातें
पाई न सज़ा और वफ़ा कीजिए उस से

-मीर दर्द

की मोहम्मद से वफ़ा तूने  तो हम तेरे हैं
ये जहाँ चीज़ हे क्या लोहो क़लम तेरे हैं

-अल्लामा इक़बाल

न मुदारात हमारी न अदू से नफ़रत
न वफ़ा ही तुम्हें आई न जफ़ा ही आई

-बेखुद बदायुनी

बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता
ये उठते बैठते ज़िक्र-ए-वफ़ा अच्छा नहीं लगता

-आशुफ़्ता चंगेज़ी

ज़िद की है और बात मगर ख़ू बुरी नहीं
भूले से उस ने सैकड़ों वादे वफ़ा किए

-मिर्ज़ा ग़ालिब

सितम को हम करम समझे जफ़ा को हम वफ़ा समझे
और इस पर भी न वो समझे तो उस बुत से ख़ुदा समझे

-शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

वफ़ा करेंगे ,निबाहेंगे, बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था

-दाग़ देहलवी

साबित तू रह जफ़ा पे मैं क़ाएम वफ़ा पे हूँ
मैं अपनी बान छोड़ूँ न तू अपनी आन छोड़

-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैने जिनके लिये राहों में बिछाया था लहू,
हमसे कहते हैं वही अहद -ए -वफा याद नहीं ।

-सागर सिद्दीकी

यूँ वफ़ा उठ गई ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नहीं

-मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

रहे-वफ़ा में मिरे ऩक्शे-पा सलामत है,
मैं माजियों के सफ़र का क़यास लगता हूं।

-सईद कैस

हैं यादगार-ए-आलम-ए-फ़ानी ये दिनों चीज़
उस की जफ़ा और अपनी वफ़ा लिख रखेंगे हम

-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

यादों के वफ़ाओं के अक़ीदों के ग़मों के
काम आये जो दुनिया में तो इस नाम ही आये

-हफ़ीज़ होशियारपुरी

अब जिन्दगी वफा न करे तो मिरा नसीब
तुमने तो मेरे जीने का सामान कर दिया

-नज़ीर बनारसी

नौ-गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत हूँ वफ़ा मुझ में कहाँ
कम से कम दिल अभी सौ बार तो आने दीजे

-बेख़ुद देहलवी

मैं बस ये कह रहा हूँ रस्म-ए-वफ़ा जहाँ में
बिल्कुल नहीं मिटी है कामयाब हो गई है

-उबैद सिद्दीक़ी

वहाँ ख़ाक अहद-ए-वफ़ा निभे वहाँ ख़ाक दिल का कँवल खिले
जहाँ ज़िंदगी की ज़रूरतों का भी हसरतों में शुमार है

-आरिफ़ जलाली

दुनिया ने किस का राह-ए-वफ़ा में दिया है साथ
तुम भी चले-चलो यूँही जब तक चली चले

-शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

जीते जी क़द्र बशर की नहीं होती प्यारे
याद आवेगी तुझे मेरी वफ़ा मेरे बाद

-मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस

कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज़-ए-वफ़ा भी
खुलता नहीं हाल उन की तबीअत का ज़रा भी

-अकबर इलाहाबादी

तुझसे उम्मीदे-वफ़ा बेकार है।
कैसे कोई मौसम बदलना छोड़ दे।

-वसीम बरेलवी

साबित तू रह जफ़ा पे मैं क़ाएम वफ़ा पे हूँ
मैं अपनी बान छोड़ूँ न तू अपनी आन छोड़

-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

नशात-ए-हुस्न हो जोश-ए-वफ़ा हो या ग़म-ए-इश्क़
हमारे दिल में जो आए वो आरज़ू हो जाए

-सीमाब अकबराबादी

उम्मीद तो बँध जाती, तस्कीन तो हो जाती,
वादा  न वफा करते, वादा तो किया होता।-

-इस्माइल मेरठी

वहाँ सौंपी गयी है खिदमते-अर्जे-वफा मुझको,
जहाँ अहले-वफा की बात ही मानी नहीं जाती।

-'निहाल' सेहरारवी

वफा कैसी, कहाँ का इश्क जब सर फोड़ना ठहरा,
तो फिर ऐ संगे-दिल तेरा ही संगे-आस्तां क्यों हो।

-मिर्जा गालिब--

वफा के नाम पर तुम क्यों संभल के बैठ गये,
तुम्हारी बात नहीं, बात है जमाने की।

-'मजरूह' सुल्तानपुरी


यह मेरी किस्मत कि नजरों में तुम्हारी हेच हैं,
वर्ना यह जिन्से-वफा इतनी तो कमकीमत न थी।

-आनन्द नारायण 'मुल्ला'

बू-ए-वफा न फूटे कहीं उनको यह खौफ है,
फूलों से ढक रहे हैं, हमारे मजार को।

-'असर' लखनवी

तमाम उम्र हम वफा के गुनहगार रहे,
यह और बात है कि हम आदमी तो अच्छे थे।

-नदीम कासिमी

जिक्र जब भी छिड़ा है वफा का कहीं,
जाने क्यों कुछ दोस्त मुझको याद आये।
-इकबाल सफीपुरी

मुहब्बत, दोस्ती, चाहत, वफ़ा, दिल और कविता से
मेरे इस दौर को परहेज़ है, बीमार जो ठहरा--

-सुरेन्द्र सिंघल

बहती नदी में कच्चे घड़े हैं रिश्ते, नाते, हुस्न, वफ़ा
दूर तलक ये बहते रहेंगे इसके भरोसे मत रहना

-हस्तीमल हस्ती

उसे हालात ने रोका मुझे मेरे मसायल ने
वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ दोनों तरफ़ से हैं

- मुनव्वर राना

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी
तेरी ये सदा दिली मुझें कहीं मार न डाले।

-क़तील

नहीं ज़िन्दगी को वफ़ा करना अख्तर।
मोहब्बत से दुनिया को मामूर करदूं।

-अख्तर शीरानी


दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद

-जिगर मुरादाबादी

रंज तो ये है कि वो अहद-ए-वफ़ा टूट गया
बेवफ़ा कोई भी हो, तुम न सही, हम ही सह

 -राही मासूम रज़ा

ये वफ़ा की सख़्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक
न लो इंतिक़ाम मुझ से मिरे साथ साथ चल के

-ख़ुमार बाराबंकवी


बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता

-मीर तक़ी 'मीर'

दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं

-हफ़ीज़ बनारसी



पेशकश -युध्द राज पारीक