गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

लियाक़त साहब के कुछ मेरे पसंदीदा शे'र ...

1-
मैं दौड़ दौड़ के खुद को पकड़ के लाता हूँ ...
तुम्हारे इश्क़ ने बच्चा बना दिया है  मुझे ...
2-
मेरे बाज़ू को बिला-शक तू बना ले तकया ...
पर मेरी जान मैं सोने नहीं दँूगा तुझ को ..
3-
आसमानी ही..आसमानी है
मेरी आंखों मैं जितना पानी है
4-
अच्छा ठीक है, जो तुम चाहो, जो अल्लाह की मर्ज़ी हैं ...
और ये सब कुछ, उस पगली ने बिन रोये ही बोला था
5-
फिर उस के बाद की ग़ुरबत न पुछो
मेरे हाथों में पैसा आ गया था ...
6-
न रोक पाया न आवाज़ दे सका ख़ुद को ..
मैं ख़ुद को जाते हुवे सिर्फ़ देखता ही रहा
7-
घर के इक कोने में बेकार पड़ा रहता हूँ ..
यार्ड में डंप किये रेल के डिब्बे की तरह
8-
पंछी लोटे तो चीख़ कर रोया
हाय वो पेड़ कितना तन्हा था
9-
कुछ तिकोने और भी थी, कुछ तिकोनों के परे
दायरों के बाद भी , इक दायरा मौजूद था
10-
ज़लज़ले के ठीक फ़ौरन बाद इक ठहराव था ..
और उस ठहराव में भी ज़लज़ला मौजूद था ..
11-
और अब, दूसरा रस्ता भी नहीं है कोई
'जाफरी' ख्वाब को ख्वाब से मारा जाये
12-
तमाम शहर के मलबे पे रक़्स करने लगा..
वो ज़लज़ला जो अभी तक ज़मीं के अंदर था..
13-
दरख़्तों पर अजब जादू हुवा है
परिंदे सो गये तो गिर पड़े गे
14-
पहले थकने लगी मेरी उम्मीद
फिर मेरा इंतज़ार थकने लगा
15-
यहाँ कुछ और भी नक्शे क़दम हैं ..
मैं इस जंगल में शायद दूसरा हूँ ..
16-
वो कौन राज़ था जिस को बयान कर न सके?...
वो कौन बात थी, जो "जाफरी" बची हुई थी?...
17-
है कौन मुझ सा बे सरो समान "जाफरी" ...
तन'हा खड़ा हूँ अपनी हिमायत के बावजूद ....
18-
वो एक पल के लिये छोड़ कर गया था मुझे
तमाम उम्र मेरी............ इंतज़ार मैं गुज़री
19-

ज़मीन कुछ भी नहीं आसमान कुछ भी नहीं
कमाल ये है के फिर दरमियान कुछ भी नहीं

अगर है कुछ तो मेरी ज़ात ही सभी कुछ है
अगर नहीं, तो ये सारा ज़हान कुछ भी नही
20-
कमाल ये है के अब रंज भी नहीं उस का ..
अभी तलक जो मेरी ज़िन्दगी बना हुवा था
21-
जिस्म को फाड़ती हुवी निकली
रूह... चिंगघाड़ती हुवी निकली
22-
उसी के नूर से ये रौशनी बची हुई थी ...
मेरे नसीब मैं जो तीरगी बची हुई थी ....
23-
अजीब खाब ने जकड़ा हुवा था रात मुझे
कई हज़ार सुमंदर,.....कई हज़ार जहाज़

मैं उन कि आँख से ओझल पड़ा था दूर कहीं ..
गुज़र रहे थे मेरे सर से, बे-क़रार जहाज़
24-
के दोस्त, आने लगे होसला बढ़ाने को
फ़रेब एक नया और खा के बेठे है

मैं फिर से उन कि मोहब्बत के रस मैं डूबा हूँ
वो लोग फिर मेरे पहलू मैं आ के बेठे हैं
25-
इख़्तियार इश्क़ ने कुछ ऐसा दिया है मुझको ....
जब भी चाहूँगा तेरे ख़्वाब में आ जाऊँगा ....
26-
अम्माँ अंगूठा चटवाते मुझे से कहती रहती थी ...
छत्ते से ये शहद साल में दो दो बार निकलता है ...
27-
मैं फिर से लौट के घर आ गया हूँ ...
ये तो आज की ताजा ख़बर हैं ...
28-
लोग ख़ुश हैं उससे दे दे के इबादत का  फरेब ...
वो  मगर  खूब  समझता  है, खुदा  है  वो  भी ...
29-
अजीब मोड़ था, वापस पलटने लगते थे ..
इधर से जाते हुवे , उस तरफ़ से आते हुवे ..
30-
पुछता फिरता हुआ मैं अपना पता जंगल से ...
आख़िरी बार दरख़्तों ने मुझे देखा था ..
31-
अपनी जानिब ही पलटता, तो पुहंचता भी कहीं ..
किस लिए जानिबे अतराफ को, मायल हुवा मैं
32-
मेरे हरीफ़ का सब कुछ लगा था दाव पर ..
मुक़ाबले मैं मेरा हारना ज़रूरी था ...

हरीफ़-दुश्मन
33-
एक ही नींद, के सौ बार सुलाती है मुझे ...
एक ही ख़्वाब के सौ बार नज़र आता है ..
34-
आज उस को भी रख के साथ "अली"
मैं ने उसी को बहुत तलाश किया ..
35-
अजीब बात थी .....वो मेरे ख़्वाब मैं उतरा
फिर उस के बाद उसे ये ख़बर भी मैं ने दी
36-
उस के सौ यार हैं अब "जाफरी" , और मेरे पास ...
एक  टूटे  हुऐ  रिश्ते  के  सिवा , कुछ  भी  नहीं ....
37-
पाल-पोष के बड़ा किया था मैं ने कोई ख़्वाब ..
कल शब् उस को बहा ले गया अस्यों का सैलाब ...
38-
अज़ीब ख़्वाब था, जो मुझे से टूटता भी ना था
ख़ुदा का शुक्र.......के तू ने जगा दिया मुझ को
39-
यही काफ़ी है जान के मारने को ..
ये जो एक ख्वाब है गुज़ारने को ...
40-
आख़री बार उस जगह था मैं
कोई जा कर ...मुझे वहाँ ढूँढे
41-
तन्हाई वन्हाई .....कुछ भी रास नहीं आती ..
अच्छे-अच्छों को आख़िर रस्ता लग जाता है...
42-
रहम खाओ मेरी आँखों पे नींदों ..
मेरे कुछ ख़्वाब अन देखें पड़े हैं ...
42-
जागते में भी यही काम किया हैं मैं ने ..
मेरी नींदों से ज़ियादा है, मेरे ख़्वाब की उम्र ...
43-
इक भीड़ सोने जागने वालों में थी शुमार ...
उतरा न कोई ख़्वाब के अन्दर मेरे बग़ैर ...
44-
 आँख सिरहाने पड़ी है, और मंज़र बंद है ..
"जाफरी" ख़्वाबों पे मेरे नींद का दर बन्द है ...
45-
"जाफरी" आँखों को मल-मल के ज़रा देख तो ले ..
 नींद टूटी है तो , फिर ख्वाब भी टूटा हो गा ...
46-
एक ही नींद के सौ बार सुलाती है मुझे ..
एक ही ख़्वाब के सौ बार नज़र आता है ...
47-
अब तो कुछ और भी गहरी हैं मेरी बुनियादें ..
अब तो घर वाले भी दीवार समझते हैं मुझे
48-
मैं पै'वस्ता बना फिरता हूँ हर सू
मगर मुझ को उखाड़ा जा चुका है
49-
सभी कुछ दिख रहा है, इस में लेकिन ..
ये दरिया ..........आइने जैसा नहीं है ...
50-
मुझे सूरज ने बहकाया बहुत था
मगर उस पेड़ में साया बहुत था
51-
शुक्र मोला का बहस ख़त्म हुई ..
चीख़ कर बोलने लगा था मैं
52-
मुश्किलों से अभी बैठा था, मेरा गर्द-ओ-ग़ुबार ..
रास्ता..... ...फिर कोई आग़ाज़ हुवा है मुझ में ...
53-
ये जो दरिया उतरने वाला है
ये कहीं और चढ़ने वाला है
54-
मुश्किल से हवा को बांधा था ..
लग गयी आग फिर दरख़्तों में ...
55-
कहीं की चीज़ को रख कर, कहीं समझते रहे ..
ये आसमां था , जिसे हम ज़मीं समझते रहे ...
56-
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का ..
यही तो वक़्त है, सूरज तेरे निकलने का ...
57-
किसी जंगल से यारी हो गयी थी
अभी तक आँख में सब्ज़ पड़ा हैं
58-
वो जो बेजान नज़र आता था, ज़िंदा निकला
हम जिसे पत्ता समझते थे परिंदा निकला
59-
लोग किस किस से रोशनास नही
हम के अपने भी आस पास नही
60-
ज़ैरे आब अजब सी गहमा-गहमी थी
पानी मुझ को धक्का दे कर गुज़र था
61-
सभी.... तैराक बनते जा रहे हैं
मगर दरया हुनर पहचानता है
62-
मुझे यक़ीन है ......वो राह देखता हो गा
मैं सोचता हूँ मगर सोचने से क्या हो गा
63-
तन्हाई में ..... चीखो रो लो
पर अपनी आवाज़ तो खोलो
64-
पतंग आंखू से ओझल हो चुकी थी
मगर मैं .....ड़ोर खींचें जा रहा था
65-
पहले जी भर के उस ने प्यार दिया ..
और फिर उस ने हम को मार दिया ...
66-
हिम्मत है तो उठ कर शोर-शराबे का इंकार करो
ख़ामोशी के तिनके चुन कर सन्नाटा तैयार करो
67-
मेरे सीने में जितना सरमा़या था
वो मेरी दो आंखों में दफ़नाया था
68-
चराग़ बुझते ही, यक-लख्त बिजलियाँ कोंदी
फिर उस के  बाद अचानक अँधेरा जलने लगा
69-
ज़मीनों की  तिजारत  कर  रहा  हूँ
मैं अब हिजरत पे हिजरत कर रहा हूँ
70-
शहर तक़सींम किया जाये सिर से एक बार
और फिर ...... बीच में दीवार उठा दी जाये
71-
बड़ा दिलकश नज़ारा सामने था
मगर ये आँख आड़े आ गई थी
72-
यूँ तो ....तरतीब से जोड़ा था अभी कुछ लेकिन
कुछ ना कुछ है, जो अभी टूट रहा है  मुझ  में
73-
पानी में अक्स और किसी आसमां का है
ये नाव कौन सी है, ये दरया कहाँ का है
74-


75-
हम ने ख़ुद्दारी को सीने से लगाये रक्खा
और दस्तार को दस्तार भी होने ना दिया
76-
ये आसमान बज़ाहिर जो साफ़ सुथरा है
मुझे तो इस में भी पंछी दिखाई देते हैं
77-
दरयाओं के आस पड़ोस की खोज करो
हर  पत्थर  के  नीचे  चश्मा  होता  है
78-
ये पैमाने भी इंसानों के अंदर ही मुरवविज हैं
परिंदे .......ख़ूबसूरत और बदसूरत नहीं होते
79-
हमारी आँख का वो आख़री करिश्मा था
फिर उस के बाद वो खुश्बो कभी नहीं देखी
80-
झांकता रहता है बाहर की तरफ़ बे-इख़्तियार..
मेरी आँखों के इलावा भी, मेरे अंदर से कुछ ...
81----
तेज़ गाड़ी से ख़ुद को टकरा कर
हम ने रफ़्तार रोक ली अपनी
82---
इस से पहले के इसे भी झूठ की आदत पड़े
एक सेल्फी .....आईने के साथ लेनी चाहिए
83---
उस को तो खेर इश्क़ ने मोक़ा नहीं दिया
लेकन मेरी तरफ से भी नफ़रत ना हो सकी
84---
दिन निकल आता है और बल्ब जले रहते हैं
कोई इस शहर की बिजली को बुझाता भी नही
85---
यार बाहर भी आया जाया करो
इस क़दर कौन घर में रहता है
86---
उड़ाता नींद मेरी जब तलक पुराना ख्वाब ..
मैं सो चूका था नया ख्वाब देखने के लिये ...
87---
क़दम क़दम पे नया रास्ता बदलते हुवे
वो थक चूका था, मेरे साथ साथ चलते हुवे
88---
करो न भंग तपस्या कि भस्म कर दे गी
हमारी आँख जो इक बार खुल के बंद हुई
89---
बड़े सलीक़े से छोड़ा था रास्ता मैं ने
वो जान बूझ के मेरे क़रीब से गुज़रा
90---
मैं क़त्ल हो चुका लेकन सुकून है मुझ को
के मेरे बाद हजारो ने चीखना सीखा
91---
ये साया उतना ही बेहाल कर के छोड़े गा
ये धुप ..जितनी हमारे शजर में उतरे गी
92---
शहर तामीर किया जाये सिरे से  इक बार
और फिर बीच में दीवार उठा दी जाये
93---
एल्बम में तस्वीर दुहाई देती है ..
जो मेरी आँखों को सुनाई देती हैं ...
94---
घुटन की वजह से मुश्किल तो पेश आई मगर
हवा ............चराग़ जलाने में कामयाब रही
95---
जाफ़री ..........हल्की सी जुंबिश एक हो गी ज़ेरे आब
ये सुमंदर फिर से कुछ दरया दरयाओं में बट जाये गा
96---
यहाँ हर शख़्स दोजे से ख़फ़ा है
ये घर अन्दर से कितना खोखला है
97---
चलो अच्छा हुवा दम तोड़ बेठा
वो मेरी सांस लेने लग गया था
98---
अज़ाबे जावेदानी ... लग चूका था
मेरी आँखों को पानी लग चूका था

अज़ाबे जावेदानी-हमेशा का मर्ज़
99---
तो फिर क्या सामने शीशा नहीं था
के मेरे जिस्म पे चेहरा नहीं था?
100--
लियाक़त जाफ़री बेशक खरीदो
परिंदे को उड़ा कर देख लेना
101---
पुख्तगी ने मेरी मिस्मारी को आसां कर दिया
मैं उसी शुद्दत से टूटा, जिस क़दर मज़बूत था
102---
कोई ख्वाब देखता था, या में ख़्वाब पढ़ रहा था
मुझे नींद आ रही थी, मैं किताब पढ़ रहा था
103---
खुदाया कब मेरा नुक़सान हो गा
तिजारत करते करते थक चूका हूँ
104---
क़ैद सही, पर जी लेना आसान भी है
तह-खाने के अन्दर रोशन-दान भी है
105---
अब तो बस शिकवे हैं लेकन एक ज़माना था
हम दोनों इक दोजे की ख़मोशी सुनते थे
106---
यही नहीं के तुम्ही तुम हो इस खराबे में
हवा .. तुम्हारे इलावा कुछ और भी है यहा
107---
आज इक शख्स को देखा तो मुझे याद आया
कितनी शिद्दत से कोई याद सताती थी मुझे
108---
टिकटिकी बाँध के तकते रहे पहले उस को
और फिर हम ने उसे हाथ लगा कर देखा
109--
तुम्हारे साथ चलने की ख़ुशी में
मैं ख़ुद को कितना पीछे छोड़ आया
110---
मुमकिन है नफ़रत अच्छी हो, लेकन मेरे दोस्त
इस पोदे को हर मोसम में सींचना पड़ता है
111---
वो वापिस लोट आया था लियाक़त
मगर मैं अपना आदि हो चुका था
112-
फिर उस के बाद मेरी रौशनी नहीं लौटी
मैं सो गया था सितारे शुमार करते हुवे
113-
हुवे कहीं तो पलट कर ज़रोर आयें गे
हम एक अरसे से  ख़ुद को ढूंढते भी नही
-114
सिसकियाँ लेती है हर सांस मेरे सीने में
कौन करता है ये दिन रात इबादत मुझ मैं
115-
दिन निकल आया है और बल्ब सभी रोशन है..
कोई इस शहर की बिजली को बुझाता भी नही
116-
इतना चीखा हूँ ख़्वाब में उस पर
सुबहो तक मेरा गला बैठ गया
117-
हम तो मंज़र से हट गये थे अली
आईने में पड़ा रहा चेहरा
118-
तालुक़ात, मरासम, यक़ीन टूट गये
हमारे बीच मगर इश्क़ बरक़रार रहा
119-
बात अपनी भी वो रख पाया कहाँ ऐ जाफरी
और मुझ को भी कहाँ उस ने बयां होने दिया
120-
ये पैमाने भी इंसानों के अन्दर ही मुरवविज हैं
परिंदे ........ख़ूबसूरत और बदसूरत नहीं होते
121-
बड़ी हसरत से नीचे देखता है
परिंदा उड़ते उड़ते थक चूका है
122-
वो मुसवर उम्र भर,     आवारगी करता रहा
उस की हर दीवार पर, दीवार की तस्वीर थी
123-
देर तक तकते रहे सहरा को हम
और फिर आंखों में पानी आ गया
124-
यह जो इक दश्ते बे तहाशा है
इस का अपना ही इक तमाशा है
125-
तालुक नींद का पलकों से क्या है?
ये थक कर एक दोजे पर गिर्री है
126-
अजब सा चोर था ख़्वाबों में आ कर
मेरी नींद...…….चुरा कर ले गया है
127-
मुझे घेरा हुवा था दोस्तों ने
मैं ख़ुदा से बात करना चाहता था ...
128-
बहुत तलब हो तो मिलना मुझे अंधेरों में
मैं रौशनी में तो बिलकुल नज़र नहीं आता
129-
चाहने वाले तो सब मुझ से ख़फ़ा बेठे हैं
मेरे ग़ुस्से मै तुझे किस पे उतारों  आख़िर
130-
फिर यूँ हुवा के वो भी कहीं खो गया अली
फिर यूँ हुवा के मेरी भी शोहरत नहीं रही
131-
मुन्तज़िर रहती है दरवाज़े पे फिर भी जाफरी
जब के मैं ने माँ को मोबाइल भी ले कर दे दिया .
132-
मुझ को अब ख्वाब भी नहीं आते
इस क़दर ......मीठी नींद सोता हूँ
133-
हो चुकी जिस्मों जा की सैराबी
अब ये दरया यहां नहीं रहना
134/
मैं ने ही आईने पे दस्तक दी
मै ही दरवाज़ा खोलने निकला
135-
इक उचटती सी निगाह डाली थी मैं ने जाफ़री
देखते ही देखते मुझ पे वो मंज़र खुल गाया ..
136-
आसमां ....छन से टूट फोट गया
और फिर किरचियाँ बरसने लगीं
137-
हाय अफ़सोस.... के किस तेजी से दुन्या बदली
ये जो सच है ........ये कभी झूठ हुवा करता था
138-
मैं दुन्या से बहुत तंग आ चुका था
मगर फिर शायरी होने लगी थी
139-
मुझ को यारों ने दफन कर डाला
वो नही जानते के बीज हूँ में
140-
टेंशन मत ले यार, ये सिर्फ़ सिनीमा है
आख़िर में सब कुछ अच्छा हो जाता हैं
141-
बात बचपन की है इक खाला हुवा करती थी
उस पे सब मरते थे, वो मुझ पे मरा करती थी
142-
मुश्किलों से हवा को बाँधा था
लग गयी आग फिर, दरख्तों में
143-
बाद मुद्दत के आज मिलते ही, खिलखिलाया है मुस्कुराया है
आन्स्वंू को छोपाने की ख़ातिर, मैं ने भी क़ह'क़ाह लगाया है
144-
तुम से में इश्क़ कर रहा हूँ यार
और तुम दोस्ती समझते हो
145-
ये ज़मीन उतनी ही सरफ़राज़ होती है
जिस क़दर बुलंदी से आसमान गिरता है
146-
करवट बदल के सोये थे अर दुसरे के साथ
लेकन खुली जो आँख तो लिपटे हुवे मिले
147-
जब से होंटों को सी लिया है अली
मुझ में इक चीख़ सनसनाती है
148-
आख़िरश, इतनी नफ़रतों के बाद
मैं ...मोहब्बत की मौत मारा गया
149-
मेरी रिहाई पे अब जश्न ना मनाये कोई
मैं कैंद-खाने से ज़ंजीर ले के निकला
150-
ये राज़ मुझ पे बहुत जल्दी खुल गया था अली
मैं............. टूट फूट के मज़बूत होने वाला था
151
मुश्किलों से हवा को बाँधा था
लग गयी आग फिर, दरख्तों मे
152-
था निकलना कहाँ पे गुस्से को
और गुस्सा कहाँ निकाला गया
कल हलाकत हुई थी "शान्ति" की
आज "इखलाक" मार डाला गया


-लियाक़त जाफ़री



शनिवार, 11 जुलाई 2015


गाना - तू मेरी ज़िन्दगी है, तू मेरी हर ख़ुशी है
फिल्म - मोहब्बत मर नही सकती (1977)
संगीतकार - नाशाद
गायक - मेहदी हसन - नूरजहाँ

तू मेरी ज़िन्दगी है, तू मेरी हर ख़ुशी है
तू ही प्यार, तू ही चाहत, तू ही बन्दगी है
तू मेरी ज़िन्दगी है.....

जब तक ना देखंु तुझे, सुरज ना निकले
जुल्फ़ो के साये साये महताब उभरे,
 मेरे दिल का होश तु है, तुही बेख़ुदी है,

तू मेरी ज़िन्दगी है, तू मेरी हर ख़ुशी है
तू ही प्यार, तू ही चाहत, तू ही बन्दगी है
तू मेरी ज़िन्दगी है.....

मेरे लंबो पे तेरे नग्मे मिलेंगे ,
आँखों में साथी तेरे जलवे मिलेंगे
मेरे दिल में तुही तु है, तेरी रोशनी है,

तू मेरी ज़िन्दगी है..........

छोड़ के दुनिया तुझको अपना बना लू,
सबसे छुपा के तुझको दिल  में बसा लू,
तु ही मेरी पहली ख़्वाहिश तु ही आख़री है


तू मेरी ज़िन्दगी है, तू मेरी हर ख़ुशी है
तू ही प्यार, तू ही चाहत, तू ही बन्दगी है
तू मेरी ज़िन्दगी है.....


बशीर साहब के चन्द शे'र ....


गज़ालाँ देखना दिलदार तारों की अटारी में
मेरे नैना के दोनो पट खुले हैं बेकरारी में
****
भोपाल की ग़ज़ल ने वो तर्ज़े निकालियाँ
मौला के दर पे बैठी हैं अब दिल्लीवालियाँ
*****
मैं ये मानता हूँ मेरे दीये तेरी आँधियों ने बुझा दिये
मगर एक जुगनू हवाओं में अभी रोशनी का इमाम है
****
परिन्दां के शिकाराँ से खुदा नाराज़ होवे है
मियाँ जी चाँद को घायल करोगे चानमारी में
*****
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कोई मील का पत्थर नहीं देखा
*******
बाज़ारों की चहल पहल से रौशन है
इन आँखों में मंदिर जैसी शाम कहाँ..
*******
तुमने देखा है किसी मीरा को मंदिर में कभी
एक दिन उसने खुदा से इस तरह माँगा मुझे..
******
मीर कबीर बशीर इसी मक़तब के हैं
आ दिल के मक़तब में अपना नाम लिखा
******
वो बड़ा रहीमो करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर न हो
*******
मेरे साथ जुगनू है हमसफ़र मगर इस शरर की बिसात क्या
ये चराग़ कोई चराग़ है, न जला हुआ न बुझा हुआ
*******
मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब् का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ..
*******
क्यों चांदनी रातों में दरिया पे नहाते हो
सोये हुए पानी में क्या आग लगानी है
******
ज़िन्दगी तू मुझे पहचान न पाई लेकिन..
लोग कहते है कि मैं तेरा नुमाइंदा हूं...
****
ग़ज़लो का हुनर,अपनी आँखों को सिखाएंगे
रोएंगे बहुत, लेकिन आँसू नही आएंगे
******
कह देना समंदर से हम ओस के मोती हैं
दरिया कि तरह तुझ से मिलने नही आएगें
*****
मेरे बारे में वो हवाओं से कब पुछेगा
ख़ाक जब ख़ाक में मिल जाएगी तब पूछेगा?
******
वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी  का हिस्सा है..
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे...
******
अब मिले हम तो कई लोग बिछड़ जायेगें..
इन्तजार और करो अगले जनम तक मेरा..
******
यहाँ लिबास की किमत है, आदमी की नही..
मुझे गिलास बड़े दे, शराब कम दे ..
******
कोई फुल धूप की पत्तियों में..
हरे रिवन से बँधा हुआ..
*******
वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया..
ना कहाँ हूं, ना सुना हूं..
 ******
नफरत को मोहब्बत का एक शे'र सुनाता हूं
मैं लाल  पिसी  मिर्चें  पलकों से  ऊठता हूं...
******
अब मिले हम तो कई लोग बिछड़ जायेगें..
इन्तजार और करो अगले जनम तक मेरा..
*******
कोई जो दुसरा पहने, तो दुसरा ही लगे..
यहाँ लिबास की किमत है आदमी की नही
******
धूप के ऊँचे-नीचे रस्तों को,
एक कमरे का बल्ब क्या जाने।
******
ज़मीं भीगी हुई है आंसुओं से
यहाँ बादल इबादत कर रहे हैं
***
मुझे उन नीली आँखों ने बताया
तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है
***
तुम्हारे साथ में ये मौसम फरिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सताएगा
***
कागज़ की कश्ती, जुगनू, झिलमिल झिलमिल
शौहरत क्या है इक नदिया बरसाती है
******
शक़्ल, सूरत, नाम, पहनावा, ज़बाँ अपनी जगह
 फ़र्क़ वरना कुछ नहीं इन्सान और इन्सान में
*****
सीने में आफ़ताब सा इक दिल जरूर हो
हर घर में इक धुप का आँगन भी चाहिए
*****
बारिशों में किसी पेड़ को देखना,
शाल ओढ़े हुए भीगता कौन है।
******
हिंदुस्तान का मज़हब,दिल का मज़हब है
प्यार को पूजा,चाहत को इस्लाम लिखा

मंदिर मस्ज़िद पानी की दीवारें है
पानी की दीवारों पे किस ने नाम लिखा
****
प्यार की छाँव में दो दिल जो जरा मिल बैठे
बज़्म में ग़ज़लें हुई , शहर में अफ़साने चले
****
जिस की मुखालफ़त हुई मशहूर हो गया
इन पत्थरों से कोई परिंदा गिरा नहीं
****
हज़ारों मील का मंज़र है इस नगीने में
ज़रा सा आदमी दरिया है और सहारा
*****
माटी की कच्ची गागर का, क्या खोना क्या पाना बाबा..
माटी को माटी है रहना , माटी में मिल जाना बाबा...
*******
मैं चुप रहा तो और ग़लत फहमियाँ बढ़ी
वो भी सुना है उसने जो मैंने कहा नहीं
**
पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आँखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते
***
बड़ी आग है बड़ी आंच है ,तेरे मैकदे के गुलाब में
कई बालियाँ कई चूड़ियाँ ,यहाँ घुल रही शराब में
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यारों ने जिस पे अपनी दुकानें सजाई है
ख़ुश्बू बता रही है हमारी ज़मीन है
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चमकती है कहीं सदियों में आंसुओं से ज़मीं
ग़ज़ल के शे'र कहाँ रोज़ रोज़ होते हैं
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सड़कों, बाजारों, मकानों, दफ्तरों में रात-दिन
लाल-पीली, सब्ज़ नीली, जलती-बुझती औरतें।
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थके थके पेडल के बीच चले सूरज
घर की तरफ लौटी दफ्तर की शाम।
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हम से मुसाफिरों का सफ़र इन्तिज़ार है,
सब खिड़कियों के सामने लम्बी कतार है।
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हम क्या जानें दीवारों से, कैसे धूप उतरती होगी,
रात रहे बाहर जाना है, रात गए घर आना बाबा।
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किसने जलाई बस्तियाँ बाजार क्यों लुटे,
मैं चाँद पर गया था मुझको कुछ पता नहीं।
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मकां से क्या मुझे लेना मकां तुमको मुबारक हो
मगर ये घासवाला रेशमी कालीन मेरा है।
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हमसे  मजबूर का ग़ुस्सा  भी अजब बादल  है
अपने ही दिल से उठे - अपने ही दिल पर बरसे
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लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए
यों याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है
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बहुत से और भी घर है, खुदा की बस्ती में ...
फ़क़ीर कब से खड़ा है, जवाब दे जाओ ....
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अहसास की ख़ुश्बू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ, ..
ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं ...
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नहीं  है   मेरे   मुक़द्दर   में   रौशनी, न  सही
ये खिड़की खोलो, ज़रा सुबह की हवा तो लगे
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मेरा ये अहद है, की आज से मैं कोई मंज़र ग़लत न देखूँगा .
मेरी बेटी ने मेरी पलकों को कितनी पाकीज़गी से चुमाँ है ...
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मोहब्बत से, इनायत से, वफ़ा से चोट लगती है
बिखरता फूल हूँ, मुझको हवा से चोट लगती है
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मिरी आँखों में आँसू की तरह इक रात आ जाओ
तकल्लुफ़ से, बनावट से, अदा से चोट लगती है


हो के बेचैन मैं भागा किया आहू की तरह
बस गया था मेरे अन्दर कोई ख़ुशबु की तरह

कोई साया न मिला साया-ए-गेशू की तरह
ज़िन्दगी भर की थकन उतरी है जादू की तरह

मेरी आवाज़ तुझे छु ले बस इतनी मोहलत
तेरे कुचे से गुज़र जाऊँगा साधु की तरह

वो जो आजाये  तो क्या होश का आलम होगा
जिसके आने की ख़बर फैली है ख़ुशबु की तरह

अपनी हर साँस पे अहसां लिये हम दर्दे का
ज़िन्दगी जिता हूँ इस अहद में उर्दू की तरह

ज़िन्दगी ठोकरें ख़ाती है  बिछड़ कर तुझसे
तेरी पाज़ेब के टुटे हुऐ घुँघरू की तरह

अब ये अहसास की ख़ूबी हो के ख़ामी हो 'नूर'
उसकी नफ़रत का धंुआ भी लगा ख़ुशबु की तरह

-कृष्ण बिहार 'नूर'
बशीर बद्र की हिट ग़ज़ले
1-
बहुत अच्छा सा कोई सूट पहनो इस ग़रीबी में
उजालों में छिपी इन बदलियों को कौन देखेगा

है सर्दी वाक़ई लेकिन घने कोहरे के बादल में
पहाड़ों से उतरती इन बसों को कौन देखेगा

अगर हम साहिलों पे डोर काँटे ले के बैठेंगे
तो मौजों में चमकती तितलियों को कौन देखेगा

बशीर साहब

2-
अज़्मते सब तिरी खुदाई की
हैसियत क्या मिरी इकाई की

मिरे होंठ के फुल सुख गये
तुम ने क्या मुझे से बेवफ़ाई की

सब मिरे हाथ पाँव लफ़्जों के
और  आँखे  भी रौशनाई  की

मैं मुल्ज़िम हूँ मैं ही मुंसिफ़ हूँ
कोई सुरत नही रिहाई की

इक बरस ज़िन्दगी का बीत गया
तह  ज़मीं  एक  और  काई की

अब तरसते रहो ग़ज़ल के लिये
तुम ने लफ़्जों से बेवफ़ाई की

-बशीर बद्र साहब

3-
क़दम ज़माना भी है , और सब के साथ चलना भी
हम सअपनी  राह का   पत्थर है और   दरिया भी

बहुत जहीन-ओ-ज़माना शनास था लेकिन
वो रात बच्चों की सूरत लिपट के रोया भी

चराग जलने से पहले हमें पहुँचना है
ढके हुए है, पहाड़ों को आज कोहरा भी

हज़ारों मील का मंज़र है इस नगीने में
ज़रा सा आदमी दरिया है और सहरा भी

वही शरारा के जिससे झुलस गई पलकें
सितारा बनके मिरी रातों में वो चमका भी

असर वही हुआ आख़िर अगर'चे पहले पहल
हवा का हाथ गुलों के बदन पे फिसला भी

हम अपना घर भी न अब ढँूढ पायेंगे शायद
अगर हमरा हुआ उस तरफ को फेरा भी

अभी ज़माने से शायद हो सौ बरस पीछे
तुम्हारा दिल भी सलामत है और चेहरा भी

मगर जो फ़ासला पहले था और बढ़ता गया
मैं उसके पास गया वो इधर से गुज़रा भी

-बशीर बद्र

4-
हमारे पास तो आओ, बड़ा अँधेरा है !
कहीं न छोड़ के जाओ, बड़ा अँधेरा है !!

उदास कर गये बे साख्ता लतीफ़े भी !
अब आसुंओं से रुलाओ, बड़ा अँधेरा है !

कोई सितारा नहीं पत्थरों की पलकों पर !
कोई चिराग़ जलाओ, बड़ा अँधेरा है !!

हकीकतों में ज़माने बहुत गुज़ार चुके !
कोई कहानी सुनाओ, बड़ा अँधेरा है !!

किताबें कैसी उठा लाए मैकदे वाले !
ग़ज़ल के जाम उठाओ, बड़ा अँधेरा है !!

ग़ज़ल में जिस की हमेशा चराग़ जलते हैं !
उसे कहीं से बुलाओ, बड़ा अँधेरा है !!

वो चाँदनी की बशारत है हर्फ़े आखिर तक !
"बशीर बद्र" को लाओ, बड़ा अँधेरा है !!

बशीर बद्र
5-
पहला सा वो ज़ोर नही  है मेरे दुख: की सदाओं में
शायद पानी नही रहा है अब प्यासे  दरियाओं में

जिस बादल की आस में जोड़े खोल लिये है सुहागन नें
वो  पर्वत से  टकरा  कर  बरस  चुका  है  सहराओं में

जाने कब तड़प और चमके सुनी रात को फ़िर डँस जाए
मुझ को एक रूपहली नागिन बैठी मिली है घटाओ में

पता तो आखिर पता था, गूंजान घने दरख़्तों ने
ज़मीं को तन्हा छोड़ दिया है इतनी तेज हवाओं में

दिन भर धूप की तरह से हम छाए रहते हैं दुनिया पर
रात हुई तो सिमट के आ जाते हैं दिल की गुफ़ाओ में

खड़े हुए जो साहिल पर तो दिल में पलकें भीग गई
शायद  आँसू  छुपे  हुए हो सुब्हा की नर्म हवाओं में

ग़ज़ल के मंदिर में दीवाना मुरत रख कर चला गया
कौन  उसे  पहले  पूजेगा  बहस  चली  देवताओं  में

बशीर साहब
6-
सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
बस ज़रा वफ़ा कम है तेरे शहर वालों में

पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा
हम जवाब क्या देते खो गये सवालों में

रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा
जैसे कोई चुटकी ले नर्म नर्म गालों में

मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे
रात के मुसाफ़िर थे खो गये उजालों में
7-
दूसरों को हमारी सज़ायें न दे
चांदनी रात को बद-दुआयें न दे

फूल से आशिक़ी का हुनर सीख ले
तितलियाँ ख़ुद रुकेंगी सदायें न दे

सब गुनाहों का इक़रार करने लगें
इस क़दर ख़ुबसूरत सज़ायें न दे

मोतियों को छुपा सीपियों की तरह
बेवफ़ाओं को अपनी वफ़ायें न दे

मैं बिखर जाऊँगा आँसूओं की तरह
इस क़दर प्यार से बद-दुआयें न दे


अशआर मेरे यूं तो ज़माने के लिये हैं 
कुछ शेर फ़कत उनको सुनाने के लिये हैं 
जॉ निसार अख़्तर

अब किसी लैला को भी इक़रारे-महबूबी नहीं
इस अहद में प्यार का सिम्बल तिकोना हो गया
-अदम गोंडवी

अज़मते-मुल्क इस सियासत के 
हाथ नीलाम हो रही है अब 

(अज़मते-मुल्क = देश की महत्ता)
-दुष्यंत कुमार 

आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है 
पत्थरों में चीख़ हर्गिज़ कारगर होगी नहीं 
-दुष्यंत कुमार 

आपके टुकड़ों के टुकड़े कर दिये जायेंगे पर 
आपकी ताज़ीम में कोई कसर होगी नहीं 
-दुष्यंत कुमार 

अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
हम मरे जाते हैं तुम कहते हो हाल अच्छा है
-अमीर मिनाई 

अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म,
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां और भी हैं

(मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां = रोने-धोने की जगहें)

-अल्लामा इक़बाल 

अजनबी दोस्त हमें देख के हम
कुछ तुझे याद दिलाने आए
-फ़राज़

अब तो रोने से भी दिल दुखता है
शायद अब होश ठिकाने आए
-फ़राज़

अभी तो जाग रहे हैं चिराग़ राहों के,
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो। 
-फ़राज़

अपने सिवा हमारे न होने का ग़म किसे,
अपनी तलाश में तो हमीं हम हैं दोस्तों ।
-फ़राज़


अपने बीच हुआ जो भी
खुल कर पूरी बात बता

-आर.सी.शर्मा 'आरसी'

अपनी, आँखों के तारों का, आसमान थे सचमुच तुम
सौ जन्मों तक नहीं चुकेगा, हमसे यह एहसान पिता ।
-आर.सी.शर्मा 'आरसी'

अपना घर क्यों रहा अछूता सावन की बौछारों से,
शब्द-कोष में शब्द नहीं तो मौसम की नादानी लिख।
-आर.सी.शर्मा 'आरसी'


अंगुली का नाख़ून कटा कर कहलाए कुछ लोग शहीद,
दीवारों में चिने गए जो, तू उनकी कुर्बानी लिख।
-आर.सी.शर्मा 'आरसी'

अपने भीतर झाँक ज़रा सा
काजल ही काजल निकलेगा

- आर० सी० शर्मा “आरसी”

अक्षर अक्षर जोड़ “आरसी”
इक दिन तू भी चल निकलेगा

- आर० सी० शर्मा “आरसी”

आवाम की चाहें तो हिफाज़त ना कीजिए,
इतना करम करें कि,सियासत ना कीजिए।
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

अपनी तन्हाई से भी होती नहीं अब गुफ्तगू,
बेकराँ कैदे-अनाँ और मैं अकेला आदमी
-क़तील शिफ़ाई

आंसू छलक छलक के सताएंगे रात भर
मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम
-क़तील शिफ़ाई

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको।
-क़तील शिफ़ाई

आज हुआ मालूम मुझे इस शहर के चंद सयानों से
अपनी राह बदलते रहना सबसे बड़ी दानाई है
-क़तील शिफ़ाई

अपने होठों पे सजाना चाहता हूं
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूं
-क़तील शिफ़ाई

आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आए
मौत भी मैं शायराना चाहता हूं
-क़तील शिफाई 

इम्तेहां और मेरी ज़ब्त का तुम क्या लोगे
मैंने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है 
-क़तील शिफाई

अब जिस के जी में आए वही पाए रौशनी
हम ने तो दिल जला के सर-ए-आम रख दिया
-क़तील शिफाई

आग पी कर भी रोशनी देना
माँ के जैसा है ये दिया कुछ कुछ
हस्तीमल 'हस्ती'

आपकी शक़्ल ही ख़राब रही
क्या मिला बच के आईने से जनाब
हस्तीमल 'हस्ती'

अनगिन बूंदों में कुछ को ही
आता है फूलों पे ठहरना

हस्तीमल 'हस्ती'

अपनी मंज़िल ध्यान में रखकर
दुनियाँ की राहों से गुजरना

-हस्तीमल 'हस्ती'

अना पसंद है 'हस्ती' जी सच सही लेकिन
नज़र को अपनी हमेशा झुका के रखते हैं

हस्तीमल 'हस्ती'

अब ये हम पर है कि उसको कौन-सा हम नाम दें,
ज़िन्दगी जंगल भी है और ज़िन्दगी मधुबन भी है
-कुँअर बेचैन

आज मैं बारिश मे जब भीगा तो तुम ज़ाहिर हुईं
जाने कब से रह रही थी मुझमें अंगड़ाई-सी तुम
-कुँअर बेचैन

आपको ऊँचे जो उठना है तो आंसू की तरह
दिल से आँखों की तरफ हँस के उछलते रहिये 
-कुँअर बेचैन

अब नींद भी आँखों से, ये पूछ के आती है,
आने से ज़रा पहले, कुछ ख़्वाब सजा लूं क्या 
-कुँअर बेचैन

अब हम लफ़्ज़ों से बाहर हैं हमें मत ढूंढिए साहब
हमारी बात होती है इशारों ही इशारों में 
-कुँअर बेचैन

अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे
मर के भी अगर चैन ना पाया तो किधर जाएंगे
हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएंगे
-ज़ौक़

अहल-ए-ज़बाँ तो हैं बहुत कोई नहीं है अहल-ए-दिल
कौन  तेरी  तरह  'हफ़ीज़' सदर्द सके  गीत गा  सके
-हफ़ीज़ जालंधरी

अजीब चीज़ है ये वक़्त जिसको कहते हैं,
कि आने पाता नहीं और बीत जाता है 
-शहरयार

अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है
-शहरयार 

आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
ये अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है
-शहरयार 

आप बीती पर जहाँ हँसना था जी भर के हँसा
हाँ जहाँ रोना ज़रूरी था वहाँ रोया नहीं
-शहरयार 

अजीब सानेहा मुझ पर गुजर गया यारो
मैं अपने साये से कल रात डर गया यारो
-शहरयार

अपने अशआर की शमाओं से उजाला करके
कर गया शब का सफ़र कितना वो आसाँ यारो
-हबीब ज़ालिब 

अहले दिल और भी हैं, अहले वफ़ा और भी हैं,
एक हम ही नहीं, दुनिया से ख़फ़ा और भी हैं 
-साहिर लुधियानवी 


आँख खुली तो सारे मंज़र ग़ायब हैं
बंद आँखों से क्या-क्या देखा करता था
-आलम खुर्शीद

अब जंगल में चैन से सोया करता हूँ
डर लगता था बचपन में वीरानी से
आलम खुर्शीद

अपना फ़र्ज़ निभाना एक इबादत है
आलम, हम ने सीखा इक जापानी से
-आलम खुर्शीद

अपने घर में ख़ुद ही आग लगा लेते हैं
पागल हैं हम अपनी नींद उड़ा लेते हैं
-आलम खुर्शीद

औरों को मुजरिम ठहरा कर अब हम 'आलम'
अपने गुनाहों से छुटकारा पा लेते हैं
-आलम खुर्शीद

आँखों पे छा गया है जादू ही कोई शायद
पलकें झपक रहा हूँ , मंज़र बदल रहा हूँ
-आलम खुर्शीद

आगही ने हम पे नाज़िल कर दिया कैसा अज़ाब
हैरती कोई नहीं मंज़र बदल जाने के बाद
/आलम खुर्शीद
[(आगही = ज्ञान, जानकारी), (नाज़िल = आ पहुँचना), (अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट)]

अब हवा ने हुक्म जारी कर दिया बादल के नाम
खूब बरसेंगी घटायें शहर जल जाने के बाद
-आलम खुर्शीद

आन बसा है सेहरा मेरी आँखों में
दिल की मिट्टी कैसे नम हो जाती है
-आलम खुर्शीद

अकड़ती जा रही हैं रोज़ गर्दन की रगें 'आलम'
हमें ए काश! आ जाए हुनर भी सर झुकाने का
-आलम खुर्शीद

अजब सी गूँज उठती है दरो-दीवार से हरदम
ये उजड़े ख़्वाब का घर है यहाँ सोया नहीं जाता
आलम खुर्शीद

आदमी नश्श-ए-ग़फ़लत में भुला देता है,
वर्ना जो सांस है तालीमे-फ़ना देता है ।
-जिगर मुरादाबादी

[(नश्श-ए-ग़फ़लत = बेखबरी/ असावधानी के नशे में), (तालीमे-फ़ना = मृत्यु की शिक्षा)]


अश्कों के तबस्सुम में आहों के तरन्नुम में
 मासूम मोहब्बत का मासूम फ़साना है 
-जिगर मुरादाबादी

आँखों में नमी-सी है चुप-चुप-से वो बैठे हैं 
नाज़ुक-सी निगाहों में नाज़ुक-सा फ़साना है 
-जिगर मुरादाबादी

आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन 
बिँध जाये सो मोती है रह जाये सो दाना है 
-जिगर मुरादाबादी

आँखों का था क़ुसूर न दिल का क़ुसूर था
आया जो मेरे सामने मेरा ग़ुरूर था
-जिगर मुरादाबादी

आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है
-जिगर मुरादाबादी

अभी बेवज्ह ख़ुश-ख़ुश था अभी बेवज्ह चुप-चुप है
नहीं कुछ ठीक इस दिल का, घड़ी को कुछ घड़ी को कुछ 
-राजेश रेड्डी 


अब तो लगता है दुश्मनों को भी
दोस्तों में शुमार कर लिया जाए
-राजेश रेड्डी 

अश्क आँखों में फिर उमड़ आए
इस नदी को भी पार कर लिया जाए
-राजेश रेड्डी 


आज का दिन चैन से गुज़रा, मैं खुश हूँ
जाने कब तक ये ख़ुशी बाक़ी रहेगी

-राजेश रेड्डी

अपने सच में झूठ की मिक्दार थोड़ी कम रही
कितनी कोशिश की, मगर, हर बार थोड़ी कम रही
-राजेश रेड्डी

आज दिल को अक़्ल ने जल्दी ही राज़ी कर लिया
रोज़ से कुछ आज की तक़रार थोड़ी कम रही
-राजेश रेड्डी

आप तो पहले ही मिसरे में उलझ कर रह गए
मुंतज़िर कब से यहाँ मिना-ए-सानी में हूँ मैं 
-राजेश रेड्डी


अजब मुसाफ़िर हूँ मैं मेरा सफ़र अजीब
मेरी मंज़िल और है मेरा रस्ता और
-राजेश रेड्डी

अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम
ख़ुद को समेटते हैं यहाँ से वहाँ से हम 
-राजेश रेड्डी

अब तो सराब ही से बुझाने लगे हैं प्यास 
लेने लगें हैं काम यक़ीं का गुमाँ से हम
-राजेश रेड्डी

आईने से उलझता है जब भी हमारा अक्स
हट जाते हैं बचा के नज़र दरमियाँ से हम 
-राजेश रेड्डी

अब याद-ए-रफ़्तगाँ की भी हिम्मत नहीं रही 
यारों ने इतनी दूर बसा ली हैं बस्तियाँ 
-फ़िराक़ गोरखपुरी

याद-ए-रफ़्तगाँ = गुज़री हुई यादें

अपनी मासूमियों के परदे में
हो गई वो नज़र सयानी भी

-फ़िराक़ गोरखपुरी

अब इसको कुफ़्र माने या बलन्दी-ए-नज़र जानें
ख़ुदा-ए-दोजहाँ को देके हम इन्सान लेते हैं।

-फ़िराक़ गोरखपुरी

अगर मुम्किन हो ले ले अपनी आहट 
ख़बर दो हुस्न को मैं आ रहा हूँ 

-फ़िराक़ गोरखपुरी

आगाज़ तो होता है, अंजाम नहीं होता,
जब मेरी कहानी में, वो नाम नहीं होता ।

-मीना कुमारी नाज़

अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
हम मरे जाते हैं तुम कहते हो हाल अच्छा है

-अमीर मिनाई 

आ गया उस का तसव्वुर तो पुकारा ये शौक़
दिल में जम जाये इलाही ये ख़याल अच्छा है
-अमीर मिनाई 

आख़िरी वक़्त भी पूरा न किया वादा-ए-वस्ल
आप आते ही रहे मर गये मरने वाले
-अमीर मिनाई 

आपसे झुक के जो मिलता होगा,
उसका क़द आपसे ऊँचा होगा 
-अहमद नदीम क़ासमी

अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए 
तेरी सहर हो मेरा आफ़ताब हो जाए 
-दुष्यंत कुमार

आँधी में सिर्फ़ हम ही उखड़ कर नहीं गिरे
हमसे जुड़ा हुआ था कोई एक नाम और 
-दुष्यंत कुमार

आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख 
-दुष्यंत कुमार

अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख 
-दुष्यंत कुमार

आज एक बात तो बताओ मुझे 
ज़िन्दगी ख्वाब क्यो दिखाती है 
-जौन एलिया
क़ासिद पे कुछ शेर ...
1-
देख क़ासिद को मिरे यार ने पुछा 'ताँबा'
क्या मिरे हिज्र में जीता है वो ग़मनाक हनूज
-ताँबा अब्दुल हई
2-
क़सिद को उस ने जाते ही  रुख्सत किया था
बद-जात  माँदगी  के  बहाने  से  रह  गया

-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
3-
पहुंचे न वहाँ तक ये दुआ मांग रहा हूँ
क़ासिद को उधर भेज के ध्यान आए है क्या-क्या!
~ मीर ज़मीन अली जलाल
4-
क़ासिद की गुफ्तगू से तसल्ली हो किस तरह
छिपती नहीं वो जो तेरी ज़ुबान की नहीं..
~ दाग़
5-
वो और वादा वस्ल का.!? क़ासिद, नहीं, नहीं!
सच-सच बता, ये लफ़्ज़ उन्ही की ज़ुबाँ के हैं??
~ अमीर मीनाई
6-
ग़ैर के धोखे में ख़त ले के मेरा क़ासिद से
पढने को पढ़ तो लिया, नाम मगर छोड़ दिया..
~ निज़ाम रामपुरी
7/
क़ासिद के होश गम थे, ये तुर्फ़ा माजरा था
कहता था कुछ ज़ुबानी, और ख़त में कुछ लिखा था..
~ ज़की
8-
क़यामत है, ये कह कर उस ने लौटाया है क़ासिद को
कि उनका तो हर इक ख़त आख़िरी पैग़ाम होता है..!
~ शेरी भोपाली
9-
तू देख रहा है जो मेरा हाल है, क़ासिद,
मुझको यही कहना है, मुझे कुछ नहीं लिखना..
~ क़ैफ़ देहलवी
10-
क़ासिद, पयाम-ए-शौक़ को देना बहुत न तूल
कहना फ़क़त ये उन से कि आँखें तरस गईं...
~ जलील मानिकपुरी

11-
पयाम-ए-दोस्त हुआ क़ासिदों को वज्ह-ए-शरफ़
नसीम-ए-मिस्र से इज्ज़त है कारवाँ के लिए..
~ मुस्तफ़ा खान शेफ़्ता
12-
यूँ बहार आई है इस बार कि जैसे क़ासिद
कूचा-ए-यार से बे-नैल-ए-मराम आता है
~ फ़ैज़
13/
खून-ए-क़ासिद को वो सफ़्फ़ाक समझता है हलाल
किसी ग़म्माज़ से भिजवाएंगे पैग़ाम को हम
~ हैदर अली आतिश
14-
सब मेरा हाल वहां कैसे कहेगा क़ासिद
तू तो सुनता है नहीं बात मेरी थोड़ी सी..
~ निज़ाम रामपुरी
15-
ये एक बात है क़ासिद जो भेजता हूँ उन्हें
वगरना दिल में जो उनके है, वो यहाँ मुंह में..!
~ निज़ाम रामपुरी
16-
उनके लाने की न सूझी तुझे क़ासिद तदबीर?
झूठ-सच, कोई तो अफसाना बनाया होता..!
~ जलील मानिकपुरी
17-
क़ासिद, कहाँ चला है? मुझे भी ख़बर तो दे
यक-दम तू बैठ जा कि मुझे तुझ से काम है..!
~ शेख़ ज़हूरुद्दीन हातिम
18-
मेरे लिए भी ख्व़ाब थे उसने रखे हुए कहीं
शहर में उनको ढूँढने क़ासिद-ए-बे-हुनर गए..
~ किश्वर नाहीद
19-
ख़ुदा मालूम क़ासिद क्या सुनाए, दिल धड़कता है
ये कहता है कि पैग़ाम-ए-ज़ुबानी ले के आया हूँ..!
~ जलील मानिकपुरी
20-
ख़त-ए-शौक़ को पढके क़ासिद से बोले
ये है कौन दीवाना ख़त लिखने वाला..?
~ साइल देहलवी
21-
लगा के पाँव में उसके उड़ाऊँ क़ासिद को
अगर मुझे तेरे तौसन की गर्द-ए-राह मिले..
~ दाग़ देहलवी
22-
कभी उस तग़ाफ्फ़ुल-मनुश की तरफ से
न क़ासिद, न नामा, न पैग़ाम आया...
~ नज़ीर अकबराबादी
23-
उस के दर तक पहुँच गया कासिद
आगे तक़दीर की रसाई है..
~ दाग़ देहलवी
24-
जिससे तस्कीन हो मेरी क़ासिद
ऐसी तो बात तू कहता ही नहीं..!!?
~ निजाम रामपुरी
25-
‘मुसहफ़ी’, बात तो कहने दो ज़रा क़ासिद को
पहले ही हर्फ़ में तुम इतना न घबराओ, सुनो..
~ मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
26-
मेरी किस्मत से भूला नाम क़ासिद,
न लिखते तुम तो वर्ना उम्र भर ख़त..
~ मिर्ज़ा आस्मां जाह अंजुम
27/
आ जाएँ वो मगर मुझे आता नहीं यकीं
क़ासिद का जो है कौल ओ ख़त में रक़म भी है..
~ निजाम रामपुरी
28-
जवाब-ए-ख़त का न क़ासिद से माजरा पूछो
है साफ़ चेहरे से ज़ाहिर कि शर्मसार आया..
~ शाद अज़ीमाबादी
29-
मज़मून सूझते हैं हज़ारों नए-नए
क़ासिद, ये ख़त नहीं, मेरे ग़म की किताब है!
~ निज़ाम रामपुरी
30-
है सुब्ह से कुछ आज मेरे दिल को बशाशत
उस कूचे से कासिद तो न ख़त ले के चला हो..!?
~ मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
31-
है सुब्ह से कुछ आज मेरे दिल को बशाशत
उस कूचे से कासिद तो न ख़त ले के चला हो..!?
~ मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
32-
पढ़ के क़ासिद ख़त मेरा उस बद-ज़ुबाँ ने क्या कहा..?
क्या कहा, फिर कह, बुत-ए-ना-मेहरबाँ ने क्या कहा..??
~ क़ायम चांदपुरी
33-
जो तुम बे-ए'तिनाई से न लिखते
न देता हम को क़ासिद फेंक कर ख़त..
~ मिर्ज़ा असमान जाह अंजुम

34-
जब से आग़ोश-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त में आ बैठा हूँ
ढूँढ़ते फिरते हैं क़ासिद तेरे पैग़ाम लिए...
~ अख्तर संदेलवी
35-
मैं किस के हाथ भेजूं उसे आज की दुआ?
क़ासिद, हवा, सितारा, कोई उसके घर न जाए..!
~ परवीन शाकिर
36-
मुन्तज़िर हैं जान-ए-बर-लब-आमदा
देखिए, कब फिर के क़ासिद आएगा..
~ शाद अज़ीमाबादी
37-
आशिकों पर ज़ुल्म करना छोड़ दें..
क्यूँ बे कासिद, जा के समझाता नहीं..?
~ अख्तर शीरानी
38-
दीवार सुर्ख खून से देखी, पता मिला
क़ासिद ठहर गया दर-ए-जानाँ के सामने..
~ रजब अली बेग सुरूर
39-
क्या जाने क्या लिखा था उस इज्तिराब में
क़ासिद की लाश आई है ख़त के जवाब में
-मोमिन
40-

क़ासिद तुम काहे को भेजोगे मेरे पास
नाम: तो वो लिखे जिसे याद आता हो कोई
'मुसहफी'
41-

क़ासिद आया है वहाँ से तू ज़रा थम तो सही
बात तो करने दे उससे, ऐ दिल-ए-बेताब मुझे
- 'तस्कीन'

42-
क़ासिद तू लिये जाता है पैग़ाम हमारा
पर डरते हुए लीजियो वाँ नाम हमारा
- 'आसिफ़'

43-
तू  देख  रहा है जो  मिरा  हाल  है क़ासिद
मुझको यही कहना है कि मैं कुछ नही कहता
- 'क़ैफ़ी'
44-
क़ासिद पैयाम-ए-शौक़ को देना बहुत न तुल
कहन फ़क़त यह उनसे कि आँख तरस गई
'जलील'
45-
क़ासिद पैयाम उनका न कुछ देर अभी सुना
रहने दे मह््-ए-लज़्ज़त-ए-ज़ौक़-ए-ख़बर मुझे
'असर' लखनवी
46-
क़ासिद तेरी हड़ताल के क़ुरबान जाइए
वो आगए है ख़ुद मिरे ख़त के जवाब में
'साजन'
47-
क़ासिद मगर अग़ियार का लिक्खा है जहाँ हाल
पाता  हूँ  वहाँ   ज़ोर-ए-क़लम   और   जियाद:
-दाग
48-
ख़त में   लिखा  है  यार  ने  मुझे  सलाम  अलैक
क़ासिद मिरो तरफ़ से भी कह दीजो पयाम-ए-शौक़
'असीर'
49-
पहुँचे  न  वहाँ   तक  यह  दुआ  माँग  रहा  हूँ
क़ासिद को उधर भेज के ध्यान आए है क्या-क्या
-'जलाल' लखनवी
50-
आती है बात बात मुझे बार बार याद
कहता हूँ दौड़-दौड़कर क़ासिद राह में
 -दाग
51-
क़ासिदों   के  पाँव   तोड़े   बदगुमानी  ने   तिरी
ख़त दिया लेकिन न बतलाया निशान-ए-कू-ए-दोस्त
शेरी' भोपाली

52-
कय़ामत है यह कहकर उसने लौटाया है क़ासिद को
कि उनका  तो हर इक     ख़त आख़िरी पैग़ाम होता है
'शेरी' भोपाली
53-
क़ासिद नहीं ये काम तेरा अपनी राह ले
उस का पयाम दिल के सिवा कौन ला सके
मीर दर्द
54-
तअम्मुल तो था उन को आने में क़ासिद
मगर ये बता तर्ज़-ए-इन्कार क्या थी
"इक़बाल"
55-
समझा दे उस को जा के ये इक बात ऐ सबा
क़ासिद अभी गया है, अभी होगा राह मे
"दाग़"
56-
अश्कों के निशाँ पर्चा-ए-सादा पे हैं क़ासिद
अब कुछ न बयाँ कर ये इबारत ही बहुत है
एहसान अली खान
57-
कोई नाम-ओ-निशाँ पूछे तो ऐ क़ासिद बता देना
तखल्लुस "दाग़" है और आशिक़ों के दिल में रहते हैं

58-
तर्क कर चुके क़ासिद कु-ए-ना-मुरादाँ को
कौन अव ख़बर लावे शहर-ए-आश्राई की
59-
नामे का मिरे ये था जवाब ऐ मह-ए-नौ-ख़त
ये क़ाएदा-ए-क़ासिद-ओ-मक्तूब न होता
हसरत अज़ीमाबादी
60-
एक मुद्दत से न क़ासिद है, न ख़त है न पयाम,
अपने वादे को तू कर याद मुझे याद न कर.
- जलील मानिकपुरी
61-
क़ासिद है तू ख़ुदा का अगर चिट्ठियाँ ही बाँट,
उन चिट्ठियों पे तू लिखा अपना पता न देख.
- सुरेन्द्र चतुर्वेदी
62-
ओ क़ासिद जब तू जाए मेरे दिलदार के आगे,
अदब से सर झुकाना हुस्न की सरकार के आगे,
मगर मुँह से न कह पाए तो आँखों से बयाँ करना,
मेरे ग़म का हर एक क़िस्सा मेरे ग़म-ख्वार के आगे.
- Unknown
63-
फिरता है मेरे दिल में कोई हर्फ़-ए-मुद्दा,
क़ासिद से कह दो और न जाए ज़रा सी देर.
- दाग देहलवी
64-
नामे का मिरे ये था जवाब ऐ मह-ए-नौ-ख़त
ये क़ाएदा-ए-क़ासिद-ओ-मक्तूब न होता
हसरत अज़ीमाबादी
65-
कभी लिखता हूँ मैं उन को अगर ख़त
चला जाता है क़ासिद भूल कर ख़त
-मिर्ज़ा असमान जाह अंजुम
66-
क़ासिद को उस ने जाते ही रुख़्सत किया था लेक
बद-ज़ात माँदगी के बहाने से रह गया
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
67-
ख़त के पुर्ज़े आये हैं क़ासिद का सर तस्वीर-ए-ग़ैर,
ये है भेजा उस सितमगर ने मेरे ख़त का जवाब.
- Unknown
68-
पयाम-ए-दोस्त हुआ क़ासिदों को वज्ह-ए-शरफ़
नसीम-ए-मिस्र से इज़्ज़त है कारवाँ के लिए
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
69-
ये नाज़नीं कि जिसे क़ासिद-ए-बहार कहें
जवाँ हसीना कि फ़ितरत का शाहकार कहीं
नज़ीर मिर्ज़ा बर्लास
70-
ओ क़ासिद जब तू जाए मेरे दिलदार के आगे,
अदब से सर झुकाना हुस्न की सरकार के आगे,
मगर मुँह से न कह पाए तो आँखों से बयाँ करना,
मेरे ग़म का हर एक क़िस्सा मेरे ग़म-ख्वार के आगे.

परवीन शाकिर
71-
क़त्ल-ए-क़ासिद पे कमर बाँधी है 'शोला' उस ने
ख़त किताबत की मुलाक़ात है ये भी न सही
शोला अलीगढ़ी
72-
इश्क़ फ़र्मूदा-ए-क़ासिद से सुबुक-गाम-ए-अमल
अक़्ल समझी ही नहीं म'अनी-ए-पैग़ाम अभी
अल्लामा इक़बाल


मुनव्वर राना माँ पे कुछ शेर

दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती

मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है

जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई

अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है

लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती,
बस एक माँ है जो कभी खफ़ा नहीं होती।

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।

मैंने रोते हुए पोछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुप्पट्टा अपना।

अभी ज़िंदा है माँ मेरी, मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है।

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।

ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया।

मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं
मां से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ।

मुनव्वर‘ माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती

लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में गज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है।

ये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटू मेरी माँ सजदे में रहती है

बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है बेटा मज़े में है

खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी थीं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज्जत वही रही

भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये,
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक

बुलंदियों का बड़े से बड़ा निशान छुआ
उठाया गोद में माँ ने तब आसमान छुआ

घेर लेने को मुझे जब भी बलाएं आ गईं
ढाल बनकर सामने माँ की दुआएं आ गईं

जरा-सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये
दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है
मुनव्वर राना की ग़ज़ले व नज़्में

1-
सेहरा मे रह के क़ैस ज्यादा मज़े में है
दुनिया समझ रही है के लैला मज़े मे है !

बरबाद कर दिया  हमें परदेस ने मगर
माँ सब से केह रही है के बेटा मज़े मे है!

है रूह बेक़रार अभी तक यज़ीद की
वो इसलिये कि आज भी प्यासा मज़े में है!

दुनिया अगर मजाक बदल दे तो और बात
अब तक तो झुठ बोलने वाला  मज़े में है!

शायद उसे ख़बर भी नही है कि इन दिनों
बस इक वही उदास है "राना" मज़े में है!

 2-
हम दोनों में आँखें कोई गीली नहीं करता!
ग़म वो नहीं करता है तो मैं भी नहीं करता!!

मौक़ा तो कई बार मिला है मुझे लेकिन!
मैं उससे मुलाक़ात में जल्दी नहीं करता!!

वो मुझसे बिछड़ते हुए रोया नहीं वरना!
दो चार बरस और मैं शादी नहीं करता!!

वो मुझसे बिछड़ने को भी तैयार नहीं है!
लेकिन वो बुज़ुर्गों को ख़फ़ा भी नहीं करता!!

ख़ुश रहता है वो अपनी ग़रीबी में हमेशा!
‘राना’ कभी शाहों की ग़ुलामी नहीं करता!!


3-
उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं!
क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं!!

जो भी दौलत थी वो बच्चों के हवाले कर दी!
जब तलक मैं नहीं बैठूँ ये खड़े रहते हैं !!

मैंने फल देख के इन्सानों को पहचाना है!
जो बहुत मीठे हों अंदर से सड़े रहते हैं!!

4-

यह एहतराम तो करना ज़रूर पड़ता है!
जो तू ख़रीदे तो बिकना ज़रूर पड़ता है!!

वो दोस्ती हो मुहब्बत हो चाहे सोना हो!
कसौटियों पे परखना ज़रूर पड़ता है!!

कभी जवानी से पहले कभी बुढ़ापे में!
ख़ुदा के सामने झुकना ज़रूर पड़ता है!!

हो चाहे जितनी पुरानी भी दुश्मनी लेकिन!
कोई पुकारे तो रुकना ज़रूर पड़ता है!!

वफ़ा की राह पे चलिए मगर ये ध्यान रहे!
की दरमियान में सहरा ज़रूर पड़ता है.!!
मुनव्वर राना.

5-
दौलत से मुहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन
बच्चों ने खिलौनों की तरफ़ देख लिया था

जिस्म पर मेरे बहुत शफ़्फ़ाफ़ कपड़े थे मगर
धूल मिट्टी में अटा बेटा बहुत अच्छा लगा

कम से बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर
ऐसे मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ

क़सम देता है बच्चों की, बहाने से बुलाता है
धुआँ चिमनी का हमको कारख़ाने से बुलाता है

बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद
अब जाग भी जाते हैं तो सहरी नहीं खाते

इन्हें फ़िरक़ा परस्ती मत सिखा देना कि ये बच्चे
ज़मी से चूम कर तितली के टूटे पर उठाते हैं

सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता

बिछड़ते वक़्त भी चेहरा नहीं उतरता है
यहाँ सरों से दुपट्टा नहीं उतरता है

कानों में कोई फूल भी हँस कर नहीं पहना
उसने भी बिछड़ कर कभी ज़ेवर नहीं पहना

6-
अच्छी से अच्छी आबो हवा के बग़ैर भी
ज़िंदा हैं कितने लोग दवा के बग़ैर भी

सांसों का कारोबार बदन की ज़रूरतें
सब कुछ तो चल रहा है दुआ के बग़ैर भी

बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग
इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी

हम बेकुसूर लोग भी दिलचस्प लोग हैं
शर्मिन्दा हो रहे हैं ख़ता के बग़ैर भी

7-
'शहदाबा' में मुनव्वर साहब की कुछ पाबंद नज़्में हैं. बताया जाता है कि इनमें से एक नज़्म तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने घर में फ्रेम करवाकर लगा रखी है. इसके एक दो बंद आपको पढवाता हूं..

एक बेनाम सी चाहत के लिए आई थी
आप लोगों से मुहब्बत के लिए आई थी

मैं बड़े बूढ़ों की ख़िदमत के लिए आई थी
कौन कहता है हुकूमत के लिए आई थी

अब यह तक़दीर तो बदली भी नहीं जा सकती
मैं वह बेवा हूं जो इटली भी नहीं जा सकती
मैं दुल्हन बन के भी आई इसी दरवाज़े से
मेरी अर्थी भी उठेगी इसी दरवाज़े से

8-
इशारों–इशारों में मुनव्वर साहब किस तरह सोनिया गांधी के मन की बात को अपनी नज़्म में कह जाते है.

आप लोगों का भरोसा है ज़मानत मेरी
धुंधला-धुंधला सा वह चेहरा है ज़मानत मेरी
आपके घर की ये चिड़िया है ज़मानत मेरी
आपके भाई का बेटा है ज़मानत मेरी
है अगर दिल में किसी के कोई शक निकलेगा
जिस्म से खून नहीं सिर्फ नमक निकलेगा

9-
हमारा तीर कुछ भी हो,निशाने तक पहुँचता है
परिन्दा कोई मौसम हो ठिकाने तक पहुँचता है

धुआँ बादल नहीं होता,कि बचपन दौड़ पड़ता है
ख़ुशी से कौन बच्चा कारख़ाने तक पहुँचता है

हमारी मुफ़लिसी पर आपको हँसना मुबारक हो
मगर यह तंज़ हर सैयद घराने तक पहुँचता है.

10-
मिट्टी में मिला दे के जुदा हो नहीं सकता
अब इससे ज़्यादा मैं तेरा हो नहीं सकता

दहलीज़ पे रख दी हैं किसी शख़्स ने आँख़ें
रोशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता

बस तू मेरी आवाज़ से आवाज़ मिलादे
फिर देख के इस शहर में क्या हो नहीं सकता

ऎ मौत मुझे तूने मुसीबत से निकाला
सय्याद समझता था रिहा हो नहीं सकता

इस ख़ाक बदन को कभी पहुँचा दे वहाँ भी
क्या इतना करम बादे सबा हो नहीं सकता

पेशानी को सजदे भी अता कर मेरे मौला
आँखों से तो ये क़र्ज़ अदा हो नहीं सकता

दरबार में जाना मरा दुश्वार बहुत है
जो शख़्स क़लन्दर हो गदा हो नहीं सकता



दहलीज़- चौखट,
 सय्याद- शिकारी
बादेसबा- सुबह की पूर्वा हवा,
सजदा-सिर झुका कर माथा टिकाना
क़लन्दर - मस्तमौला, अपनी मरज़ी का मालिक
गदा- दर-दर माँगने वाला

शनिवार, 13 जून 2015

विजेंद्र शर्मा के दोहे...

1-जब तक भीतर आँख के ,आंसू की है शान !
जैसे लुढ़के गाल पे ,मिट जाए पहचान !!

2-पलकों की दीवार में , किये ग़मों ने छेद !...
आंसू निकले आँख से , खोल गए सब भेद!!..

3-मिला उन्हें भी पद्म श्री , जिनके ऐसे काम
सुबह करें चमचागिरी ,मक्खनबाजी शाम

4-खाते बहियाँ खोलकर , करने लगी हिसाब !.
कैसी है तू ज़िन्दगी , तेरा नहीं  जवाब !!.

5-रोते ना तो और फिर ,क्या करते जज़्बात
उसने ही जब अनसुनी ,कर दी मेरी बात

6-इक सच बोला और फिर ,देखा ऐसा हाल
कुछ ने नज़रें फेर ली ,कुछ की आँखे लाल

7-सुन झूटी तारीफ़ हम ,चढ़े चने के झाड़
पर भीतर से खामियां ,हमको रही लताड़

8-कर झूठी तारीफ़ फिर ,लोग ले रहे स्वाद !
भोली भाली शायरा , समझ रही है दाद !!

फेसबुक की हक़ीक़त...

9-तब कासा था  हाथ में ,अब दौलत में हाथ !
तब मुझसे सब दूर थे , अब  मेरे सब साथ !!

10-कंगूरे छाये रहे , उनकी थी तादाद
ऐसे में बुनियाद की , आती किसको याद

11-चीख उठे जब ख़ामुशी ,हिलने लगे पहाड़
सुनी नहीं है आपने ,चुप की कभी दहाड़


12-दरिया ने इक रोज़ क्या , कर ली मीठी बात
क़तरा तो उस रोज़ से , भूल गया औक़ात


13रैला हो सैलाब का , या सूखे की मार
ज़मीं समझ ही कब सकी ,पानी का किरदार

14-चुभने को चुभते रहे , भले शूल ही शूल !
बना लिए इक बार जो ,तोड़े नहीं उसूल !!

15जीवन के आकाश में ,हम तो हुए पतंग
डोर किसी के हाथ में ,उड़े किसी के संग

16-दरिया तेरा दायरा ,बढ़ तो गया ज़रूर
मगर किनारे हो गए ,पहले से भी दूर

17-कभी फ़क़ीरों के यहाँ , जाता था दरबार ....
और कलंदर आज के , जाते  हैं  दरबार ....

18-खाते बहियाँ खोल कर ,करने लगी हिसाब !
कैसी है तू ज़िन्दगी , तेरा नहीं जवाब !!

19-लाख छुपाऊं मैं सखी , खुल जावे है राज़ !....
नैन करें हैं मुखबिरी , ये ना आवे बाज़  !!.....

20-उम्मीदों पर वो खरा ,उतरा होता काश !
ढोनी ना पड़ती हमे , उम्मीदों की लाश !!

21-जब  मन के आकाश  में , घुमड़े  अहसासात !
तब मन ने मन से कहा , लिख दे मन की  बात !!

22-सबको कहाँ नसीब है ,ये शुहरत की धूप
हल्का हो किरदार तो ,झुलस जाय है रूप

23-ऐसे दिन भी आ गए , किन करमों के  लेख !......
चूहा बोले शेर से , मुझे छेड़ के देख !!......

24-इसी ज़मी पर हैं लिखे , कुदरत ने आलेख !
हरा भरा हो जायगा ,इनको पढ़कर देख !!

पर्यावरण दिवस पे ..

25-खुद से भी करते नहीं ,अब हम कोई बात !....
तेरे जाते आ गया ,जीवन में निर्वात !!....

26-देना  है तो दे ख़ुदा , ऐसा हमे मिज़ाज !
खुद्दारी सर पर रहे , ठोकर में हो ताज !!

27-कैसा तेरा मैक़दा , इसका अजब निज़ाम !....
झूम रहे हैं रिन्द सब ,बिन सागर बिन जाम !!...

28-जब भी मैं तन्हा हुआ ,वो ही आया काम !
था रिश्तों की भीड़ में ,जो रिश्ता बेनाम !!

29-ऐसे दिन भी आ गए , किन करमों के  लेख !......
चूहा बोले शेर से , मुझे छेड़ के देख !!......

30-बिना तुम्हारे इस तरह ,गुज़र रहे लम्हात !...
सन्नाटे से गुफ़्तगू ,सारी सारी रात !!...

31-वो मेरे अहसास में ,ऐसे हुआ शरीक !...
बात मुझे जो चुभ गयी , उसे लगी वो ठीक !!.....

32-सीधा सा है रास्ता ,कहीं नहीं है मोड़ ! ....
जब उससे है इश्क़ तो ,दुनियादारी छोड़ !! ...

33-तह तक जाकर आ गए , तभी हुआ अहसास !
कभी समन्दर से नहीं , बुझी किसी की प्यास !!

34-खुशबू तेरे फेर में ,जाता रहा रुआब  !
चिन्दी चिन्दी हो गया ,अच्छा भला गुलाब !!

35-काँप रही है ये ज़मी ,और आसमाँ मौन !
पता नहीं पाताल से , इसे हिलावे  कौन !!

36-फ़लक नापने को गए ,बनकर के शाहीन !.....
आये जब वो लौट कर ,लगी न हाथ ज़मीन !!....

37-सर पर माँ का हाथ है ,क्या दूँ और सुबूत !
मुझको लिए बगैर ही ,लौट गए यमदूत !!
Mothers day

38-रत्तीभर बेटे बहू ,  रखते नहीं लगाव !....
पर अम्मा थकती नहीं , करते करते चाव !!...
Mothers day

39-रिश्तों का आँगन कभी , कर जाता हद पार !....
एहतियात की इस लिए ,लाज़िम है दीवार !!....

40-कौन वज़ह से आ गया , आदत से तू बाज़ ! ..
बहुत दिनों से यार तू  , हुआ नहीं नाराज़ !! ...

41-कोई अपने दे गया ,सपने हमे उधार !
आँखों ने फिर नींद का, कर्ज़ा दिया उतार !!

42-रोते ना तो और फिर ,क्या करते जज़्बात
तुमने ही जब अनसुनी ,कर दी मेरी बात

43-अब उससे रिश्ता नहीं , फिर भी आवे याद !.....
ज़ख्म भले ही भर गए , सूखी नहीं मवाद !!...

44-पहले तो कहता रहा , बड़ी बहन हैं आप !...
फिर भइया के आ गया , इक दिन मन में पाप !!...

45-ज्यूँ मुरझाई फस्ल में ,  जान डाल दे खाद !...
हरा – भरा  सा कर गयी ,मुझको तेरी याद !!....

46-तकिया है बस हाथ का ,बिस्तर है फूटपाथ
क्यों ना आये नींद जब ,मेहनत सोये साथ

47-ग़ज़लों के भी अक्स में , दोहों की तस्वीर ! ...
आँखें तो हैं  "मीर" की , "मीरा" के हैं नीर !!.......

48-कभी फ़क़ीरों के यहाँ , जाता था दरबार ....
खड़े कलंदर आज के , दरबारों के द्वार  ....

49-दिल न लगा जो शहर में , आया अपने गाँव !
बाट जोहती ही मिली , पगडंडी पर छाँव !!

50-तेरी यादों के सिवा ,ये सब भी है  पास !
राखदान सिगरट धुंआ ,बोतल और गिलास !!

51-दो मंज़र ....
किसना राम किसान की, फसल पडी बीमार !
किशन लाल जी  सेठ के  ,नोटों का अम्बार !!

52-टूकड़ों पर तुम हिन्द के ,पाक तुम्हारी जान !
पाक तुम्हारी जान तो ,जाओ पाकिस्तान !!

53-दुःख ने सुख से ये कहा ,  कैसी तेरी ज़ात ! ..
भूल जाय है वो खुदा , तू हो जिसके साथ !! ...

54-आंधी थी वो ज़ुल्म की , बुझते रहे चराग़ !
बैसाखी को याद है , जलियांवाला बाग़ !!


जलियावाला बाग़ के शहीदों को नमन ..

55-अब तो नागिन सा हुआ ,बीवी  का व्यवहार  !....
रिश्तों की नैया भला  ,कहाँ लगेगी  पार !!....

56-साहिल से नाराज़गी , लहरों से मतभेद !
दरिया करना पार है , भले नाव में छेद !!

57-कभी बरसते मेघ से ,दिल की बातें बोल !...
भीग ज़रा बरसात में ,छाते को मत खोल !!...

58-ऐसा ही है  दौर ये , ऐसे इसके तौर !
जुर्म किया है और ने  ,फसे बेचारा और !!

59-गड़ी हुई ईमान की , निकले कैसे कील !
तबादले होते रहे , हम न हुए तबदील !!

60-देने वाले कौन हैं , लेने वाले कौन !
इनआमों  की बाँट पे , लेकिन सब है मौन !!

61-मेरे भीतर क्या छिपा, इसे  कभी तो भांप !
तू चन्दन के पेड़ सी , मैं ज़हरीला सांप !!

62-एक मरज है फेसबुक ,पालो  मत ये रोग !
इश्तेहार से हो गए , इस पर आकर लोग !!

63-सूने सूने रास्ते ,पसरी पसरी रेत !
गीले गीले नैन हैं , सूखे सूखे खेत !!
         
राजस्थान दिवस मुबारक ....

64-तब तो हमको सौंप दी ,जब था तेज़ बहाव !..
पहुँच किनारे हो गयी ,किसी और की नाव !!..

65-पत्थर तक बुनियाद के , घर से दिए निकाल !...
उस घर का अल्ला मिंया ,क्या होगा अब हाल !..

आप पार्टी का हाल ....

66-रोना क्या है हार पर ,जश्न मनाओ यार !
कल से फिर पैनी करो , हथियारों की धार !!

67-आसमान में उड़ गयी , होते ही आज़ाद !...
फिर देखे जो बाज़ तो , पिंजरा आया याद !!..

68-भारत माँ को शूल सा , चुभता यही सवाल !...
क्यों पैदा होते नहीं , भगत सिंह से लाल !!....

नमन शहीदों को ...

69-भले  क़लम दे हाथ में , या दे दे तलवार !
मौला इनकी तू मगर , पैनी रखियो धार !!

70-पापा मेरी चाँद को ,छूने की है चाह !
दिन है खेलन के अभी , मत कर मेरो ब्याह !!

71-पार किया जो तैर कर , कौन बड़ी है बात !
पता चले है डूब कर , दरिया की औक़ात !!

72-दुनिया है रफ़्तार की , खरगोशों का दौर !
किस्सों तक ही ठीक है , कछुए वाले तौर !!

73-क़लम उठाने का कभी , किया नहीं है काम !...
 मगर क़लम के नाम पर,  मिले बहुत इनआम !! .....

74-कोई अपने दे गया , सपने हमे उधार !...
आँखों ने फिर नींद का , कर्ज़ा दिया उतार !!...

75-छुड़ा लिए हैं रंग सब , धोकर अपने  अंग !..
 दिल पर जो तू मल गया , वो ना उतरा रंग ! ..

76-हैरत में थे यार सब ,  दुश्मन भी था दंग !...
मैंने उसके गाल पर , लगा दिया जब रंग !!...

रंगों का त्यौहार होली आपको मुबारक हो .....

77-अपने अधरों से अगर , तुम जो कर दो लाल ! ...
कसम लगे इस जन्म में  ,जो हम धो लें गाल !! ...

78-रंग मिला ना वक़्त पर , ना ही मिला गुलाल !...
फिर अधरों से रंग दिए ,मैंने उसके गाल !!..

79-होली का तो  तब मज़ा ,ना हो रंग गुलाल !...
इधर हमारे होंठ हो, उधर तुम्हारे गाल !!...

80-इंतज़ार  के  रंग में ,   गयी   बावरी   डूब  !
होली पर इसबार भी , आया  ना  महबूब   !!

 81-आँखों को भी है गिला , करें शिकायत गाल !...
बैरी ख़ुद आया नहीं ,भिजवा दिया गुलाल !!...

82-इश्तेहार तक हम हुए , और हमीं दीवार ! ...
तब जाकर चलने लगा , अपना कारोबार !!..

83-मौक़ा था पर यार ने , डाला नहीं गुलाल !..
मुरझाये से ही रहे ,  मेरे  दोनों  गाल !!..

84-घटा बड़ी घनघोर थी, पिया नहीं थे साथ !
अंगड़ाई की ख़्वाहिशें , भटकी सारी रात !!

85-तन्हाई की बारिशें,भले ठोक ले ताल !..
पास हमारे आपकी , यादों की तिरपाल !!...

86-सुनता कौन ग़रीब की , थमी नहीं बरसात !
टप टप करती झोंपड़ी , रोयी सारी रात !!

87-क्या क्या छोड़ें ये बता , क्या क्या कर दें बंद !
क्या क्या तुझे पसंद है , क्या क्या नहीं पसंद !!

88-दुनिया की ये रीत है , या कोई संजोग !....
बैठे मेरी ताक़ में ,मेरे अपने लोग !!....


89-दुनिया के तो सामने , गिरी नहीं दस्तार !...
पर अपनी औलाद से , हार गये हम यार !!...

90-लोग दूध से कर रहे ,शंकर का अभिषेक !
मंदिर के बाहर खड़ा , भूखा बच्चा एक  !!

महाशिवरात्री की शुभ कामनाएं ....

91-प्रेम दिवस है बावरी , आजा कर लें प्रीत !....
जीवन का सुर प्रेम है , और प्रेम संगीत !....

Happy valentine ...

92-गला तमन्ना का भला ,कैसे देता घोंट !...
मैंने उसके होंट पर , रख डाले फिर होंट

Happy kiss day ...

93-सच हो जाए स्वप्न ये ,नित्य करूँ ये जाप !
    तेरे अधरों से करें , मेरे अधर मिलाप !!

Happy. ...Kiss....    day ....

94-उसकी बाँहो में अगर ,मिल जाए इक शाम !...
फिर चाहें लिख दीजिये , दोज़ख मेरे नाम !!.....

Happy hug Day

95-वादा दोनों ने किया ,जीना मरना साथ !
कहीं जिस्म नीला हुआ ,कहीं प पीले हाथ !! .''.

Happy promise Day

96-बड़े बुज़ुर्गों का नहीं ,जिस घर में सम्मान !
उस घर की फिर देख लो ,ऐसे जाती शान !!

97-मुझसे लेकर रौशनी , कमा रहा है नाम !...
सूरज पर ये  धर दिया , जुगनू ने इल्ज़ाम !!....

98-सुर का था वो बादशा , ग़ज़लों का था मीत !
जब तक जीवित सुर रहे,अमर रहे जगजीत !!

.ग़ज़ल सम्राट.जगजीत सिंह ...जन्म दिन मुबारक हो

99-महक रहा है आज तक , सूखा हुआ गुलाब ! ...
पर उसने इक बार भी , खोली नहीं किताब !!..

Happy rose🌹 day

100-तन्हाई की बारिशें , भले ठोक ले ताल !...
पास हमारे आपकी, यादों की तिरपाल !...

101-भारी पत्थर इश्क़ है , कहते थे ये "मीर" !
चलो उठा के देख लें ,आगे फिर तक़दीर !!

102-वादा दोनों ने किया , जीना मरना साथ!
कहीं जिस्म नीला हुआ , कहीं प पीले  हाथ !!

103-यूँ तो है बाज़ार में ,  हर शै की दूकान !
मगर किसी दूकान पर , मिले नहीं मुस्कान !....

104-आओ इसके कान में , फूंकें कोई मन्त्र !
इक मुद्दत से सो रहा ,अपना ये गणतंत्र !!

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं ....

105-राजनीति   के भेडिये ,  रोज़   करें   षड्यंत्र !
और खड़ा लाचार सा , देख रहा गणतंत्र !!

106-देखा जायेगा  मिंया , खुदा करेगा ख़ैर !....
पानी में रहना हमे  , और मगर से बैर !!..

107-सुना गया अपनी कथा ,पतझड़ वाला संत !....
चल दरवाज़ा खोल दे , बाहर खड़ा बसंत !! ..

108-जिसकी ख़ातिर ओढ़ ली , हमने यार ! ज़मीन !
उसको  आया  ही  नहीं , हम पर   कभी  यक़ीन !!

109-दिल में उसकी याद है, आँखों में है नीर !
यार ! हमारे पास है , बहुत बड़ी जागीर !!

110-कभी निकलती ही नहीं , इतना लेना सोच !....
जब रिश्तों के पाँव में , पड़ जाती है मोच !....

111-अब तो खलने लग गया ,पत्तों का भी शोर !
मन कहता है चल कहीं , सन्नाटे की ओर !!

112-धूल ज़रा सी क्या उड़ी, साँसे उखड़ी तेज़ !  ....
मिटटी ही करने लगी , मिटटी से परहेज़ !! ...

113-पति घर आवे देर से , बीवी को है रोष !
वास्तु विद कहने लगे, घर में वास्तु दोष !!  ...

114-दो में  दो को  जोड़ कर ,बता दिया था चार !....
बस इतने में खींच ली , यारों ने तलवार !!...

115-और बजा मत बीन अब ,  काँप  सपेरे काँप  !.....
तेरे  बच्चे डस गया ,  तेरा पाला साँप !! .....

पेशावर हमले पर .....एक श्रधांजलि

116-तार तार संवेदना , खड़ी  रही  लाचार  !
बीच सड़क पर भेड़िया, करता रहा  शिकार !!..

-5 दिसंबर की काली रात ..

117-कब देखे है इश्क़ ये , किसकी है दहलीज़ !.....
शहज़ादे के प्यार में , पागल हुई कनीज़ !....

118-ऐसे मिलता था गले , जैसे भरत मिलाप !....
  गले लगाकर ले गया ,वही गले का नाप  !! ...

119-आऊं तेरे ख़्वाब में , राह नहीं आसान !..
चंदा चौकीदार सा ,बैठा सीना तान !!..

120-दुआ करे“इमरोज़”भी , हों पूरे“अरमान”! ...
क़ामयाब हों “परिंदे” , तेरी नई उड़ान !! ....