बशीर बद्र मोहब्बत पर कुछ शे'र
ऐ शोख़ गिज़ालों, यहाँ दो फूल तो रख दो
इस क़ब्र में ख्व़ाबीदा मोहब्बत का ख़ुदा है
ये सोच लो अब आखरी साया है मोहब्बत
इस दर से उठो गे तो कोई दर न मिले गा .
वो मोहब्बत की तरह पिघलेगी,
मैं भी मर जाऊँगा हवस की तरह--
जिन पर लिखी हुई थी मोहब्बत की दास्ताँ
वो चाक चाक पुरज़े हवा में बिखर गये
सब ज़बानों को ये शिकायत है
शायरी की ज़बान मोहब्बत है
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
क्या सोचकर आए हो मोहब्बत की गली में
जब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते
ये सोच लो अब आखरी साया है मोहब्बत
इस दर से उठो गे तो कोई दर न मिले गा
मैं बिखर जाऊं गा आंसुओं की तरह
इस कदर प्यार से बद दुआ न दे ....
बरस भी जाओ कभी,बारिशों की रहमत हो
हज़ार दूर रहो,तुम मेरी मोहब्बत हो
रूठ जाना तो मोहब्बत की अलामत है मगर.
क्या खबर थी मुझसे वो इतना खफा हो जायेगा.
अब तुम्हें सच्ची मोहब्बत का यकीं आ जाये गा
उस बड़े शहरे वफ़ा में बेवफा कोई नहीं .....
मैं मोहब्बतों से महकता हुआ ख़त हूँ मुझ को
ज़िन्दगी अपनी किताबों में दबा कर ले जाए ....
कोई इश्क़ है कि अकेला रेत की शाल ओढ़ के चल दिए
कभी बाल बच्चों के साथ आ,ये पड़ाव लगता है रात में
उस की यादों से महकने लगता है सारा बदन
प्यार की खुशबू को सीने में छुपा सकते नहीं.
सात संदूकों में भरकर दफन कर दो नफ़रतें
आज इंसान को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत..
उसे किसी की मोहब्बत ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने बहुत सताया है
मुझे इश्तिहार सी लगती है ये मोहब्बत की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो,जो सुना नहीं वो कहा करो
मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँ गा
तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ हो गी
मौसम का इशारा खुश रहने दो बच्चों को
मासूम मोहब्बत है फूलों की खताओं में .
गम जरा ख़ूबसूरत सा दीजिये
हम मोहब्बत है,मोहब्बत दीजिये
अब नहा धो कर जरा घर जाइये
बाल बच्चों को मोहब्बत दीजिये ..
बरस भी जाओ कभी,बारिशों की रहमत हो
हज़ार दूर रहो,तुम मेरी मोहब्बत हो ..
पास रह कर भी दूर दूर रहे
हम नए दौर की मोहब्बत थे .
मैं वालदैन को यह बात कैसे समझाऊं
मोहब्बत में हवस-ओ-नसब नहीं होता
हम अभी तक हैं गिरफ़्तार-ए-मुहब्बत यारों,
ठोकरें खा के सुना था कि सम्भल जाते हैं।
मेरी पलकों पर ये आंसू प्यार की तौहीन हैं
उसकी आँखों से गिरे मोती के दाने हो गए..
होठों पे मोहब्बत के फसाने नही आते,
साहिल पे समुंद्र के खज़ाने नही आते
वो मोहब्बत की तरह पिघलेगी
मैं भी मर जाऊँगा हवस की तरह.....
ऐ शोख़ गिज़ालो, यहाँ दो फूल तो रख दो
इस क़ब्र में ख़्वाबीदा मोहब्बत का ख़ुदा है....
मैं हर हाल में मुस्कराता रहूँगा
तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ होगी..
धूप की शाख़ पे तनहा-तनहा
वह मुहब्बत का परिंदा होगा....
जिन पर लिखी हुई थी मोहब्बत की दास्ताँ
वो चाक चाक पुरज़े हवा में बिखर गये .
उसी कबीले का अब आखरी चराग़ हूँ मैं
कि जिस के दिल में मोहब्बत खुदा ने बोई थी,..
यह मोहब्बतो की कहानियाँ भी बड़ी अज़ीबो-ग़रीब है
तुझे मेरा प्यार नहीं मिला,मुझे उस का प्यार नहीं मिला...
मुहब्बत ग़म की बारिश हैं,
ज़मीं सर-सब्ज होती है
बहुत से फूल खिलते हैं,
जहां बादल बरसता है..
अगर इंसान से मिलना है तो लहज़े में सियासत रख
मोहब्बत से खुदा मिल जाये गा, इन्सां नहीं मिलते
मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे, मुक़द्दर मेंचलना था चलते रहे! मुहब्बत अदावतवफ़ा बेरुख़ी, किराये के घर थे बदलते रहे!--
मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू है
फूल से लोग इसे ख़ूब समझते होंगे
मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझ को ज़िन्दगी अपनी किताबों में दबा कर ले जाये
मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुख़ी
किराये के घर थे बदलते रहे
महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है
अजब मौसम है, मेरे हर कद़म पे फूल रखता है
मुहब्बत में मुहब्बत का फरिश्ता साथ चलता है
पास रहकर भी दूर-दूर रहे,
हम नये दौर की मोहब्बत थे
क्या सोचकर आए हो मोहब्बत की गली में
जब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते
हम अभी तक हैं गिरफ़्तार-ए-मुहब्बत यारो
ठोकरें खा के सुना था कि संभल जाते हैं
मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथरहती है
कोई इन्सान तन्हाई मेंभी कभी तन्हा नहीं रहता -
क्या सोचकर आए हो मुहब्बतकी गली में
जब नाज़ हसीनों के उठानेनहीं आते। -
मुझे ख़ुदा ने ग़ज़ल का दयार बख़्शा है
येसल्तनत मैं मोहब्बत के नाम करता हूँ।
महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से,
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है -
मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझको
ज़िंदगी अपनी किताबों में छुपाकर ले जाए
दिल मुहब्बत दीन-दुनिया शायरी
हर दरीचे से तुझे देखा करें
हम मुहब्बत के फूल हैं शायद
कोई काँटा भी आस पास रहे
मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता
मौसम का इशारा है खुश रहने दो बच्चों को
मासूम मोहब्बत है फूलों की ख़ताओं में
ऐ शोख़ गिज़ालों, यहाँ दो फूल तो रख दो
इस क़ब्र में ख्व़ाबीदा मोहब्बत का ख़ुदा है
ये सोच लो अब आखरी साया है मोहब्बत
इस दर से उठो गे तो कोई दर न मिले गा .
वो मोहब्बत की तरह पिघलेगी,
मैं भी मर जाऊँगा हवस की तरह--
जिन पर लिखी हुई थी मोहब्बत की दास्ताँ
वो चाक चाक पुरज़े हवा में बिखर गये
सब ज़बानों को ये शिकायत है
शायरी की ज़बान मोहब्बत है
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
क्या सोचकर आए हो मोहब्बत की गली में
जब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते
ये सोच लो अब आखरी साया है मोहब्बत
इस दर से उठो गे तो कोई दर न मिले गा
मैं बिखर जाऊं गा आंसुओं की तरह
इस कदर प्यार से बद दुआ न दे ....
बरस भी जाओ कभी,बारिशों की रहमत हो
हज़ार दूर रहो,तुम मेरी मोहब्बत हो
रूठ जाना तो मोहब्बत की अलामत है मगर.
क्या खबर थी मुझसे वो इतना खफा हो जायेगा.
अब तुम्हें सच्ची मोहब्बत का यकीं आ जाये गा
उस बड़े शहरे वफ़ा में बेवफा कोई नहीं .....
मैं मोहब्बतों से महकता हुआ ख़त हूँ मुझ को
ज़िन्दगी अपनी किताबों में दबा कर ले जाए ....
कोई इश्क़ है कि अकेला रेत की शाल ओढ़ के चल दिए
कभी बाल बच्चों के साथ आ,ये पड़ाव लगता है रात में
उस की यादों से महकने लगता है सारा बदन
प्यार की खुशबू को सीने में छुपा सकते नहीं.
सात संदूकों में भरकर दफन कर दो नफ़रतें
आज इंसान को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत..
उसे किसी की मोहब्बत ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने बहुत सताया है
मुझे इश्तिहार सी लगती है ये मोहब्बत की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो,जो सुना नहीं वो कहा करो
मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँ गा
तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ हो गी
मौसम का इशारा खुश रहने दो बच्चों को
मासूम मोहब्बत है फूलों की खताओं में .
गम जरा ख़ूबसूरत सा दीजिये
हम मोहब्बत है,मोहब्बत दीजिये
अब नहा धो कर जरा घर जाइये
बाल बच्चों को मोहब्बत दीजिये ..
बरस भी जाओ कभी,बारिशों की रहमत हो
हज़ार दूर रहो,तुम मेरी मोहब्बत हो ..
पास रह कर भी दूर दूर रहे
हम नए दौर की मोहब्बत थे .
मैं वालदैन को यह बात कैसे समझाऊं
मोहब्बत में हवस-ओ-नसब नहीं होता
हम अभी तक हैं गिरफ़्तार-ए-मुहब्बत यारों,
ठोकरें खा के सुना था कि सम्भल जाते हैं।
मेरी पलकों पर ये आंसू प्यार की तौहीन हैं
उसकी आँखों से गिरे मोती के दाने हो गए..
होठों पे मोहब्बत के फसाने नही आते,
साहिल पे समुंद्र के खज़ाने नही आते
वो मोहब्बत की तरह पिघलेगी
मैं भी मर जाऊँगा हवस की तरह.....
ऐ शोख़ गिज़ालो, यहाँ दो फूल तो रख दो
इस क़ब्र में ख़्वाबीदा मोहब्बत का ख़ुदा है....
मैं हर हाल में मुस्कराता रहूँगा
तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ होगी..
धूप की शाख़ पे तनहा-तनहा
वह मुहब्बत का परिंदा होगा....
जिन पर लिखी हुई थी मोहब्बत की दास्ताँ
वो चाक चाक पुरज़े हवा में बिखर गये .
उसी कबीले का अब आखरी चराग़ हूँ मैं
कि जिस के दिल में मोहब्बत खुदा ने बोई थी,..
यह मोहब्बतो की कहानियाँ भी बड़ी अज़ीबो-ग़रीब है
तुझे मेरा प्यार नहीं मिला,मुझे उस का प्यार नहीं मिला...
मुहब्बत ग़म की बारिश हैं,
ज़मीं सर-सब्ज होती है
बहुत से फूल खिलते हैं,
जहां बादल बरसता है..
अगर इंसान से मिलना है तो लहज़े में सियासत रख
मोहब्बत से खुदा मिल जाये गा, इन्सां नहीं मिलते
मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे, मुक़द्दर मेंचलना था चलते रहे! मुहब्बत अदावतवफ़ा बेरुख़ी, किराये के घर थे बदलते रहे!--
मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू है
फूल से लोग इसे ख़ूब समझते होंगे
मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझ को ज़िन्दगी अपनी किताबों में दबा कर ले जाये
मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुख़ी
किराये के घर थे बदलते रहे
महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है
अजब मौसम है, मेरे हर कद़म पे फूल रखता है
मुहब्बत में मुहब्बत का फरिश्ता साथ चलता है
पास रहकर भी दूर-दूर रहे,
हम नये दौर की मोहब्बत थे
क्या सोचकर आए हो मोहब्बत की गली में
जब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते
हम अभी तक हैं गिरफ़्तार-ए-मुहब्बत यारो
ठोकरें खा के सुना था कि संभल जाते हैं
मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथरहती है
कोई इन्सान तन्हाई मेंभी कभी तन्हा नहीं रहता -
क्या सोचकर आए हो मुहब्बतकी गली में
जब नाज़ हसीनों के उठानेनहीं आते। -
मुझे ख़ुदा ने ग़ज़ल का दयार बख़्शा है
येसल्तनत मैं मोहब्बत के नाम करता हूँ।
महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से,
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है -
मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझको
ज़िंदगी अपनी किताबों में छुपाकर ले जाए
दिल मुहब्बत दीन-दुनिया शायरी
हर दरीचे से तुझे देखा करें
हम मुहब्बत के फूल हैं शायद
कोई काँटा भी आस पास रहे
मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता
मौसम का इशारा है खुश रहने दो बच्चों को
मासूम मोहब्बत है फूलों की ख़ताओं में
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