शनिवार, 31 जनवरी 2015

बशीर साहब की बेहतरीन ग़ज़लें....

1- 
हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी
हिरन की पीठ पर बैठे परिन्दे की शरारत सी

वो जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को
लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हिक़ारत सी

उदासी पतझड़ों की शाम ओढ़े रास्ता तकती
पहाड़ी पर हज़ारों साल की कोई इमारत सी

सजाये बाज़ुओं पर बाज़ वो मैदाँ में तन्हा था
चमकती थी ये बस्ती धूप में ताराज ओ ग़ारत सी

मेरी आँखों, मेरे होंटों से कैसी तमाज़त है
कबूतर के परों की रेशमी उजली हरारत सी

खिला दे फूल मेरे बाग़ में पैग़म्बरों जैसा
रक़म हो जिस की पेशानी पे इक आयत बशारत सी

2-
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ । 
वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, न कहा हुआ न सुना हुआ । 

 जिसे ले गई अभी हवा, वो वरक़ था दिल की किताब का, 
कहीँ आँसुओं से मिटा हुआ, कहीं, आँसुओं से लिखा हुआ । 

 कई मील रेत को काटकर, कोई मौज फूल खिला गई, 
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है, नदी के पास खड़ा हुआ । 

 मुझे हादिसों ने सजा-सजा के बहुत हसीन बना दिया, 
मिरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेंहदियों से रचा हुआ । 
वही शहर है वही रास्ते, वही घर है और वही लान भी, 
मगर इस दरीचे से पूछना, वो दरख़्त अनार का क्या हुआ । 

 वही ख़त के जिसपे जगह-जगह, दो महकते होटों के चाँद थे, 
किसी भूले बिसरे से ताक़ पर तहे-गर्द होगा दबा हुआ । 

 3- 
कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई 
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई 

मेरी दास्ताँ का उरूज था तेरी नर्म पलकों की छाँव में 
मेरे साथ था तुझे जागना तेरी आँख कैसे झपक गई 

कभी हम मिले तो भी क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले 
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई 

तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी क़ामयाब न हो सकीं 
तेरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई 

4-
चाय की प्याली में नीली टेबलेट घोली 
सहमे सहमे हाथों ने इक किताब फिर खोली 

दाएरे  अंधेरों  के  रोशनी  के  पोरों ने 
कोट के बटन खोले टाई की गिरह खोली 

शीशे की सुलाई में काले भूत का चढ़ना 
बाम काठ का घोड़ा नीम काँच की गोली

बर्फ़ में दवा मक्खन मौत रेल और रिक्शा
ज़िन्दगी खुशी रिक्शा रेल मोटर डोली..

इक किताब चाँद और पेड़ सब के काले कालर पर
ज़ेहन  टेप की गर्दिश मुँह  में  तोतो की बोली

वो नही मिली हम को हुक बटन सरकती जीन 
जिप के दाँत खुलते ही आँख में गिरी चोली

5- 
याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम..
कुछँ दिनों तक रहे हैं हम

आज तो अपनी ख़ामोशी में भी
तेरी आवाज़ पा रहे हम...

बात क्या है, कि फिर ज़माने को 
याद रह-रह के आ रहे है हम..

कोई शोला है ,कोई जलती आग
जल रहे है, जला रहे है हम

टेढ़ी तहज़ीब, टेढ़ी फ्रिक-ओ-नजर..
टेढ़ी ग़ज़ल, सुना रहे हैं हम

6-
दुल्हन बनी हैं, रात बड़े एहतमाम से ...
आंसू सजा रही हैं सितारों के नाम से ...

सब लोग अपने अपने घरो को चले गए ...
नींद आ गई हैं,आज चरागों को शाम से ...

उनसे जरूर मिलना सालिके के लोग हैं ....
सर भी कलम करेंगे बड़े एहतराम से ....

कितना बदल गया हूँ, मैं दुनिया के बास्ते ....
आवाज़ दे रहे  हैं  मुझे तेरे नाम से ........

7-
गज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखायेंगे,
रोयेंगे बहुत, लेकिन आँसू नहीं आयेंगे..

कह देना समन्दर से, हम ओस के मोती हैं,
दरिया की तरह तुझ से मिलने नहीं आयेंगे...

वो धूप के छप्पर हों या छाँव की दीवारें,
अब जो भी उठायेंगे, मिलजुल के उठायेंगे...

जब कोई साथ न दे, आवाज़ हमें देना,
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठायेंगे...

8-

बशीर बद्र साहब की बेहतरीन ग़ज़ल 

बेवफा रास्ते बदलते है
हमसफ़र साथ चलते है

किसके आसू छिपे है फूलो में
चूमता हू तो होठ जलते है

उसकी आँखों को गौर से देखो
मंदिरों में चराग जलते है

दिल में रहकर नजर नहीं आते
ऐसे कांटे कहा निकलते है

एक दीवार वो भी शीशे की
दो बदन पास-पास जलते है

कांच के मोतियों के आसू के
सब खिलोने गजल में ढलते है
                        

9-
अब किसे चाहे किसे ढूंढा करे
वो भी आखिर मिल गया अब क्या करे

हलकी-हलकी बरिशे होती रहे
हम भी फूलो की तरह भीगा करे

आँख मुंद इस गुलाबी धुप में
देर तक बैठे सोचा करे

दिल, मुहब्बत, दीन, दुनिया, शायरी
हर दरीचे से तुझे देखा करे

घर नया, बर्तन नए, कपडे नए
इन पुराने कागजो का क्या करे
                                
10-
सारे राह कुछ भी कहा नहीं, कभी उसके घर में गया नहीं
मै जनम जनम से उसी का हू, उसे आज तक ये पता नहीं

उसे पाक नजरो से चूमना भी इबादतों में शुमार है
कोई फुल लाख करीब हो कभी मैंने उसको छुआ नहीं

ये खुदा कि देन अजीब है कि इसी का नाम नसीब है
जिसे तुने चाहा वो मिल गया, जिसे मैंने चाहा मिला नहीं

इसी शहर में कई साल से मेरे कुछ करीबी अजीज है
उन्हें मेरी कोई खबर नहीं मुझे उनका कोई पता नहीं
                                                
11-
शाम से रास्ता तकता होगा
चाँद खिड़की में अकेला होगा

धुप की शाख पे तन्हा-तन्हा
वो मोहब्बत का परिंदा होगा

नींद में डूबी महकती साँसे
ख्वाब में फुल सा चेहरा होगा

मुस्कुराता हुआ झिलमिल आसू
तेरी रहमत का फ़रिश्ता होगा
                                   
12-
आसुओ से धुली ख़ुशी की तरह
रिश्ते होते है शायरी की तरह

जब कभी बादलो में घिरता है
चाँद लगता है आदमी की तरह

सब नजर का फरेब है वरना
कोई होता नहीं किसी की तरह

खुबसूरत, उदास, खौफजदा
वो भी है बीसवी सदी की तरह

जानता हू की एक दिन मुझको
वक़्त बदलेगा डायरी की तरह
                            
13-
सुनो पानी में ये किसकी सदा है
कोई दरिया की तह में रो रहा है

सवेरे मेरी इन आँखों ने देखा
खुदा चारो तरफ बिखरा हुआ है

पक्के गेहू की खुशबु चीखती है
बदन अपना सुनहरा हो चला है

हकीकत सुर्ख मछली जानती है
समुन्दर कैसा बुढा देवता है

हमारी साख का नौ खेज पत्ता
हवा के होठ अक्सर चूमता है

मुझे उन नीली आँखों ने बताया
तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है

14-
दर्द की बस्तिया बसाके रखो
रहमतो को सजा-सजा के रखो

कागजो के घरो से दूर ज़रा
दिल की चिंगारिया दबा के रखो

आग के झिलमिलाते फूलो से
दिल का मौसम सजा-बना के रखो

आखिरी वक़्त मुस्कुराना है
यह हुनर है, बचा के रखो
                         - बशीर बद्र साहब

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