सोमवार, 25 अगस्त 2014



 वो जब याद आये...
भारतीय सिनेमा जगत में बी.आर.चोपडा को एक ऐसे फिल्मकार के रुप में याद किया जाता है जिन्होंने पारिवारिक, सामाजिक और साफ सुथरी फिल्मे बनाकर लगभग पांच दशक तक सिने प्रेमियों के दिल में अपनी खास पहचान बनाई। 22 अप्रैल 1914 को पंजाब के लुधियाना शहर में जन्में बी.आर. चोपडा बलदेव राज चोपडा बचपन के दिनों से ही फिल्म में काम कर शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचना चाहते थे।
बी.आर.चोपडा ने अपने कैरियर की शुरूआत बतौर फिल्म पत्रकार के रूप में की। फिल्मी पत्रिका 'सिने हेराल्ड' में फिल्मों की समीक्षा लिखा करते थे। वर्ष 1949 में फिल्म 'करवट'से उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा लेकिन दुर्भाग्य से यह फिल्म बॉक्स आॅफिस पर बुरी तरह फ्लाॅफ रही वर्ष 1951 में अशोक कुमार अभिनीत फिल्म 'अफसाना' को बी.आर.चोपडा ने निर्देशित किया।फिल्म ने बॉक्स आॅफिस पर हिट साबित हुई । फिल्म की सफलता के बाद बी.आर. चोपडा फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में  सफल हो गए । वर्ष 1955 मे बी.आर. चोपडा ने  .बी.आर.फिल्मस बैनर का निर्माण किया । 'एक ही रास्ता' ने बी.आर. चोपडा के लिए सफलता के सारे दरवाजे खोल दिए । इसमें विधवा विवाह की मार्मिक अपील थी । अशोक कुमार और मीना कुमारी ने अपने भावप्रवण अभिनय के माध्यम से दर्शकों का दिल जीत लिया । 1957 आई 'नया दौर' में मूल संस्करण मे दिलीप कुमार -मधुबाला की जोड़ी थी पर बाद में किसी कारण वंश मधुबाला की जगह वैजयंती माला को लिया गया । जब 'नया दौर' की कहानी का आइडिया फिल्मकार महबूब खान,एस.एस.वासन और एस.मुखर्जी तक पहुंचा, तो उन्होने बी.आर.चोपडा हंसी उड़ीई कि वे एक तांगे वाले पर फिल्म बनाकर पैसा बर्बाद कर रहे है, और जब नायक के रूप में दिलीप कुमार से संपर्क किया तो पहले कहानी सुनने तक से इन्कार कर दिया था, पर बाद में राजी हो गये । फिल्म मंुबई में 25 सप्ताह तक हाऊसफुल के साथ चली ।सिल्वर जुबली समारोह में महबूब खान मुख्य अतिथि के रूप में आए । 'नया दौर' का संगीत ओ. पी. नैयर ने अपनी फड़कती शैली में दिया 'ऊड़े जब जब जुल्फे तेरी', 'रेशमी सलवार कुर्ता जाली का' और समाजवादी गीत 'साथी हाथ बढ़ाना' । साहिर का तांगा-'मांग के साथ तुम्हारा मैने माग लिया संसार' गीत भी श्रोताओं को बहुत पंसद आया । फिल्म 'नया दौर' में मानवतावाद की आधुनीक और सामंतवाद पर जीत के साथ इंसान और मशीन के रिश्तों को भी गहराई के साथ रेखांकित किया गया है। फिल्म 'साधना' [1958] में स्त्री के वेश्य होनी की व्यथा-कथा और समाज के लोगों द्वारा इस पेशे में धकेल दिए जाने की दास्तान है । फिल्म 'धुल का फूल' [1959]  में शादी के बिना जन्मे बच्चे की कानूनी मान्यता का सबाल है। फिल्म 'धर्मपुत्र' [1960] हिंन्दू- मुस्लीम सांप्रदायिक सदभाव की अनूठी मिसाल है ।  बी.आर.चोपडा प्रयोगवादी फिल्मकार थे । पचास और साठ के दशक में जब तमाम हिन्दी फिल्मे आठ-दस नाच-गानो के साथ आती थी, तब  बी.आर.चोपडा ने नाच- गाने रहित फिल्म 'कानून' [1960] प्रदर्शित कर जोखिम ऊठा़या इसके बावूजद दर्शक यह देखने आए कि गीत रहित फिल्म आखिर  कैसी होगी । उन्होंने फिल्म के कोर्ट रूप ड्रामा को खूब आनंद लिया ।
'गुमराह'[1963] में भी हाई वोल्टेज ड्रामा था । फिल्म की नायका माला सिन्हा अपनी म्रत बहन के पति अशोक कुमार से जबरन ब्याह दी जाती है। शादी के बावजूद वह अपने प्रेमी सुनील दत से से लगातार मिलती रहती है। शशिकला खलनायिका के रूप में ब्लैकमेल करती है। अपनी मर्जी से या बेमर्जी से शादी की व्यवस्था पर यह फिल्म गहराई से पड़ताल करती है । साठ के दशक में पतिव्रता और पति को परमेश्वर मानने वाली स्त्री के लिए यह चौंकान वाली फिल्म थी । 1965 में देश की पहली मल्टीस्टारर फिल्म 'व़क्त' लेकर मैदान में आए इसमें उस दौर के महंगे सितारे बलराज साहनी, राजकुमार, सुनील दत, साधना, शर्मिला टैगोर, शशि कपूर और अचला सचदेव थे । पहली बार उच्च वर्ग और आपसी कलह को दिखाया गया था। 'वक़्त' फिल्म में वे सारे दर्शया थे जो आगे चलकर मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा जैसे निर्देशकों के लिए फार्मूला बन गए । एक भूकंप में सुखी और धनी परिवार के तीन बेटे बिछुड़ जाते हैं । एक बेटा अनाथलय में है। दो बेटे एक ही लड़की के प्यार में एक दुसरे के अनजाने में दुश्मन बन जाते है। सुरज बड़जात्या, करण जौहर और आदित्य चौपड़ा ने अपनी फिल्मों में भव्य बंगले विशाल ड्राइंग रूम, तड़क भड़क का विलासी जीवन जो नब्बे के दशक में दिखाया, उस  बी.आर.चोपड़ा 'व़क्त' में हर तरीके से दिखा चुके थे। फिल्म के तीन गाने ' वक्त से दिन और रात'[रफी] 'ऐ मेरी जोहरा जबीं ' [मन्ना डे] 'आगे भी जाने ना तू' [आशा] बहुत लोकप्रिय हुए थे ।
'हमराज'[1967] में विधवा नायिका का प्रेमी इस बात की तलाश करता है पति जीवित है। इसकी अनोखी कथावस्तु दर्शकों काफी अच्छी लगी । 'आदमी और इन्सान'[1969] में श्रम समस्या और भ्रष्टाचार का चित्रण  बी.आर.चोपडा ने अपनी शैली में प्रस्तुत किया था। फिल्म 'दास्तान' 'कर्म' और ' द बर्निग ट्रेन' बी.आर.की फ्लाॅप फिल्में थी । इसके बाद 'पति पत्नि और वो' [1978] नामक काॅमेडी फिल्म बनाई । नायक संजीव कुमार अपनी सेक्रेट्री रंजीता कौर से प्यार की पींगे भरता है। पत्नी विद्दा सिन्हा अपने कोशिशों से पति को सही राह पर लाती है । लेकिन फिल्म के अंत में बिंदास परवीन बाॅबी नई सेक्रेट्री के रूप में ज्वाॅइन होकर फिर चक्कर चलाती है। इस फिल्मों से पहले बहुत कम हिंदी फिल्मों में इस तरह के कथानक आए थे ।
फिल्मों मे पहली पारी करने के बाद बी.आर.चोपडा ने छोटे परदे पर 'महाभारत' की भव्य रचना कर दूरदर्शन के लिए इतिहास बनाया। 94 एपीसोड का यह भव्य धारावाहिक 1988 से 90 की अवधि में दूरदर्शन पर जब दिखाया जाता, पुरे देश में सन्नाटा पसर जाता था । इसकी टीआरपी हमेशा सबसे ज्यादा रही और गिनीज बुक में भी दर्ज हुआ । दूरदर्शन को प्रति एपीसोड एक करोड़ तक के विज्ञापन मिलने लगे थे।
बी.आर.चोपडा को मिले सम्मान पर यदि नजर डाले तो वर्ष 1998 में हिन्दी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किए गए। इसके अलावा वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म 'कानून'के लिए वह सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। बहुमुखी प्रतिभा के धनी बी.आर.चोपडा ने फिल्म निर्माण के अलावा'बागवान'और 'बाबुल' की कहानी भी लिखी। जिन्हे उनके बेटे रवि चोपड़ा ने 2004 और 2006 में सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया ।

                                 युधिष्टर पारीक
                                      नोहर

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