मंगलवार, 16 दिसंबर 2014


मुहासरा / अहमद फ़राज़

मेरे ग़नीम ने मुझको पयाम भेजा है
कि हल्क़ाज़न हैं मेरे गिर्द लश्करी उसके
फ़सीले-शहर के हर बुर्ज, हर मीनार पर
कमां-बदस्त सितादा  है अस्ककी उसके

वह बर्क़ लहर बुझा दी गई जिसकी तपिश
वजूदे-ख़ाक में आतिशफ़िश़ां जगाती है
बिछा दिया गया बारूद उसके पानी में
वो जूएआब जो मेरी गली को आती है

सो शर्त यह है जो जां की अमान चाहते हो
तो अपने लौहो क़लम क़त्लगाह में रख दो
वगर्ना अबके निशान कमानदारों का
बस एक तुम हो,सो ग़ैरत को राह में रख दो

यह ़शर्तनामा जो देखा तो ऐलची से कहा
उसे ख़बर नहीं तारीख़ क्या सिखाती है
कि रात जब किसी ख़ुर्शीद को शहीद करे
तो सुबह इक नया सूरज तराश लाती है

सो यह जवाब है मेरा मेरे अदू के लिए
कि मुझको हिर्स-करम है न ख़ौफ़े-ख़म्याज़ा
उस है सतवते-शमशीर पर घमंड बहुत
उस शिकवाए  क़लम का नहीं है अंदाज़ा

मेरा क़लम नी किरदार उस मुहाफ़िज का
जो अपने शहर को महसूर करके नाज़ करे
मेरा क़लम नहीं कासा किसी सुबुक सर का
जो गासिबों को क़सीदों से सरफ़राज़ करे

मेरा क़लम नही उस नक़बज़न का दस्ते-हवस
जो अपने घर की ही छत में शगाफ़ डालता है
मेरा क़लम नही उस दुज़्द्े नीमशब  का रफ़ीक
जो बेचराग़ घरो़ं पर कमंद उछालता है ।

मेरा क़लम नही तस्बीह उस मुबल्लिग की
जो बंदगी का भी हरदम हिसाब रखता है
मेरा क़लम नहीं मीज़ान ऐसे आदिल की
जो अपने चेहरे पर दोहरा नक़ाब रखता है ।

शब्दार्थ:
मुहासरा -  घेराव
1- ग़नीम - शत्रु  2- हल्क़ाज़न - घेरे हुए
3 -गिर्द लश्करी-सैनिक  4- फ़सीले शहर - नगर की चारदीवारी 5 कमां-बदस्त-कमान हाथ में लिए हुए
 6 सितादा - तैयार 7अस्ककी - सैनिक  8-बर्क़ लहर- बिजली की लहर, 9- वजूदे-ख़ाक - मिट्टी का पुतला, 10- आतिशफ़िश़ां - ज्वालामुखी, 11 जूएआब - नहर 12- ऐलची - दूत 13- ख़ुर्शीद - सूर्य 14- अदू - शत्रु, 15- हिर्स-करम - पुरस्कार की लालसा, 16- ख़ौफ़े-ख़म्याज़ा - प्रतिफल का ड़र, 17- सतवते-शमशीर - तलवार की धाक, 18- मुहाफ़िज - रक्षक,19- महसूर - घेरकर, 20- कासा - कवच, 21- सर - अभिमानी, 22- गासिबों - अतिक्रमी,
23- सरफ़राज़ - मशहूर, 24- दस्ते-हवस - वासना का हाथ, 25- शगाफ़ - दरार, 26- नीमशब - आधी रात को चोरी करने वाला, 27- तस्बीह - माला, 28- मुबल्लिग - धर्म उपदेशक, 29- मीज़ान - तराज़ू, 30- आदिल - न्यायाधीश,

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