मंगलवार, 19 मई 2015

वफ़ा पर शायरी

आप छेड़े न वफ़ा का क़िस्सा
बात में बात निकल आती है

-दर्द असअदि

इश्क़ में सच्चा था वो मेरी तरह
बे'वफ़ा  तो  आज़माने  से  हुआ

-नोमान शौक़

उड़  गई  यूँ  वफ़ा ज़माने  से
कभी गोया किसी में थी ही नही
-दाग

उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वादा न वफ़ा करते वादा तो किया होता है

-चराग़ हसन हसरत

'एहसान' अपना कोई बुरे वक्त का नही
अहबाव बे'वफ़ा  है  ख़ुदा बे-नियाज़  है

-एहसान दानिश

'एहसान' ऐसा तल्ख़ जवाब -ए-वफ़ा मिला
हम इस के बाद फिर कोई अरमां न कर सके

-एहसान दानिश

कुछ इस अदा से मिरे साथ बेवफ़ाई  कर
कि  तेरे बाद मुझे  कोई  बेवफ़ा  न  लगे
-कैसर-उल जाफरी

कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज-ए-वफ़ा भी
खुलता नही हाल उन की तबीअत का ज़रा भी

-अकबर इलाहाबादी

काम आ सकी न अपनी वफाएँ तो क्या करे
उस बेवफ़ा को भूल न जाए तो क्या करे

-अख़्तर शिरानी

मोतियों को छुपा सीपियों की तरह
बेवफ़ाओं को अपनी वफ़ायें न दे

-बशीर साहब

कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद
याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद

-अमीर मिनाई

चलो यूँ ही सही हम बे'वफा है..
मगर ये तो बताए आप क्या है?

-शहवाज़ नदीम जियाई

हर तरफ़ से यह सदा आती है मुल्के-हुस्न में-
"यह वो दुनिया है जहाँ रस्मे-वफ़ादारी नहीं॥

-नज़र लखनवी

जाओ भी क्या करोगे मेहरो-ओ-वफ़ा
बरा-हा  आज़मा  के  देख  लिया

दाग देहलवी

तुम न तौबा करो जफ़ाओं से
हम वफ़ाओं से तौबा करते है

साहिर होशियारपुरी

वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूं..
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूं..

-हसरत मोहनी

हम ने बे-इंतिहा वफ़ा कर के
बे-वफाओं से इंतिकाम लिया

-आले रजा

हम कोई तर्क ए वफ़ा करते हैं !
ना सही इश्क़ , मुसीबत ही सही
--असदुल्लाह ख़ाँ 'ग़ालिब,--


रहेगा साथ, तेरा प्यार, ज़िन्दगी बन कर..
ये और बात, मेरी ज़िन्दगी अब वफ़ा ना करे..
-क़तील शिफ़ाई

हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके कुछ कह न सके कुछ सुन न सके
याँ हम ने ज़बाँ ही खोली थी वाँ आँख झुकी शरमा भी गए

-असरार-उल-हक़ मजाज़

बेवफा कहने की शिकायत है।
तो भी वादा वफ़ा नहीं होता।।
-मोमिन

इस दुनिया ने मेरी वफा का कितना ऊंचा मोल दिया,
पैरों में जंजीरें डाली हाथों में  कशकौल दिया
-राहत इंदौरी

मुझ को न दिल पसंद न वो बे-वफा पसंद
दोनों है ख़ुद-ग़रज मुझे दोनों हैं ना-पसंद
-'बेख़ुद' देहलवी

बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा      
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता

 -मीर तक़ी 'मीर'

मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुत्फ़-ओ-इनायत एक से वाक़िफ़ इन में नहीं
और तो सब कुछ तन्ज़-ओ-कनाया रम्ज़-ओ-इशारा जाने है

-मीर तकी 'मीर'

रोने से और लुत्फ़ वफ़ाओं का बढ़ गया
सब ज़ाइक़ा फलों में नए पानियों का है

-शाहिद मीर

उड़  गई  यूँ  वफ़ा ज़माने  से
कभी गोया किसी में थी ही नही

-दाग

कहते न थे हम 'दर्द' मियाँ छोड़ो ये बातें
पाई न सज़ा और वफ़ा कीजिए उस से

-मीर दर्द

की मोहम्मद से वफ़ा तूने  तो हम तेरे हैं
ये जहाँ चीज़ हे क्या लोहो क़लम तेरे हैं

-अल्लामा इक़बाल

न मुदारात हमारी न अदू से नफ़रत
न वफ़ा ही तुम्हें आई न जफ़ा ही आई

-बेखुद बदायुनी

बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता
ये उठते बैठते ज़िक्र-ए-वफ़ा अच्छा नहीं लगता

-आशुफ़्ता चंगेज़ी

ज़िद की है और बात मगर ख़ू बुरी नहीं
भूले से उस ने सैकड़ों वादे वफ़ा किए

-मिर्ज़ा ग़ालिब

सितम को हम करम समझे जफ़ा को हम वफ़ा समझे
और इस पर भी न वो समझे तो उस बुत से ख़ुदा समझे

-शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

वफ़ा करेंगे ,निबाहेंगे, बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था

-दाग़ देहलवी

साबित तू रह जफ़ा पे मैं क़ाएम वफ़ा पे हूँ
मैं अपनी बान छोड़ूँ न तू अपनी आन छोड़

-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैने जिनके लिये राहों में बिछाया था लहू,
हमसे कहते हैं वही अहद -ए -वफा याद नहीं ।

-सागर सिद्दीकी

यूँ वफ़ा उठ गई ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नहीं

-मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

रहे-वफ़ा में मिरे ऩक्शे-पा सलामत है,
मैं माजियों के सफ़र का क़यास लगता हूं।

-सईद कैस

हैं यादगार-ए-आलम-ए-फ़ानी ये दिनों चीज़
उस की जफ़ा और अपनी वफ़ा लिख रखेंगे हम

-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

यादों के वफ़ाओं के अक़ीदों के ग़मों के
काम आये जो दुनिया में तो इस नाम ही आये

-हफ़ीज़ होशियारपुरी

अब जिन्दगी वफा न करे तो मिरा नसीब
तुमने तो मेरे जीने का सामान कर दिया

-नज़ीर बनारसी

नौ-गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत हूँ वफ़ा मुझ में कहाँ
कम से कम दिल अभी सौ बार तो आने दीजे

-बेख़ुद देहलवी

मैं बस ये कह रहा हूँ रस्म-ए-वफ़ा जहाँ में
बिल्कुल नहीं मिटी है कामयाब हो गई है

-उबैद सिद्दीक़ी

वहाँ ख़ाक अहद-ए-वफ़ा निभे वहाँ ख़ाक दिल का कँवल खिले
जहाँ ज़िंदगी की ज़रूरतों का भी हसरतों में शुमार है

-आरिफ़ जलाली

दुनिया ने किस का राह-ए-वफ़ा में दिया है साथ
तुम भी चले-चलो यूँही जब तक चली चले

-शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

जीते जी क़द्र बशर की नहीं होती प्यारे
याद आवेगी तुझे मेरी वफ़ा मेरे बाद

-मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस

कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज़-ए-वफ़ा भी
खुलता नहीं हाल उन की तबीअत का ज़रा भी

-अकबर इलाहाबादी

तुझसे उम्मीदे-वफ़ा बेकार है।
कैसे कोई मौसम बदलना छोड़ दे।

-वसीम बरेलवी

साबित तू रह जफ़ा पे मैं क़ाएम वफ़ा पे हूँ
मैं अपनी बान छोड़ूँ न तू अपनी आन छोड़

-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

नशात-ए-हुस्न हो जोश-ए-वफ़ा हो या ग़म-ए-इश्क़
हमारे दिल में जो आए वो आरज़ू हो जाए

-सीमाब अकबराबादी

उम्मीद तो बँध जाती, तस्कीन तो हो जाती,
वादा  न वफा करते, वादा तो किया होता।-

-इस्माइल मेरठी

वहाँ सौंपी गयी है खिदमते-अर्जे-वफा मुझको,
जहाँ अहले-वफा की बात ही मानी नहीं जाती।

-'निहाल' सेहरारवी

वफा कैसी, कहाँ का इश्क जब सर फोड़ना ठहरा,
तो फिर ऐ संगे-दिल तेरा ही संगे-आस्तां क्यों हो।

-मिर्जा गालिब--

वफा के नाम पर तुम क्यों संभल के बैठ गये,
तुम्हारी बात नहीं, बात है जमाने की।

-'मजरूह' सुल्तानपुरी


यह मेरी किस्मत कि नजरों में तुम्हारी हेच हैं,
वर्ना यह जिन्से-वफा इतनी तो कमकीमत न थी।

-आनन्द नारायण 'मुल्ला'

बू-ए-वफा न फूटे कहीं उनको यह खौफ है,
फूलों से ढक रहे हैं, हमारे मजार को।

-'असर' लखनवी

तमाम उम्र हम वफा के गुनहगार रहे,
यह और बात है कि हम आदमी तो अच्छे थे।

-नदीम कासिमी

जिक्र जब भी छिड़ा है वफा का कहीं,
जाने क्यों कुछ दोस्त मुझको याद आये।
-इकबाल सफीपुरी

मुहब्बत, दोस्ती, चाहत, वफ़ा, दिल और कविता से
मेरे इस दौर को परहेज़ है, बीमार जो ठहरा--

-सुरेन्द्र सिंघल

बहती नदी में कच्चे घड़े हैं रिश्ते, नाते, हुस्न, वफ़ा
दूर तलक ये बहते रहेंगे इसके भरोसे मत रहना

-हस्तीमल हस्ती

उसे हालात ने रोका मुझे मेरे मसायल ने
वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ दोनों तरफ़ से हैं

- मुनव्वर राना

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी
तेरी ये सदा दिली मुझें कहीं मार न डाले।

-क़तील

नहीं ज़िन्दगी को वफ़ा करना अख्तर।
मोहब्बत से दुनिया को मामूर करदूं।

-अख्तर शीरानी


दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद

-जिगर मुरादाबादी

रंज तो ये है कि वो अहद-ए-वफ़ा टूट गया
बेवफ़ा कोई भी हो, तुम न सही, हम ही सह

 -राही मासूम रज़ा

ये वफ़ा की सख़्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक
न लो इंतिक़ाम मुझ से मिरे साथ साथ चल के

-ख़ुमार बाराबंकवी


बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता

-मीर तक़ी 'मीर'

दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं

-हफ़ीज़ बनारसी



पेशकश -युध्द राज पारीक

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