वफ़ा पर शायरी
आप छेड़े न वफ़ा का क़िस्सा
बात में बात निकल आती है
-दर्द असअदि
इश्क़ में सच्चा था वो मेरी तरह
बे'वफ़ा तो आज़माने से हुआ
-नोमान शौक़
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नही
-दाग
उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वादा न वफ़ा करते वादा तो किया होता है
-चराग़ हसन हसरत
'एहसान' अपना कोई बुरे वक्त का नही
अहबाव बे'वफ़ा है ख़ुदा बे-नियाज़ है
-एहसान दानिश
'एहसान' ऐसा तल्ख़ जवाब -ए-वफ़ा मिला
हम इस के बाद फिर कोई अरमां न कर सके
-एहसान दानिश
कुछ इस अदा से मिरे साथ बेवफ़ाई कर
कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा न लगे
-कैसर-उल जाफरी
कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज-ए-वफ़ा भी
खुलता नही हाल उन की तबीअत का ज़रा भी
-अकबर इलाहाबादी
काम आ सकी न अपनी वफाएँ तो क्या करे
उस बेवफ़ा को भूल न जाए तो क्या करे
-अख़्तर शिरानी
मोतियों को छुपा सीपियों की तरह
बेवफ़ाओं को अपनी वफ़ायें न दे
-बशीर साहब
कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद
याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद
-अमीर मिनाई
चलो यूँ ही सही हम बे'वफा है..
मगर ये तो बताए आप क्या है?
-शहवाज़ नदीम जियाई
हर तरफ़ से यह सदा आती है मुल्के-हुस्न में-
"यह वो दुनिया है जहाँ रस्मे-वफ़ादारी नहीं॥
-नज़र लखनवी
जाओ भी क्या करोगे मेहरो-ओ-वफ़ा
बरा-हा आज़मा के देख लिया
दाग देहलवी
तुम न तौबा करो जफ़ाओं से
हम वफ़ाओं से तौबा करते है
साहिर होशियारपुरी
वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूं..
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूं..
-हसरत मोहनी
हम ने बे-इंतिहा वफ़ा कर के
बे-वफाओं से इंतिकाम लिया
-आले रजा
हम कोई तर्क ए वफ़ा करते हैं !
ना सही इश्क़ , मुसीबत ही सही
--असदुल्लाह ख़ाँ 'ग़ालिब,--
रहेगा साथ, तेरा प्यार, ज़िन्दगी बन कर..
ये और बात, मेरी ज़िन्दगी अब वफ़ा ना करे..
-क़तील शिफ़ाई
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके कुछ कह न सके कुछ सुन न सके
याँ हम ने ज़बाँ ही खोली थी वाँ आँख झुकी शरमा भी गए
-असरार-उल-हक़ मजाज़
बेवफा कहने की शिकायत है।
तो भी वादा वफ़ा नहीं होता।।
-मोमिन
इस दुनिया ने मेरी वफा का कितना ऊंचा मोल दिया,
पैरों में जंजीरें डाली हाथों में कशकौल दिया
-राहत इंदौरी
मुझ को न दिल पसंद न वो बे-वफा पसंद
दोनों है ख़ुद-ग़रज मुझे दोनों हैं ना-पसंद
-'बेख़ुद' देहलवी
बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता
-मीर तक़ी 'मीर'
मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुत्फ़-ओ-इनायत एक से वाक़िफ़ इन में नहीं
और तो सब कुछ तन्ज़-ओ-कनाया रम्ज़-ओ-इशारा जाने है
-मीर तकी 'मीर'
रोने से और लुत्फ़ वफ़ाओं का बढ़ गया
सब ज़ाइक़ा फलों में नए पानियों का है
-शाहिद मीर
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नही
-दाग
कहते न थे हम 'दर्द' मियाँ छोड़ो ये बातें
पाई न सज़ा और वफ़ा कीजिए उस से
-मीर दर्द
की मोहम्मद से वफ़ा तूने तो हम तेरे हैं
ये जहाँ चीज़ हे क्या लोहो क़लम तेरे हैं
-अल्लामा इक़बाल
न मुदारात हमारी न अदू से नफ़रत
न वफ़ा ही तुम्हें आई न जफ़ा ही आई
-बेखुद बदायुनी
बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता
ये उठते बैठते ज़िक्र-ए-वफ़ा अच्छा नहीं लगता
-आशुफ़्ता चंगेज़ी
ज़िद की है और बात मगर ख़ू बुरी नहीं
भूले से उस ने सैकड़ों वादे वफ़ा किए
-मिर्ज़ा ग़ालिब
सितम को हम करम समझे जफ़ा को हम वफ़ा समझे
और इस पर भी न वो समझे तो उस बुत से ख़ुदा समझे
-शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
वफ़ा करेंगे ,निबाहेंगे, बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
-दाग़ देहलवी
साबित तू रह जफ़ा पे मैं क़ाएम वफ़ा पे हूँ
मैं अपनी बान छोड़ूँ न तू अपनी आन छोड़
-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मैने जिनके लिये राहों में बिछाया था लहू,
हमसे कहते हैं वही अहद -ए -वफा याद नहीं ।
-सागर सिद्दीकी
यूँ वफ़ा उठ गई ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नहीं
-मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
रहे-वफ़ा में मिरे ऩक्शे-पा सलामत है,
मैं माजियों के सफ़र का क़यास लगता हूं।
-सईद कैस
हैं यादगार-ए-आलम-ए-फ़ानी ये दिनों चीज़
उस की जफ़ा और अपनी वफ़ा लिख रखेंगे हम
-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
यादों के वफ़ाओं के अक़ीदों के ग़मों के
काम आये जो दुनिया में तो इस नाम ही आये
-हफ़ीज़ होशियारपुरी
अब जिन्दगी वफा न करे तो मिरा नसीब
तुमने तो मेरे जीने का सामान कर दिया
-नज़ीर बनारसी
नौ-गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत हूँ वफ़ा मुझ में कहाँ
कम से कम दिल अभी सौ बार तो आने दीजे
-बेख़ुद देहलवी
मैं बस ये कह रहा हूँ रस्म-ए-वफ़ा जहाँ में
बिल्कुल नहीं मिटी है कामयाब हो गई है
-उबैद सिद्दीक़ी
वहाँ ख़ाक अहद-ए-वफ़ा निभे वहाँ ख़ाक दिल का कँवल खिले
जहाँ ज़िंदगी की ज़रूरतों का भी हसरतों में शुमार है
-आरिफ़ जलाली
दुनिया ने किस का राह-ए-वफ़ा में दिया है साथ
तुम भी चले-चलो यूँही जब तक चली चले
-शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
जीते जी क़द्र बशर की नहीं होती प्यारे
याद आवेगी तुझे मेरी वफ़ा मेरे बाद
-मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज़-ए-वफ़ा भी
खुलता नहीं हाल उन की तबीअत का ज़रा भी
-अकबर इलाहाबादी
तुझसे उम्मीदे-वफ़ा बेकार है।
कैसे कोई मौसम बदलना छोड़ दे।
-वसीम बरेलवी
साबित तू रह जफ़ा पे मैं क़ाएम वफ़ा पे हूँ
मैं अपनी बान छोड़ूँ न तू अपनी आन छोड़
-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नशात-ए-हुस्न हो जोश-ए-वफ़ा हो या ग़म-ए-इश्क़
हमारे दिल में जो आए वो आरज़ू हो जाए
-सीमाब अकबराबादी
उम्मीद तो बँध जाती, तस्कीन तो हो जाती,
वादा न वफा करते, वादा तो किया होता।-
-इस्माइल मेरठी
वहाँ सौंपी गयी है खिदमते-अर्जे-वफा मुझको,
जहाँ अहले-वफा की बात ही मानी नहीं जाती।
-'निहाल' सेहरारवी
वफा कैसी, कहाँ का इश्क जब सर फोड़ना ठहरा,
तो फिर ऐ संगे-दिल तेरा ही संगे-आस्तां क्यों हो।
-मिर्जा गालिब--
वफा के नाम पर तुम क्यों संभल के बैठ गये,
तुम्हारी बात नहीं, बात है जमाने की।
-'मजरूह' सुल्तानपुरी
यह मेरी किस्मत कि नजरों में तुम्हारी हेच हैं,
वर्ना यह जिन्से-वफा इतनी तो कमकीमत न थी।
-आनन्द नारायण 'मुल्ला'
बू-ए-वफा न फूटे कहीं उनको यह खौफ है,
फूलों से ढक रहे हैं, हमारे मजार को।
-'असर' लखनवी
तमाम उम्र हम वफा के गुनहगार रहे,
यह और बात है कि हम आदमी तो अच्छे थे।
-नदीम कासिमी
जिक्र जब भी छिड़ा है वफा का कहीं,
जाने क्यों कुछ दोस्त मुझको याद आये।
-इकबाल सफीपुरी
मुहब्बत, दोस्ती, चाहत, वफ़ा, दिल और कविता से
मेरे इस दौर को परहेज़ है, बीमार जो ठहरा--
-सुरेन्द्र सिंघल
बहती नदी में कच्चे घड़े हैं रिश्ते, नाते, हुस्न, वफ़ा
दूर तलक ये बहते रहेंगे इसके भरोसे मत रहना
-हस्तीमल हस्ती
उसे हालात ने रोका मुझे मेरे मसायल ने
वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
- मुनव्वर राना
मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी
तेरी ये सदा दिली मुझें कहीं मार न डाले।
-क़तील
नहीं ज़िन्दगी को वफ़ा करना अख्तर।
मोहब्बत से दुनिया को मामूर करदूं।
-अख्तर शीरानी
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद
-जिगर मुरादाबादी
रंज तो ये है कि वो अहद-ए-वफ़ा टूट गया
बेवफ़ा कोई भी हो, तुम न सही, हम ही सह
-राही मासूम रज़ा
ये वफ़ा की सख़्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक
न लो इंतिक़ाम मुझ से मिरे साथ साथ चल के
-ख़ुमार बाराबंकवी
बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता
-मीर तक़ी 'मीर'
दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
-हफ़ीज़ बनारसी
आप छेड़े न वफ़ा का क़िस्सा
बात में बात निकल आती है
-दर्द असअदि
इश्क़ में सच्चा था वो मेरी तरह
बे'वफ़ा तो आज़माने से हुआ
-नोमान शौक़
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नही
-दाग
उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वादा न वफ़ा करते वादा तो किया होता है
-चराग़ हसन हसरत
'एहसान' अपना कोई बुरे वक्त का नही
अहबाव बे'वफ़ा है ख़ुदा बे-नियाज़ है
-एहसान दानिश
'एहसान' ऐसा तल्ख़ जवाब -ए-वफ़ा मिला
हम इस के बाद फिर कोई अरमां न कर सके
-एहसान दानिश
कुछ इस अदा से मिरे साथ बेवफ़ाई कर
कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा न लगे
-कैसर-उल जाफरी
कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज-ए-वफ़ा भी
खुलता नही हाल उन की तबीअत का ज़रा भी
-अकबर इलाहाबादी
काम आ सकी न अपनी वफाएँ तो क्या करे
उस बेवफ़ा को भूल न जाए तो क्या करे
-अख़्तर शिरानी
मोतियों को छुपा सीपियों की तरह
बेवफ़ाओं को अपनी वफ़ायें न दे
-बशीर साहब
कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद
याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद
-अमीर मिनाई
चलो यूँ ही सही हम बे'वफा है..
मगर ये तो बताए आप क्या है?
-शहवाज़ नदीम जियाई
हर तरफ़ से यह सदा आती है मुल्के-हुस्न में-
"यह वो दुनिया है जहाँ रस्मे-वफ़ादारी नहीं॥
-नज़र लखनवी
जाओ भी क्या करोगे मेहरो-ओ-वफ़ा
बरा-हा आज़मा के देख लिया
दाग देहलवी
तुम न तौबा करो जफ़ाओं से
हम वफ़ाओं से तौबा करते है
साहिर होशियारपुरी
वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूं..
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूं..
-हसरत मोहनी
हम ने बे-इंतिहा वफ़ा कर के
बे-वफाओं से इंतिकाम लिया
-आले रजा
हम कोई तर्क ए वफ़ा करते हैं !
ना सही इश्क़ , मुसीबत ही सही
--असदुल्लाह ख़ाँ 'ग़ालिब,--
रहेगा साथ, तेरा प्यार, ज़िन्दगी बन कर..
ये और बात, मेरी ज़िन्दगी अब वफ़ा ना करे..
-क़तील शिफ़ाई
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके कुछ कह न सके कुछ सुन न सके
याँ हम ने ज़बाँ ही खोली थी वाँ आँख झुकी शरमा भी गए
-असरार-उल-हक़ मजाज़
बेवफा कहने की शिकायत है।
तो भी वादा वफ़ा नहीं होता।।
-मोमिन
इस दुनिया ने मेरी वफा का कितना ऊंचा मोल दिया,
पैरों में जंजीरें डाली हाथों में कशकौल दिया
-राहत इंदौरी
मुझ को न दिल पसंद न वो बे-वफा पसंद
दोनों है ख़ुद-ग़रज मुझे दोनों हैं ना-पसंद
-'बेख़ुद' देहलवी
बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता
-मीर तक़ी 'मीर'
मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुत्फ़-ओ-इनायत एक से वाक़िफ़ इन में नहीं
और तो सब कुछ तन्ज़-ओ-कनाया रम्ज़-ओ-इशारा जाने है
-मीर तकी 'मीर'
रोने से और लुत्फ़ वफ़ाओं का बढ़ गया
सब ज़ाइक़ा फलों में नए पानियों का है
-शाहिद मीर
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नही
-दाग
कहते न थे हम 'दर्द' मियाँ छोड़ो ये बातें
पाई न सज़ा और वफ़ा कीजिए उस से
-मीर दर्द
की मोहम्मद से वफ़ा तूने तो हम तेरे हैं
ये जहाँ चीज़ हे क्या लोहो क़लम तेरे हैं
-अल्लामा इक़बाल
न मुदारात हमारी न अदू से नफ़रत
न वफ़ा ही तुम्हें आई न जफ़ा ही आई
-बेखुद बदायुनी
बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता
ये उठते बैठते ज़िक्र-ए-वफ़ा अच्छा नहीं लगता
-आशुफ़्ता चंगेज़ी
ज़िद की है और बात मगर ख़ू बुरी नहीं
भूले से उस ने सैकड़ों वादे वफ़ा किए
-मिर्ज़ा ग़ालिब
सितम को हम करम समझे जफ़ा को हम वफ़ा समझे
और इस पर भी न वो समझे तो उस बुत से ख़ुदा समझे
-शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
वफ़ा करेंगे ,निबाहेंगे, बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
-दाग़ देहलवी
साबित तू रह जफ़ा पे मैं क़ाएम वफ़ा पे हूँ
मैं अपनी बान छोड़ूँ न तू अपनी आन छोड़
-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मैने जिनके लिये राहों में बिछाया था लहू,
हमसे कहते हैं वही अहद -ए -वफा याद नहीं ।
-सागर सिद्दीकी
यूँ वफ़ा उठ गई ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नहीं
-मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
रहे-वफ़ा में मिरे ऩक्शे-पा सलामत है,
मैं माजियों के सफ़र का क़यास लगता हूं।
-सईद कैस
हैं यादगार-ए-आलम-ए-फ़ानी ये दिनों चीज़
उस की जफ़ा और अपनी वफ़ा लिख रखेंगे हम
-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
यादों के वफ़ाओं के अक़ीदों के ग़मों के
काम आये जो दुनिया में तो इस नाम ही आये
-हफ़ीज़ होशियारपुरी
अब जिन्दगी वफा न करे तो मिरा नसीब
तुमने तो मेरे जीने का सामान कर दिया
-नज़ीर बनारसी
नौ-गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत हूँ वफ़ा मुझ में कहाँ
कम से कम दिल अभी सौ बार तो आने दीजे
-बेख़ुद देहलवी
मैं बस ये कह रहा हूँ रस्म-ए-वफ़ा जहाँ में
बिल्कुल नहीं मिटी है कामयाब हो गई है
-उबैद सिद्दीक़ी
वहाँ ख़ाक अहद-ए-वफ़ा निभे वहाँ ख़ाक दिल का कँवल खिले
जहाँ ज़िंदगी की ज़रूरतों का भी हसरतों में शुमार है
-आरिफ़ जलाली
दुनिया ने किस का राह-ए-वफ़ा में दिया है साथ
तुम भी चले-चलो यूँही जब तक चली चले
-शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
जीते जी क़द्र बशर की नहीं होती प्यारे
याद आवेगी तुझे मेरी वफ़ा मेरे बाद
-मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज़-ए-वफ़ा भी
खुलता नहीं हाल उन की तबीअत का ज़रा भी
-अकबर इलाहाबादी
तुझसे उम्मीदे-वफ़ा बेकार है।
कैसे कोई मौसम बदलना छोड़ दे।
-वसीम बरेलवी
साबित तू रह जफ़ा पे मैं क़ाएम वफ़ा पे हूँ
मैं अपनी बान छोड़ूँ न तू अपनी आन छोड़
-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नशात-ए-हुस्न हो जोश-ए-वफ़ा हो या ग़म-ए-इश्क़
हमारे दिल में जो आए वो आरज़ू हो जाए
-सीमाब अकबराबादी
उम्मीद तो बँध जाती, तस्कीन तो हो जाती,
वादा न वफा करते, वादा तो किया होता।-
-इस्माइल मेरठी
वहाँ सौंपी गयी है खिदमते-अर्जे-वफा मुझको,
जहाँ अहले-वफा की बात ही मानी नहीं जाती।
-'निहाल' सेहरारवी
वफा कैसी, कहाँ का इश्क जब सर फोड़ना ठहरा,
तो फिर ऐ संगे-दिल तेरा ही संगे-आस्तां क्यों हो।
-मिर्जा गालिब--
वफा के नाम पर तुम क्यों संभल के बैठ गये,
तुम्हारी बात नहीं, बात है जमाने की।
-'मजरूह' सुल्तानपुरी
यह मेरी किस्मत कि नजरों में तुम्हारी हेच हैं,
वर्ना यह जिन्से-वफा इतनी तो कमकीमत न थी।
-आनन्द नारायण 'मुल्ला'
बू-ए-वफा न फूटे कहीं उनको यह खौफ है,
फूलों से ढक रहे हैं, हमारे मजार को।
-'असर' लखनवी
तमाम उम्र हम वफा के गुनहगार रहे,
यह और बात है कि हम आदमी तो अच्छे थे।
-नदीम कासिमी
जिक्र जब भी छिड़ा है वफा का कहीं,
जाने क्यों कुछ दोस्त मुझको याद आये।
-इकबाल सफीपुरी
मुहब्बत, दोस्ती, चाहत, वफ़ा, दिल और कविता से
मेरे इस दौर को परहेज़ है, बीमार जो ठहरा--
-सुरेन्द्र सिंघल
बहती नदी में कच्चे घड़े हैं रिश्ते, नाते, हुस्न, वफ़ा
दूर तलक ये बहते रहेंगे इसके भरोसे मत रहना
-हस्तीमल हस्ती
उसे हालात ने रोका मुझे मेरे मसायल ने
वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
- मुनव्वर राना
मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी
तेरी ये सदा दिली मुझें कहीं मार न डाले।
-क़तील
नहीं ज़िन्दगी को वफ़ा करना अख्तर।
मोहब्बत से दुनिया को मामूर करदूं।
-अख्तर शीरानी
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद
-जिगर मुरादाबादी
रंज तो ये है कि वो अहद-ए-वफ़ा टूट गया
बेवफ़ा कोई भी हो, तुम न सही, हम ही सह
-राही मासूम रज़ा
ये वफ़ा की सख़्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक
न लो इंतिक़ाम मुझ से मिरे साथ साथ चल के
-ख़ुमार बाराबंकवी
बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता
-मीर तक़ी 'मीर'
दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
-हफ़ीज़ बनारसी
पेशकश -युध्द राज पारीक
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