सोमवार, 4 जनवरी 2016

बशीर बद्र


चल मुसाफिर बत्तिया जलने लगी
आसमानी घंटिया बजने लगी

दिन के सारे कपडे ढीले हो गए 
रात कि सब चोलिया कसने लगी

डूब जाएँगे, सभी दरिया, पहाड
चांदनी कि नदिया चढने लगी

जामुनो के बाग पर छाई घटा 
ऊदी-ऊदी लड़किया हसने लगी

रात कि तन्हाइयों कि सोचकर 
चाय कि दो प्यालिया हसने लगी

दौड़ते है फूल बस्ती को दबाए
पांवो-पांवो तितलिया चलने लगी
                                 - बशीर बद्र


 2-
मिरी ग़ज़ल की तरह उसकी भी हुकूमत है
तमाम मुल्क में वो सबसे खूबसूरत है

कभी-कभी कोई इंसान ऐसा लगता है
पुराने शहर में जैसे नयी ईमारत है

बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाम
मुझे पता चला वो कितनी खूबसूरत है

ये ज़ाईरान-ए-अलीगढ़ का खास तोहफ़ा है
मिरी ग़ज़ल का तबर्रुक दिलो की बरकत है- बशीर बद्र

मायने
ज़ाईरान-ए-अलीगढ़=अलीगढ़ के दर्शनार्थी, तबर्रुक=प्रसाद
3-

हवा में ढूंढ रही है  कोई सदा मुझको
पुकारता है पहाड़ों का सिलसिला मुझको

मैं आसमानों ज़मीन कि हदे मिला देता
कोई सितारा अगर झुक के चूमता मुझको

चिपक गए मेरे तलवों से फूल शीशे के
ज़माना खीच रहा था बरहना पा मुझको

वो शहसवार बड़ा रहम दिल था मेरे लिए
बढ़ा के नेज़ा ज़मीन से उठा लिया मुझको

मकान खेत सभी आग कि लपेट में थे
सुनहरी घास में उसने छुपा दिया मुझको

दबीज़ होने लगी सब्ज़ कई कि चादर
न चूम पायेगी अब सरफिरी हवा मुझको

पिला के रात का रस राक्षस बनाती थी
सवेरे लोगो से कहती थी देवता मुझको

तू एक हाथ में ले आग एक में पानी
तमान रात में जला भुजा मुझको

बस एक रात में सर सब्ज़ ये ज़मीन हुई
मिरे खुद ने कहा तक बिछा दिया मुझको

बशीर बद्र

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