तुम्हारे प्यार मे हम-बेक़रार हो के चले
शिकार करने को आये शिकार हो के चले
तुम्हारे प्यार मे ....
तुम्हें क़रीब से देखा तो दिल को हार दिया
तुम्हारी शौख अदाओं ने हमें तो मार दिया
हर-एक बात पे हम तो निसार हो के चले
शिकार करने को ...
तुम्हारी आँख मोहब्बत की बात कहती है
तुम्हें जरूर किसी की तलाश रहती है
ये राज जान गये राज़दार हो के चले
शिकार करने को ....
न इतना होश न अपनी ख़बर कहाँ है हम
इसी का नाम मोहब्बत है ऐ मेरे हमदम
तुम्हारे कुचे से दीवानावार हो के चले
शिकार करने को ....
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फ़िल्म - शिकार (1968)
गीत - हसरत साहब
संगीत - शंकर जयकिशन
गायक -रफ़ी साहब
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