हो के बेचैन मैं भागा किया आहू की तरह
बस गया था मेरे अन्दर कोई ख़ुशबु की तरह
कोई साया न मिला साया-ए-गेशू की तरह
ज़िन्दगी भर की थकन उतरी है जादू की तरह
मेरी आवाज़ तुझे छु ले बस इतनी मोहलत
तेरे कुचे से गुज़र जाऊँगा साधु की तरह
वो जो आजाये तो क्या होश का आलम होगा
जिसके आने की ख़बर फैली है ख़ुशबु की तरह
अपनी हर साँस पे अहसां लिये हम दर्दे का
ज़िन्दगी जिता हूँ इस अहद में उर्दू की तरह
ज़िन्दगी ठोकरें ख़ाती है बिछड़ कर तुझसे
तेरी पाज़ेब के टुटे हुऐ घुँघरू की तरह
अब ये अहसास की ख़ूबी हो के ख़ामी हो 'नूर'
उसकी नफ़रत का धंुआ भी लगा ख़ुशबु की तरह
-कृष्ण बिहार 'नूर'
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