शनिवार, 11 जुलाई 2015


अशआर मेरे यूं तो ज़माने के लिये हैं 
कुछ शेर फ़कत उनको सुनाने के लिये हैं 
जॉ निसार अख़्तर

अब किसी लैला को भी इक़रारे-महबूबी नहीं
इस अहद में प्यार का सिम्बल तिकोना हो गया
-अदम गोंडवी

अज़मते-मुल्क इस सियासत के 
हाथ नीलाम हो रही है अब 

(अज़मते-मुल्क = देश की महत्ता)
-दुष्यंत कुमार 

आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है 
पत्थरों में चीख़ हर्गिज़ कारगर होगी नहीं 
-दुष्यंत कुमार 

आपके टुकड़ों के टुकड़े कर दिये जायेंगे पर 
आपकी ताज़ीम में कोई कसर होगी नहीं 
-दुष्यंत कुमार 

अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
हम मरे जाते हैं तुम कहते हो हाल अच्छा है
-अमीर मिनाई 

अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म,
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां और भी हैं

(मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां = रोने-धोने की जगहें)

-अल्लामा इक़बाल 

अजनबी दोस्त हमें देख के हम
कुछ तुझे याद दिलाने आए
-फ़राज़

अब तो रोने से भी दिल दुखता है
शायद अब होश ठिकाने आए
-फ़राज़

अभी तो जाग रहे हैं चिराग़ राहों के,
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो। 
-फ़राज़

अपने सिवा हमारे न होने का ग़म किसे,
अपनी तलाश में तो हमीं हम हैं दोस्तों ।
-फ़राज़


अपने बीच हुआ जो भी
खुल कर पूरी बात बता

-आर.सी.शर्मा 'आरसी'

अपनी, आँखों के तारों का, आसमान थे सचमुच तुम
सौ जन्मों तक नहीं चुकेगा, हमसे यह एहसान पिता ।
-आर.सी.शर्मा 'आरसी'

अपना घर क्यों रहा अछूता सावन की बौछारों से,
शब्द-कोष में शब्द नहीं तो मौसम की नादानी लिख।
-आर.सी.शर्मा 'आरसी'


अंगुली का नाख़ून कटा कर कहलाए कुछ लोग शहीद,
दीवारों में चिने गए जो, तू उनकी कुर्बानी लिख।
-आर.सी.शर्मा 'आरसी'

अपने भीतर झाँक ज़रा सा
काजल ही काजल निकलेगा

- आर० सी० शर्मा “आरसी”

अक्षर अक्षर जोड़ “आरसी”
इक दिन तू भी चल निकलेगा

- आर० सी० शर्मा “आरसी”

आवाम की चाहें तो हिफाज़त ना कीजिए,
इतना करम करें कि,सियासत ना कीजिए।
-आर० सी० शर्मा "आरसी"

अपनी तन्हाई से भी होती नहीं अब गुफ्तगू,
बेकराँ कैदे-अनाँ और मैं अकेला आदमी
-क़तील शिफ़ाई

आंसू छलक छलक के सताएंगे रात भर
मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम
-क़तील शिफ़ाई

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको।
-क़तील शिफ़ाई

आज हुआ मालूम मुझे इस शहर के चंद सयानों से
अपनी राह बदलते रहना सबसे बड़ी दानाई है
-क़तील शिफ़ाई

अपने होठों पे सजाना चाहता हूं
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूं
-क़तील शिफ़ाई

आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आए
मौत भी मैं शायराना चाहता हूं
-क़तील शिफाई 

इम्तेहां और मेरी ज़ब्त का तुम क्या लोगे
मैंने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है 
-क़तील शिफाई

अब जिस के जी में आए वही पाए रौशनी
हम ने तो दिल जला के सर-ए-आम रख दिया
-क़तील शिफाई

आग पी कर भी रोशनी देना
माँ के जैसा है ये दिया कुछ कुछ
हस्तीमल 'हस्ती'

आपकी शक़्ल ही ख़राब रही
क्या मिला बच के आईने से जनाब
हस्तीमल 'हस्ती'

अनगिन बूंदों में कुछ को ही
आता है फूलों पे ठहरना

हस्तीमल 'हस्ती'

अपनी मंज़िल ध्यान में रखकर
दुनियाँ की राहों से गुजरना

-हस्तीमल 'हस्ती'

अना पसंद है 'हस्ती' जी सच सही लेकिन
नज़र को अपनी हमेशा झुका के रखते हैं

हस्तीमल 'हस्ती'

अब ये हम पर है कि उसको कौन-सा हम नाम दें,
ज़िन्दगी जंगल भी है और ज़िन्दगी मधुबन भी है
-कुँअर बेचैन

आज मैं बारिश मे जब भीगा तो तुम ज़ाहिर हुईं
जाने कब से रह रही थी मुझमें अंगड़ाई-सी तुम
-कुँअर बेचैन

आपको ऊँचे जो उठना है तो आंसू की तरह
दिल से आँखों की तरफ हँस के उछलते रहिये 
-कुँअर बेचैन

अब नींद भी आँखों से, ये पूछ के आती है,
आने से ज़रा पहले, कुछ ख़्वाब सजा लूं क्या 
-कुँअर बेचैन

अब हम लफ़्ज़ों से बाहर हैं हमें मत ढूंढिए साहब
हमारी बात होती है इशारों ही इशारों में 
-कुँअर बेचैन

अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे
मर के भी अगर चैन ना पाया तो किधर जाएंगे
हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएंगे
-ज़ौक़

अहल-ए-ज़बाँ तो हैं बहुत कोई नहीं है अहल-ए-दिल
कौन  तेरी  तरह  'हफ़ीज़' सदर्द सके  गीत गा  सके
-हफ़ीज़ जालंधरी

अजीब चीज़ है ये वक़्त जिसको कहते हैं,
कि आने पाता नहीं और बीत जाता है 
-शहरयार

अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है
-शहरयार 

आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
ये अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है
-शहरयार 

आप बीती पर जहाँ हँसना था जी भर के हँसा
हाँ जहाँ रोना ज़रूरी था वहाँ रोया नहीं
-शहरयार 

अजीब सानेहा मुझ पर गुजर गया यारो
मैं अपने साये से कल रात डर गया यारो
-शहरयार

अपने अशआर की शमाओं से उजाला करके
कर गया शब का सफ़र कितना वो आसाँ यारो
-हबीब ज़ालिब 

अहले दिल और भी हैं, अहले वफ़ा और भी हैं,
एक हम ही नहीं, दुनिया से ख़फ़ा और भी हैं 
-साहिर लुधियानवी 


आँख खुली तो सारे मंज़र ग़ायब हैं
बंद आँखों से क्या-क्या देखा करता था
-आलम खुर्शीद

अब जंगल में चैन से सोया करता हूँ
डर लगता था बचपन में वीरानी से
आलम खुर्शीद

अपना फ़र्ज़ निभाना एक इबादत है
आलम, हम ने सीखा इक जापानी से
-आलम खुर्शीद

अपने घर में ख़ुद ही आग लगा लेते हैं
पागल हैं हम अपनी नींद उड़ा लेते हैं
-आलम खुर्शीद

औरों को मुजरिम ठहरा कर अब हम 'आलम'
अपने गुनाहों से छुटकारा पा लेते हैं
-आलम खुर्शीद

आँखों पे छा गया है जादू ही कोई शायद
पलकें झपक रहा हूँ , मंज़र बदल रहा हूँ
-आलम खुर्शीद

आगही ने हम पे नाज़िल कर दिया कैसा अज़ाब
हैरती कोई नहीं मंज़र बदल जाने के बाद
/आलम खुर्शीद
[(आगही = ज्ञान, जानकारी), (नाज़िल = आ पहुँचना), (अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट)]

अब हवा ने हुक्म जारी कर दिया बादल के नाम
खूब बरसेंगी घटायें शहर जल जाने के बाद
-आलम खुर्शीद

आन बसा है सेहरा मेरी आँखों में
दिल की मिट्टी कैसे नम हो जाती है
-आलम खुर्शीद

अकड़ती जा रही हैं रोज़ गर्दन की रगें 'आलम'
हमें ए काश! आ जाए हुनर भी सर झुकाने का
-आलम खुर्शीद

अजब सी गूँज उठती है दरो-दीवार से हरदम
ये उजड़े ख़्वाब का घर है यहाँ सोया नहीं जाता
आलम खुर्शीद

आदमी नश्श-ए-ग़फ़लत में भुला देता है,
वर्ना जो सांस है तालीमे-फ़ना देता है ।
-जिगर मुरादाबादी

[(नश्श-ए-ग़फ़लत = बेखबरी/ असावधानी के नशे में), (तालीमे-फ़ना = मृत्यु की शिक्षा)]


अश्कों के तबस्सुम में आहों के तरन्नुम में
 मासूम मोहब्बत का मासूम फ़साना है 
-जिगर मुरादाबादी

आँखों में नमी-सी है चुप-चुप-से वो बैठे हैं 
नाज़ुक-सी निगाहों में नाज़ुक-सा फ़साना है 
-जिगर मुरादाबादी

आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन 
बिँध जाये सो मोती है रह जाये सो दाना है 
-जिगर मुरादाबादी

आँखों का था क़ुसूर न दिल का क़ुसूर था
आया जो मेरे सामने मेरा ग़ुरूर था
-जिगर मुरादाबादी

आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है
-जिगर मुरादाबादी

अभी बेवज्ह ख़ुश-ख़ुश था अभी बेवज्ह चुप-चुप है
नहीं कुछ ठीक इस दिल का, घड़ी को कुछ घड़ी को कुछ 
-राजेश रेड्डी 


अब तो लगता है दुश्मनों को भी
दोस्तों में शुमार कर लिया जाए
-राजेश रेड्डी 

अश्क आँखों में फिर उमड़ आए
इस नदी को भी पार कर लिया जाए
-राजेश रेड्डी 


आज का दिन चैन से गुज़रा, मैं खुश हूँ
जाने कब तक ये ख़ुशी बाक़ी रहेगी

-राजेश रेड्डी

अपने सच में झूठ की मिक्दार थोड़ी कम रही
कितनी कोशिश की, मगर, हर बार थोड़ी कम रही
-राजेश रेड्डी

आज दिल को अक़्ल ने जल्दी ही राज़ी कर लिया
रोज़ से कुछ आज की तक़रार थोड़ी कम रही
-राजेश रेड्डी

आप तो पहले ही मिसरे में उलझ कर रह गए
मुंतज़िर कब से यहाँ मिना-ए-सानी में हूँ मैं 
-राजेश रेड्डी


अजब मुसाफ़िर हूँ मैं मेरा सफ़र अजीब
मेरी मंज़िल और है मेरा रस्ता और
-राजेश रेड्डी

अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम
ख़ुद को समेटते हैं यहाँ से वहाँ से हम 
-राजेश रेड्डी

अब तो सराब ही से बुझाने लगे हैं प्यास 
लेने लगें हैं काम यक़ीं का गुमाँ से हम
-राजेश रेड्डी

आईने से उलझता है जब भी हमारा अक्स
हट जाते हैं बचा के नज़र दरमियाँ से हम 
-राजेश रेड्डी

अब याद-ए-रफ़्तगाँ की भी हिम्मत नहीं रही 
यारों ने इतनी दूर बसा ली हैं बस्तियाँ 
-फ़िराक़ गोरखपुरी

याद-ए-रफ़्तगाँ = गुज़री हुई यादें

अपनी मासूमियों के परदे में
हो गई वो नज़र सयानी भी

-फ़िराक़ गोरखपुरी

अब इसको कुफ़्र माने या बलन्दी-ए-नज़र जानें
ख़ुदा-ए-दोजहाँ को देके हम इन्सान लेते हैं।

-फ़िराक़ गोरखपुरी

अगर मुम्किन हो ले ले अपनी आहट 
ख़बर दो हुस्न को मैं आ रहा हूँ 

-फ़िराक़ गोरखपुरी

आगाज़ तो होता है, अंजाम नहीं होता,
जब मेरी कहानी में, वो नाम नहीं होता ।

-मीना कुमारी नाज़

अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
हम मरे जाते हैं तुम कहते हो हाल अच्छा है

-अमीर मिनाई 

आ गया उस का तसव्वुर तो पुकारा ये शौक़
दिल में जम जाये इलाही ये ख़याल अच्छा है
-अमीर मिनाई 

आख़िरी वक़्त भी पूरा न किया वादा-ए-वस्ल
आप आते ही रहे मर गये मरने वाले
-अमीर मिनाई 

आपसे झुक के जो मिलता होगा,
उसका क़द आपसे ऊँचा होगा 
-अहमद नदीम क़ासमी

अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए 
तेरी सहर हो मेरा आफ़ताब हो जाए 
-दुष्यंत कुमार

आँधी में सिर्फ़ हम ही उखड़ कर नहीं गिरे
हमसे जुड़ा हुआ था कोई एक नाम और 
-दुष्यंत कुमार

आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख 
-दुष्यंत कुमार

अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख 
-दुष्यंत कुमार

आज एक बात तो बताओ मुझे 
ज़िन्दगी ख्वाब क्यो दिखाती है 
-जौन एलिया

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