शनिवार, 13 जून 2015

जाॅन आॅलिया (एलिया)/क़त्आ:


चाँद   की  पिघली  हुई  चाँदी में
ओओ  कुछ रंग-ए-सुख़न  घोलेंगे
तुम  नही  बोलती   हो  मत बोलो
हम  भी   तुम  से  नही   बोलेंगे
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है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
वर्ना कुछ लज़्ज़त-ए-हयात नही
क्या इज्ज़ात है एक बात कहूँ
वो मगर ख़ैर कोई बात नही
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जो  हक़क़ीत है  उसे  हक़क़ीत से
दूर  मत  जाओ   लौट भी  आओ
हो  गई  फिर  किस  ख़याल में गुम
तुम  मिरी  आदतें  न  अपनाओ
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पसीने  से मिरे  अब  तो ये  रूमाल
है नक़्द-ए-उल्फ़त का ख़जीना
ये  रूमाल  मुझे  को बख़्श  दीजे
नही  तो  लाइए   मेरे   पसीना
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मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
मिरी   गुलफ़म   जान-ए-दिल-रूबाई
मिरी जी   में   ये  आता है  कि मल दूँ
तिरे     गालों  पे   नीली     रोशीनाई
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वो किसी दिन न आ सके पर उसे
पास  वादे   को   हो    निभाने का
हो   बसर  इंतिज़ार   में    हर  दिन
दूसरा   दिन  हो   उस   के  आने   का
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जाॅन आॅलिया (एलिया)

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