शनिवार, 13 जून 2015



आया मेरी महफ़िल में ग़ारत-गर होश आया
पैमान-ए-बकफ़ आया मैख़ाना बदहोश आया..

वो ख़ुद लिये बैठे थे आग़ोश-ए-तवज्जोह में
बेहोश ही अच्छा था नाहक़ मुझे होश आया..

उड़ कर दिले-ए-वीरां से,आँखों में कुछ आया था
पैमाना- ए- खाली क्या था जिसे जोश आया ..

क्यों दामन-ए-हस्ती तक बढ़ने दिया हाथों को
दीवाना अगर था मैं, दुनिया को न होश आया....

-सीमाब अकबराबादी

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