शनिवार, 13 जून 2015

साए   घटते   जाते  है
जंगल  कटते  जाते  है

कोई  सख़्त  वज़ीफ़ा   है
जो   हम   रटते  जाते है

सुरज  के  आसार है  देखो
बादल   घटते   जाते   है

आस  पास  के  सारे  मंज़र
पीछे     हटते     जाते      है

देखो   "मुनीर"  बहार में  गुलशन
रंग      से      अटते   जाते   है

मुनीर नियाज़ी 

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