हसीब सोज़
शायर का असली परिचय उसके शे’र होते हैं उसकी ग़ज़ल होती है हसीब सोज़ की तारीफ करना मतलब सूरज को दीपक दिखने जैसा है हसीब साहब बिला शक बेजोड़ और आला दर्ज़े के शायर हैं। उम्दा और सलीकेदार शेर कहते हैं
1952 में जन्में हसीब "सोज़" बदायूं (उ,प्र) के रहने वाले हैं बिला शक बेजोड़ शायर हैं उर्दू में एम.ए. हैं और उर्दू के रिसाले "लम्हा-लम्हा"का संपादन भी करते हैं. इतने उम्दा और सलीकेदार शेर कहना उस्तादों के बस की ही बात होती है. आज उनके योमे विलादत के मौके पर पेश है उनकी एक ग़ज़ल
तेरी तरफ से हमला होगा ऐसा हमने कब सोचा था
शर्बत इतना कड़वा होगा ऐसा हमने कब सोचा था
आप तो पिछले कई बरस से मिनरल वाटर पीते है
आपका दिल भी गन्दा होगा ऐसा हमने कब सोचा था
छोटी-सी इक बात पे उसने सात समंदर पार किये
उसकी गोद में बच्चा होगा ऐसा हमने कब सोचा था
हम जैसे बज़र्फ़ की कीमत इस बस्ती में कोई नहीं
सोना इतना सस्ता होगा ऐसा हमने कब सोचा था
जिसकी खातिर सारी दुनिया यारो छोड़ के आये है
वह भी इंसा गूंगा होगा ऐसा हमने कब सोचा था -
हसीब सोज़
२-
हसीब सोज़ साहब की एक और ग़ज़ल आपकी खिदमत में
खुला यह राज़ की ये जिंदगी भी होती है
बिछड़ के तुझ से हमें अब ख़ुशी भी होती है
सवा करोड़ का उसने मकान बेचा है
अब उसकी बातों में इक पुख्तगी भी होती है
वह फ़ोन कर के मेरा हाल पूछ लेता है
नमक हरामो की कैटागरी भी होती है
तुम अपने कदमो की रफ़्तार पर बहुत खुश हो
यह रेल गाड़ी कहीं पर खड़ी भी होती है
हमारे नाम पे जलने लगा है वह जब से
तमाम शहर में अब रौशनी भी होती है ................
हसीब सोज़
3-
ज़रा सी बूँदों में हुलिये बदल गये होंगे ,
हमारे यार थे काग़ज़ के,गल गये होंगे
ख़ुदा का शुक्र,कि टाँगे मेरी सलामत हैं
तुम्हारे पैंतरे लँगड़ों पे चल गये होंगे
ये भीख माँगने वाले भी भीख देने लगे
जरूर रात में बर्तन बदल गये होंगे
तुझे मलाल ये होगा कि मैं न जल पाया
मुझे यह ग़म है तेरे हाथ जल गये होंगे
जिन्हें जरूरतें मेरी तलाश करती हैं
वह लोग पिछली गली से निकल गये होंगे
हसीब_सोज़
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