शुक्रवार, 4 मार्च 2016

हस्तीमल हस्ती 

कुछ और सबक़ हमको ज़माने ने सिखाए
कुछ और सबक़ हमने किताबों में पढ़े थे
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कहीं पर मिल रहीं है पाक रूहें 
धनक यूँ ही नही खिलते फ़लक पर..
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जब भी ख़रीदी नई क़लम 
पहले उसका नाम लिखा
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शायरी है सरमाया ख़ुशनसीब लोगों का
बास की हर इक टहनी बाँसुरी नहीं होती
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दिल में जो मुहब्बत की रोशनी नहीं होती 
इतनी खूबसूरत ये ज़िंदगी नहीं होती........
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दोस्‍त पे करम करना और हिसाब भी रखना 
कारोबार होता है दोस्ती नहीं होती ........
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कोई मुहब्बत से है ख़ाली कोई सोने चाँदी से
हर झोली में हो हर दौलत ये कैसे हो सकता है
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ख़ुद चिराग़ बन के जल वक़्त के अँधेरों में
भीक के उजालों से रौशनी नही होती
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हर गाँव में मुमताज़ जनम क्यों नहीं लेती
हर मोड़ पे इक ताजमहल क्यों नही होता
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रास्ते उस तरफ़ भी जाते हैं
जिस तरफ़ मंज़िले नही होतीं
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अपने ही घर में होती है
जन्नत कहीं अगर होती है
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अपने रस्ते से भटक जाता हूँ
वो मुझे जब भी भुला देता है
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वो नदी का घाट हो या घर हो अपने यार का
है वहीं मंदिर जहा सुख-चैन सा महसूस हो
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इस दुनियादारी का कितना भारी मोल चुकाते हैं
जब तक घर भरता है अपना हम ख़ाली हो जाते हैं
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अपने बारे में 'हस्ती' कभी सोचना
अक्स किसके हो तुम आईना कौन है 
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अपने रस्ते से भटक जाता हूँ 
वो मुझे जब भी भुला देता है
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कहीं ख़ुलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफा 
बड़े करीने से घर को सज़ा के रखते हैं....
ख़ुलूस - स्नेह.पवित्रता.
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पंडित उलझ के रह गए पोथी के जाल में
 क्या चीज़ है ये ज़िंदगी बच्चे बता गए
        -हस्तीमल हस्ती
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          मुहब्बत का ही इक मोहरा नहीं था 
          तेरी शतरंज पे क्या- क्या नहीं था

          सज़ा मुझको ही मिलनी थी हमेशा 
          मेरे चेहरे पे जो चेहरा नहीं था 

          कोई प्यासा नहीं लौटा वहाँ से 
          जहाँ दिल था भले दरिया नहीं था 

          हमारे ही क़दम छोटे थे वरना 
          यहाँ परबत कोई ऊँचा नहीं था
 
          किसे कहता  तवज्जो कौन देता 
          मेरा ग़म था कोई क़िस्सा नहीं था 

           रहा फिर देर तक वो साथ मेरे 
           भले वो देर तक ठहरा नहीं था
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सुबह जुदा और रात जुदा 
उनकी तो हर बात जुदा

उनसे बिछड़ कर ऐसा लगा 
जैसे दुआ में हाथ जुदा

सब तो आते रहते हैं 
वे आएं तो बात जुदा

वक़्त उन्हें समझाएग 
हम, वो थे बेबात जुदा

रिश्ते ,नाते, प्यार, वफ़ा
नाम हैं ग़म के ज़ात जुदा

via Hastimal Hasti
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जो बाग़ के फूलों की हिफ़ाजत नहीं करते 
हम ऐसे उजालों की हिमायत नहीं करते

जूड़े में ही सजने का फ़क़त शौक़ है जिनको
हम ऐसे गुलाबों से मुहब्बत नहीं करते

ज़िदा हैं मेरे शहर में क्यों ज़ुल्म अभी तक 
मुंसिफ तो गुनाहों की वकालत नहीं करते

होने लगी शालाओं में ये कैसी पढ़ाई 
अब बच्चे बुजुर्गों की भी इज़्जत नहीं करते

-Hastimal Hasti
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        जो बाग़ के फूलों की हिफ़ाजत नहीं करते 
         हम ऐसे उजालों की हिमायत नहीं करते 

        जूड़े में ही सजने का फ़क़त शौक़ है जिनको
         हम ऐसे गुलाबों से मुहब्बत नहीं करते 

        ज़िदा हैं मेरे शहर में क्यों ज़ुल्म अभी तक 
        मुंसिफ तो गुनाहों की वकालत नहीं करते 

           होने लगी शालाओं में ये कैसी पढ़ाई 
        अब बच्चे बुजुर्गों की भी इज़्जत नहीं करते 
          
         

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