उबैदुल्लाह अलीम
तेरे प्यार में रुसवा हो कर जाएं कहाँ दीवाने लोग
जाने क्या क्या पूछ रहे हैं ये जाने पहचाने लोग
जाने क्या क्या पूछ रहे हैं ये जाने पहचाने लोग
हर लम्हा एहसास की सहबा रूह में ढलती जाती है
ज़ीस्त का नशा कुछ कम हो तो हो आएं मैख़ाने लोग
ज़ीस्त का नशा कुछ कम हो तो हो आएं मैख़ाने लोग
जैसे तुम्हें हम ने चाहा है कौन भला यूं चाहेगा
माना और बहुत आयेंगे तुम से प्यार जताने लोग
माना और बहुत आयेंगे तुम से प्यार जताने लोग
यू गलीयों बाज़ारों में आवारा फिरते रहते हैं
जैसे इस दुनिया में सभी आए हों उम्र गंवाने लोग
जैसे इस दुनिया में सभी आए हों उम्र गंवाने लोग
आगे पीछे दाएं बाएं साय से लहराते हैं
दुनिया भी तो दश्त-ए-बला है हम ही नहीं दीवाने लोग
दुनिया भी तो दश्त-ए-बला है हम ही नहीं दीवाने लोग
कैसे दुखों के मौसम आए कैसी आग लगी यारो
अब सहराओं से लाते हैं फूलों के नज़राने लोग
अब सहराओं से लाते हैं फूलों के नज़राने लोग
कल मातम बे क़ीमत होगा आज उन की तौक़ीर करो
देखो खून-ए-जिगर से क्या क्या लिखते हैं अफ़साने लोग
देखो खून-ए-जिगर से क्या क्या लिखते हैं अफ़साने लोग
-----------------------
अजीज़ इतना ही रखो कि जी संभल जाये
अब इस क़दर भी, न चाहो कि दम निकल जाये
मोहब्बतों में अजब है, दिलों का धड़का सा
कि जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाये
मिले हैं यूं तो बहुत, आओ अब मिलें यूं भी
कि रूह गरमी-ए-इन्फास से पिघल जाये
मैं वो चिराग़ सर-ए-राह्गुज़ार-ए-दुनिया
जो अपनी ज़ात की तनहाइयों में जल जाय
ज़िहे वो दिल जो तमन्ना-ए-ताज़ा-तर में रहे
खुशा! वो उम्र जो ख़्वाबों में ही बहल जाये
हर एक लहज़ा यही आरजू यही हसरत
जो आग दिल में है वो'ह शेर में भी ढल जाये
----------------------
कुछ इश्क़ था कुछ मजबूरी थी, सो मैंने जीवन वार दिया
मैं कैसा ज़िंदा आदमी था, एक शख्स ने मुझको मार दियाएक सब्ज़ शाख गुलाब की था, एक दुनिया अपने ख़्वाब की था
वो एक बहार जो आई नहीं उसके लिए सब कुछ वार दिया
ये सजा सजाया घर साथी, मेरी ज़ात नहीं मेरा हाल नहीं
ए काश तुम कभी जान सको, जो इस सुख ने आज़ार दियामैं खुली हुई सच्चाई, मुझे जानने वाले जानते हैं
मैंने किन लोगों से नफरत की और किन लोगों को प्यार दियावो इश्क़ बोहत मुश्किल था, मगर आसान न था यूं जीना भी
उस इश्क़ ने ज़िंदा रहने का मुझे ज़र्फ दिया, पिन्दार दियामैं रोता हूँ और आसमान से तारे टूट कर देखता हूँ
उन लोगों पर जिन लोगों ने मेरी लोगों को आज़ार दियामेरे बच्चों को अल्लाह रखे, इन ताज़ा हवा के झोकों ने
मैं खुश्क पेड खिज़ां का था, मुझे कैसा बर्ग-ओ-बार दिया----------कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में
फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्याकोई रंग तो दो मेरे चेहरे को
फिर ज़ख्म अगर महकाओ तो क्याजब हम ही न महके फिर साहब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्याएक आईना था, सो टूट गया
अब खुद से अगर शरमाओ तो क्यादुनिया भी वही और तुम भी वही
फिर तुमसे आस लगाओ तो क्यामैं तनहा था, मैं तनहा हूँ
तुम आओ तो क्या, न आओ तो क्याजब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या, गहनाओ तो क्याएक वहम है ये दुनिया इसमें
कुछ खो’ओ तो क्या और पा’ओ तो क्याहै यूं भी ज़ियाँ और यूं भी ज़ियाँ
जी जाओ तो क्या मर जाओ तो क्या----------------तुम ऐसी मोहब्बत मत करना
मेरा ख्वाबों में चेहरा देखो
और मेरे कायल हो जाओ
तुम ऐसी मोहब्बत मत करनामेरे लफ़्ज़ों में वोह बात सुनो
जो बात लहू की चाहत हो
फिर उस चाहत में खो जाओ
तुम ऐसी मोहब्बत मत करना
यह लफ्ज़ मेरे यह ख्वाब मेरे
हर चंद यह जिसम ओ जान ठहरेपर ऐसे जिसम-ओ-जान तो नहीं
जो और किसी के पास न हों
फिर यह भी तो मुमकिन है, सोचो
यह लफ्ज़ मेरे, यह ख्वाब मेरे
सब झूठे होंतुम ऐसी मोहब्बत मत करना
गर करो मोहब्बत तो ऐसी
जिस तरहां कोई सच्चाई की रद
हर झूठ को सच कर जाती है-उबैदुल्लाह 'अलीम'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें